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नहीं रहे डकवर्थ-लुईस नियम बनाने वाले गणितज्ञ टोनी, 78 साल की उम्र में दुनिया को कहा अलविदा

नई दिल्ली। क्रिकेट जगत को डकवर्थ-लुईस नियम देने वाले गणितज्ञ टोनी लुईस का निधन हो गया है। वे 78 साल के थे। उन्होंने साथी गणितज्ञ फ्रैंक डकवर्थ के साथ मिलकर मौसम के कारण बाधित क्रिकेट मैच के लिए 1992 में डकवर्थ-लुईस फॉर्मूला दिया था। इसे आईसीसी ने इंग्लैंड में खेले गए 1999 वर्ल्ड कप से अपनाया था। इंग्लैंड और वेल्स क्रिकेट बोर्ड (ईसीबी) ने बुधवार को कहा, ‘‘टोनी और फ्रैंक के योगदान कोई नहीं भूल सकता। क्रिकेट उन दोनों का हमेशा ऋणी रहेगा।’’

टोनी और फ्रैंक के फॉर्म्युले को कई बार आलोचनाओं का भी सामना करना पड़ा था। तब ऑस्ट्रेलिया के एक गणितज्ञ स्टीवन स्टर्न ने मौजूदा स्कोरिंग-रेट के हिसाब से इस फॉर्मूले को रिवाइज किया। इसके बाद 2014 से डकवर्थ-लुईस-स्टर्न कहा जाने लगा।

गणितज्ञ टोनी लुईस (दाएं) और फ्रैंक डकवर्थ ने मिलकर डकवर्थ-लुईस फॉर्मूला बनाया था। 1997 मे दिए गए इस फॉर्मूले को आईसीसी ने 1999 वर्ल्ड कप में अपनाया था।
गणितज्ञ टोनी लुईस (दाएं) और फ्रैंक डकवर्थ ने मिलकर डकवर्थ-लुईस फॉर्मूला बनाया था। 1997 मे दिए गए इस फॉर्मूले को आईसीसी ने 1999 वर्ल्ड कप में अपनाया था।

1992 वर्ल्ड कप के बाद फॉर्मूले को लागू करने पर विचार हुआ
1992 वर्ल्ड कप में इंग्लैंड और दक्षिण अफ्रीका के सेमीफाइनल के बाद इस फॉर्मूले को लागू करने पर विचार किया गया था। इस मैच में लक्ष्य का पीछा कर रही अफ्रीका टीम को जीत के लिए 13 गेंद पर 22 रन की जरूरत थी। इसी दौरान कुछ समय के लिए हुई बारिश के कारण मैच रोक दिया गया था। इसके बाद अफ्रीकी खिलाड़ी उस समय हैरान रह गए, जब जीत के लिए स्कोरकॉर्ड पर 1 गेंद पर 21 रन का टारगेट दिखाया था। यह मैच अफ्रीका 19 रन से हार गई थी। इसके बाद ही आईसीसी ने डकवर्थ-लुईस सिस्टम पर विचार किया।

इस नियम से पहले क्या होता था
इस फॉर्मूले से पहले आईसीसी का नियम सिर्फ टीम का रन औसत ही देखती थी। यानी मैच में जिस टीम ने बारिश के समय ज्यादा औसत से रन बनाए होते थे, उसे विजेता घोषित कर दिया जाता था। इस पुराने नियम में विकेट गिरने की बात का ख्याल नहीं रखा जाता था। जबकि डकवर्थ-लुईस नियम में बारिश से बाधित मैच तक के ओवरों में दोनों टीमों का रन औसत और विकेट को ध्यान में रखा जाता है।

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