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श्रावण मास का है विशेष महत्व

देवों के देव शिव की भक्ति के लिए श्रावण मास का विशेष महत्व है। शास्त्रों में वर्णित है कि श्रावण महीने में भगवान विष्णु योग निद्रा में चले जाते हैं इसलिए यह समय भक्तों और साधु-संतों सभी के लिए अमूल्य होता है। इस समय सृष्टि के संचालन का उत्तरदायित्व भगवान शिव ग्रहण करते हैं इसलिए श्रावण के प्रधान देवता भगवान शिव बन जाते हैं।
श्रावण मास को मासोत्तम मास कहा जाता है। श्रावण मास अपना एक विशिष्ट महत्व रखता है। यह माह अपने हर एक दिन में एक नया सवेरा दिखाता। इसके साथ जुड़े समस्त दिन धार्मिक रंग और आस्था में डूबे होते हैं। इस माह की प्रत्येक तिथि किसी-न-किसी धार्मिक महत्व के साथ जुड़ी हुई होती है।

शास्त्रों में श्रावण के महात्म्य पर विस्तारपूर्वक उल्लेख मिलता है। श्रवण नक्षत्र तथा सोमवार से भगवान शिव-शंकर का गहरा संबंध है। इस मास का प्रत्येक दिन पूर्णता लिए हुए होता है। धर्म और आस्था का अटूट गठजोड़ हमें इस माह में दिखाई देता है। इसका हर दिन व्रत और पूजा- पाठ के लिए महत्वपूर्ण रहता है। श्रावण मास की अनेकानेक विशेषताएं एवं अलौकिकताएं हैं। मनीषियों का कहना है कि समुद्र मंथन भी श्रावण मास में ही हुआ। इस मंथन से 14 प्रकार के तत्व निकले। उसमें एक कालकूट विष भी निकला, उसकी भयंकर ज्वाला से समस्त ब्रह्मांड जलने लगा।

इस संकट से व्यथित समस्त जन भगवान शिव के पास पहुंचे और उनके समक्ष प्रार्थना करने लगे, तब सभी की प्रार्थना पर भगवान शिव ने सृष्टि को बचाने हेतु उस विष को अपने कंठ में उतार लिया और उसे वहीं अपने कंठ में अवरुद्ध कर लिया। इस प्रकार इनका नाम ‘नीलकंठ’ पड़ा। इसके बाद देवताओं ने भगवान शिव को जहर के संताप से बचाने के लिए उन्हें गंगाजल अर्पित किया। इसके बाद से ही शिवभक्त श्रावण मास में भगवान शिव का जलाभिषेक करते हैं। ज्योतिर्लिंगों का दर्शन एवं जलाभिषेक करने से अश्वमेध यज्ञ के समान फल प्राप्त होते हैं तथा शिवलोक की प्राप्ति होती है, ऐसी मान्यता है।

इन दिनों में अनेक प्रकार से शिवलिंग का अभिषेक किया जाता है, जो भिन्न-भिन्न फलों को प्रदान करने वाला होता है, जैसे कि जल से वर्षा और शीतलता की प्राप्ति होती है। दुग्ध अभिषेक एवं घृत से अभिषेक करने पर योग्य संतान की प्राप्ति होती है। ईख के रस से धन-संपदा की प्राप्ति होती है। कुशोदक से समस्त व्याधि शांत होती है। दधि से पशुधन की प्राप्ति होती है और शहद से अभिषेक करने से लक्ष्मी की प्राप्ति होती है। इसके अतिरिक्त एक अन्य कथा के अनुसार मरकंडू ऋषि के पुत्र मार्कंडेय ने लंबी आयु के लिए श्रावण माह में ही घोर तप कर शिव की कृपा प्राप्त की थी जिससे मिली मंत्र शक्तियों के सामने मृत्यु के देवता यमराज भी नतमस्तक हो गए थे। इस महीने में गायत्री मंत्र, महामृत्युंजय मंत्र, पंचाक्षर मंत्र इत्यादि शिव मंत्रों का जाप शुभ फलों में वृद्धि करने वाला होता है और जीवनरक्षक माना गया है।

भगवान शिव को श्रावण का महीना प्रिय होने का एक अन्य कारण यह भी है कि भगवान शिव श्रावण के महीने में पृथ्वी पर अवतरित होकर अपनी ससुराल गए थे और वहां उनका स्वागत आर्घ्य और जलाभिषेक से किया गया था। माना जाता है कि प्रत्येक वर्ष श्रावण माह में भगवान शिव अपनी ससुराल आते हैं। भू-लोकवासियों के लिए शिवकृपा पाने का यह उत्तम समय होता है।

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