भूस्खलन रोकने की ‘निंजा टैक्निक‘

देहरादून। ‘निंजा’ या ‘शिनोबी’ मध्यकालीन जापान के उन योद्धाओं को कहा जाता था जो युद्ध कला के लिए विश्वभर में प्रसिद्ध थे। वे अंगरक्षक का काम भी करते थे और किसी भी काम को पूरा करने में अपना दमखम लगा दिया करते थे। इन योद्धाओं की ‘निंजा तकनीक’ आज भी पूरी दुनिया में मशहूर है। यहां ‘निंजा टैक्निक’ शब्द का इस्तेमाल इसलिए किया क्या गया है क्योंकि राज्य की बर्बाद होती संपत्ति को बचाने के लिए उत्तराखण्ड सरकार भी अब जापानी लोगों से जानकारी लेकर एक ‘निंजा’ की ही तरह अपना दमखम लगाने जा रही है।
गौरतलब है कि उत्तराखंड के वन क्षेत्रों में प्राकृतिक आपदाओं की वजह से होने वाले भूस्खलन के प्रबंधन व उपचार में अब जापान के विशेषज्ञ वन महकमे को तकनीकी सहयोग देंगे। जापान इंटरनेशनल कोऑपरेशन एजेंसी (जायका) प्रदेश के वन क्षेत्रों में भूमि संरक्षण, भूस्खलन के उपचार से संबंधित फील्ड सर्वे, संरचनाओं के डिजाइन, निर्माण व पर्यवेक्षण में जापानी विशेषज्ञों की सेवाएं भी उपलब्ध कराएगी। मुख्यमंत्री हरीश रावत की मौजूदगी में इस बाबत जायका और राज्य सरकार के बीच अनुबंध पर हस्ताक्षर किए गए।
बीजापुर हाउस में प्रदेश की ओर से अपर मुख्य सचिव व एफआरडीसी एस रामास्वामी व जायका के भारत प्रमुख ताकेमा साकामोतो ने करार पर हस्ताक्षर किए। मुख्यमंत्री हरीश रावत ने अनुबंध पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा कि जायका की सहायता से उत्तराखंड में पहले से 750 वन पंचायतों में काम चल रहा है। वनक्षेत्रों में भूस्खलन प्रबंधन के लिए भी महत्वपूर्ण सहयोग मिलेगा। आइटीआइ, पॉलीटेक्निक व इंजीनियरिंग कालेजों में गुणवत्ता सुधार, क्षमता विकास, इकोटूरिज्म, शहरी विकास, परिवहन, जल संरक्षण व जल प्रबंधन जैसे कुछ महत्वपूर्ण क्षेत्रों में भी मिलकर काम किया जा सकता है।
जायका भारत प्रमुख ताकेमा साकामोतो ने कहा कि भारत व जापान एक दूसरे के स्वाभाविक सहयोगी हैं। इस नई परियोजना का उद्देश्य वनक्षेत्रों में भूमि क्षरण रोकने में राज्य के वन विभाग की क्षमता बढ़ाने और इसके माध्यम से स्थानीय लोगों के सुरक्षित जीवन के साथ ही उनकी आर्थिक हानि को कम करने में सहायता करना भी है। इस अनुबंध के तहत जायका ने प्राकृतिक आपदा से होने वाली क्षति के प्रबंधन से संबंधित तकनीकी सहायता की एक नई परियोजना के कार्यान्वयन पर भी सहमति दी।
वनक्षेत्रों में भूमि क्षरण के समाधान और भूमि संरक्षण संबंधी कार्यों का तकनीकी दृष्टि से सुदृढ़ नियोजन व कार्यान्वयन में वन विभाग और अधिक सक्षम हो सकेगा। प्राकृतिक आपदा से होने वाले भूस्खलन के प्रबंधन के लिए समुचित रणनीति भी विकसित की जा सकेगी। इस तकनीकी सहायता कार्यक्रम का समन्वय वर्तमान में जायका की सहायता से संचालित राज्य वन संसाधन प्रबंधन परियोजना व आपदा न्यूनीकरण संबंधी कार्यमद के साथ किया जाएगा। इस अवसर पर मुख्य सचिव शत्रुघ्न सिंह, प्रमुख सचिव डॉ. उमाकांत पंवार, सचिव अमित नेगी, आर मीनाक्षी सुंदरम आदि मौजूद थे। बहरहाल उत्तराखण्ड सरकार की ये कवायद और जापानियों की ये तकनीक कितनी कारगर सिद्ध होती है ये तो आने वाला वक्त ही बतायेगा।