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कहीं सियासी संकट ना बन जाये आपदा

देहरादून। उत्तराखण्ड में मुश्किलों का दौर थमने का नाम नहीं ले रहा है। राज्य अभी राजनीतिक उठापटक से उभरने की कोशिश कर ही रहा था कि अचानक आसमान से बरसी आफत ने प्रदेश में एक और सियासी भूचाल ला खड़ा कर दिया है। गौरतलब है कि सूबे में बरसात के शुरू होते ही कुदरत ने कहर बरपाना शुरू कर दिया है। देवभूमि कहे जाने वाले उत्तराखण्ड से देवता इतने खफा हैं कि यहां उन्होंने प्राकृतिक आपदाओं का अंबार सा लगा दिया है। जहां देखो बाढ़, भूस्खलन और बादल फटने की घटनाएं घटित हो रही हैं। हाल ही में राज्य के पिथौरागढ़ और चमोली जनपदों में आसमान से बरसी आफत की वजह से भारी नुक्सान हुआ है। इस आपदा में कई लोगों की जानें चली गईं तथा साथ ही करोड़ों रूपयों की संपत्ति भी इस आपदा में स्वाहा हो गयी। राज्य के पहाड़ी इलाकों से निकलकर मैदानों में बहने वाली नदियां इन दिनों अपने पूरे उफान पर हैं। ये नदियां तेज बहाव में ना जाने कितने घरों, जीव-जन्तुओं और वनस्पतियों को अपने साथ बहा ले जा रही हैं। भू-कटाव के कारण नदी किनारे बसे लोगों के भवन व खेत खलिहान सब बहकर गायब हो चुके हैं। कई क्षेत्रों में पूरे के पूरे गांव मलबे में तब्दील हो चुके हैं। पहाड़ों को मैदानों से जोड़ने वाले सम्पर्क मार्ग भूस्खलन के कारण कई जगह बंद पड़े हैं।

हजारों यात्री एवं श्रद्धालु भी पहाड़ों में फंसे रहे। इस आसमानी आफत ने साल 2013 में आयी आपदा की खौफनाक यादों को एक बार फिर से जिन्दा कर दिया। हर कोई इस घटना की तुलना साल 2013 की आपदा से कर रहा है। पहाड़ों के अलावा मैदानी क्षेत्रों में भी कई जगह बाढ़ जैसे हालात बने हुए हैं। बिगड़े हुए हालातों को काबू कर पाने में राज्य की आपदा प्रबंधन टीम मुश्तैद होने के बावजूद पूरी तरह से फेल नजर आयी। ऐसे में सवाल तो उठने लाजमी हैं ही। बताते चलें कि इस प्राकृतिक आपदा के चलते राज्य की हरीश रावत सरकार एक बार फिर से विरोधियों के निशाने पर आ गई है। पिछले दिनों आये सियासी भूचाल में किसी तरह से अपनी कुर्सी बचाने में कामयाब हुए हरीश रावत की पेशानी पर इस आपदा ने एक बार फिर से बल डाल दिये हैं। विपक्षी दल आपदा का ठीकरा रावत सरकार के सिर पर फोड़ते हुए आरोप लगा रहे हैं और सरकार को घेरते हुए इस पूरे घटनाक्रम में रावत सरकार को ही जिम्मेवार बता रहे हैं।

सूबे के प्रमुख विपक्षी दल भाजपा के वरिष्ठ नेता अजय भट्ट का कहना है कि मौसम विभाग ने भारी बारिश को लेकर पहले ही चेता दिया था किन्तु फिर भी सरकार सोई रही। सूबे का आपदा प्रबंधन बिलकुल ढुलमुल रवैया इख्तियार किये रहा जिस वजह से राज्य में अलग-अलग जगहों पर आपदा जैसे हालात पैदा हुए। उन्होंने कहा कि ये स्थिति बिलकुल वैसी ही है जैसा वर्ष 2013 में घटित हुआ था। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री हरीश रावत को अपनी लापरवाही व इस आपदा के प्रति अपनी जिम्मेवारी स्वीकार करते हुए तुरन्त अपने पद से इस्तीफा दे देना चाहिए।

ज्ञात हो कि साल 2013 में उत्तराखण्ड में आयी प्राकृतिक आपदा की वजह से केदारनाथ समेत राज्य के कई हिस्सों में जानमाल का भारी नुक्सान हुआ था जिससे राज्य अभी तक उभर नहीं पाया है। इस आपदा की वजह से उत्तराखण्ड के तत्कालीन मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा को अपनी कुर्सी गवानी पड़ गई थी। सवाल ये उठता है कि कहीं ऐसी ही स्थिति अब हरीश रावत के सामने तो पैदा नहीं होने जा रही है। हाल-फिलहाल हरीश रावत सत्ता से हाथ धोते तो नजर नहीं आ रहे हैं हां मगर आने वाले दिनों में ये आपदा कहीं उनके सियासी समीकरणों पर भारी ना पड़ जाये। आगामी वर्ष में राज्य में विधानसभा चुनाव होना है, सभी पार्टियां मिशन 2017 को फतह करने की कवायद में जुट चुकी हैं। ऐसे में जरा सी भी चूक हरीश रावत समेत पूरी कांग्रेस पार्टी को हाशिये पर धकेल सकती है। वहीं विपक्षी दल सरकार के खिलाफ कोई भी मौका गवाना नहीं चाहेंगे खास तौर पर भाजपा तो कतई नहीं। यदि सूत्रों की मानें तो राज्य में आयी आसमानी आफत और राज्य के मौजूदा हालातों पर रावत सरकार की सुस्त कार्यप्रणाली को भाजपा आगामी चुनाव में अहम मुद्दा बना सकती है।

कांग्रेस में पिछली बार मजबूत स्तम्भ की तरह खड़े नौ बागी विधायक भी अब भाजपा में शामिल हो चुके हैं। ऐसे में कांग्रेस पार्टी के लिए चुनौतियां और भी बढ़ गई हैं। पूरी पार्टी का दारोमदार अपने कांधें पर उठाये मिशन 2017 को फतह करने के उद्देश्य से चल रहे हरीश रावत की राह में ये आसमानी आफत कहीं राजनीतिक भूस्खलन ना खड़ा कर दे। कांग्रेस सरकार के पूरे कार्यकाल के दौरान दो बार भव्य रूप से प्राकृतिक आपदाओं का आना जहां कांग्रेस के लिए काफी मुश्किलों भरा रहा तो वहीं विपक्ष के विरोध के साथ ही पार्टी की छवि पूरे देशभर में भी प्रभावित हुई है। कहीं विपक्ष के इन भारी विरोध के तीरों और पार्टी की खराब होती छवि का खामियाजा कांग्रेस को आने वाले चुनाव में ना भुगतना पड़ जाये। देवभूमि के देवताओं की कृपा अभी तक कांग्रेस और मुख्यमंत्राी हरीश रावत के साथ रही है देखना ये होगा कि क्या ये कृपा आगे भी उनपर बनी रहेगी और क्या विपक्ष के हमलों के बावजूद वे इन सभी चुनौतियों को पार पाने में सफल हो पायेंगे? फिलहाल ये भविष्य के गर्भ में है। बहरहाल उत्तराखण्ड के मौजूदा हालातों ने राज्य की कांग्रेस सराकर को एक बार फिर से संकट की खाई में धकेल दिया है जिससे निकलपाना आसान नहीं है।

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