राष्ट्रपति शासनः किस करवट बैठेगा ऊंट
इन दिनों में उत्तराखण्ड का नाम सुर्खियों में छाया हुआ है इस वजह से नहीं कि यहां कुछ अच्छा हुआ है या फिर राज्य ने कोई बहुत बड़ी उपलब्धि हासिल कर ली है बल्कि इसलिए क्योंकि सूबे का सियासी उठापटक और गिरती राजनीति का स्तर इन दिनों चर्चाओं में छाया हुआ है। पुलिस के घोड़े “शक्तिमान” से लेकर राज्य में लगे राष्ट्रपति शासन तक का घटनाक्रम ये दर्शाता है कि उत्तराखण्ड की राजनीति का स्तर किस हद तक गिर चुका है। कुर्सी का लालच और सत्ता पाने का लोभ यहां के राजनेताओं को ओछी राजनीति करने को विवश कर रहा है। भाजपा और कांग्रेस दोनों ही दल उत्तराखण्ड में अपनीख्नअपनी सरकारें बनाने को उत्सुक नजर आ रहे हैं। किन्तु हालख्नफिलहाल राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू है। अब सब की निगाहें हाईकोर्ट के आदेश पर टिकी हैं कि उत्तराखण्ड में राष्ट्रपति शासन रहेगा या नहीं।’’
इन दिनों उत्तराखण्ड सियासी संकट से गुजर रहा है। मुख्यमंत्री हरीश रावत का स्टिंग ऑपरेशन सामने आने के बाद केन्द्र के द्वारा उत्तराखण्ड में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया। इसके बाद से ही राज्य में राजनीतिक उठापटक तेज हो गई। उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन कायम रहेगा या इस पर विराम लग जाएगा, इस प्रश्न का जवाब जानने के लिये सबकी निगाहें नैनीताल हाईकोर्ट पर लगी है। राष्ट्रपति शासन को चुनौती देने वाली मुख्यमंत्री हरीश रावत की याचिका पर नैनीताल हाईकोर्ट में सुनवाई होनी हैं। न्यायालय राष्ट्रपति शासन से जुड़े सभी मामलों पर सुनवाई करेगा। हर कोई इस मामले में न्यायालय का पक्ष जानने को बेताब है। न्यायालय ने वित्त विधेयक व अन्य प्रकरणों पर केंद्र सरकार को 18 अप्रैल तक जवाब दाखिल करने का समय दिया था। पिछले हफ्ते केंद्र सरकार ने अपना जवाब दे दिया है। शनिवार को याचिकाकर्ता हरीश रावत ने भी प्रति शपथ दाखिल कर दिया है। दोनों पक्षों के जवाब आ जाने के बाद अब सबकी निगाहें न्यायालय पर लगी हैं।
सियासी जानकारों की मानें तो सूबे की सत्ता और सियासत के लिये हाईकोर्ट का निर्णय खासा अहम हो सकता है। खासतौर पर राष्ट्रपति शासन को लेकर। चूंकि न्यायालय में दोनों पक्षों की ओर से जवाब दाखिल हो चुके हैं, इसलिये हाई कोर्ट के फैसले का इंतजार किया जा रहा है। राष्ट्रपति शासन को चुनौती देने वाली याचिका चूंकि अदालत में लंबित है, इसलिये शासकीय कार्यों में भी पूरी तेजी नहीं दिखाई दी जा रही है। आधिकारिक सूत्रों की मानें तो कोर्ट से एक बार स्थिति साफ हो जाने के बाद शासन के लिये नीतिगत मामलों में भी वैसी ही तेजी दिख सकती है, जैसी रूटीन मामलों में दिखाई दे रही है। उधर, सूबे की राजनीति की भी कोई एक दिशा तय होगी। कोर्ट में मामला जाने के बाद अभी यही संशय बना हुआ है कि राष्ट्रपति शासन रहेगा या हटेगा या फिर एक बार फिर सियासी दलों को विधान सभा में बहुमत साबित करने की चुनौती का सामना करना पड़ेगा।
कोर्ट के रुख सबसे ज्यादा टकटकी निवर्तमान मुख्यमंत्री हरीश रावत की लगी है, जो आर या पार की मुद्रा धारण कर चुके हैं। जिस तरह से वह पद यात्राओं पर निकल चुके हैं, उससे जाहिर हो गया है कि कोर्ट से निर्णय उनके पक्ष में आए या खिलाफ वह 2017 के चुनाव प्रचार अभियान पर निकल पड़े हैं। अलबत्ता कोर्ट से फैसला यदि उनके पक्ष में आता है तो ये उनके मनोबल को बढ़ाने का ही काम करेगा। इसलिये राष्ट्रपति शासन लगाने के खिलाफ दायर याचिका पर हाईकोर्ट में होने वाली सुनवाई के दौरान पैरोकारी के लिये दिग्गज कानूनविद मैदान में होंगे। कांग्रेस की ओर से नामी वकील कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंघवी मोर्चा संभालेंगे तो केंद्र सरकार की ओर से महान्यायवादी मुकुल रहतोगी नैनीताल हाईकोर्ट में पहुंचेंगे। राष्ट्रपति शासन को लेकर हरीश रावत का कहना है कि ये उनके साथ केन्द्र का अन्याय है, यदि उन्हें शक्ति परीक्षण का मौका दिया जाता तो वे अपना बहुमत साबित कर सकते थे किन्तु उससे पहले ही राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया जो सरासर गलत है। उनका कहना है कि यदि हाईकोर्ट उन्हें मौका दे तो वे अपनी सरकार का बहुमत साबित कर सकते हैं। उनके अनुसार उनके पास सरकार बनाने के लिए पूरे नम्बर हैं तो वहीं इस पर भाजपा का कहना है कि रावत सरकार अल्पमत में है इस लिए भाजपा को सरकार बनाने का मौका दिया जाना चाहिए।