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जानिए, आखिर चाँद देखकर क्यों मनाई जाती है ईद

नई दिल्ली। ईद-उल-फितर को मीठी ईद भी कहा जाता हैं। ईद का यह त्यौहार ना सिर्फ मुसलमान भाई मनाते हैं बल्कि सभी धर्मो के लोग इस मुक्कदस दिन की ख़ुशी में शरीक होते हैं। रमजान के 30वें रोज़े के बाद चांद देख कर ईद मनाई जाती हैं। इस साल भी 26 जून यानि आज ईद मनायी जा रही है पर क्या आप जानते हैं कि ईद और चांद का क्या कनेक्शन हैं? क्यों ईद चांद दिखने के बाद अगले दिन मनाई जाती हैं?

ईद मनाने का मकसद वैसे तो पूरी दुनिया में भाईचारा फैलाने का हैं, 624 ईस्वी में पहला ईद-उल-फितर मनाया गया था। इस्लामिक कैलंडर में दो ईद मनायी जाती हैं। दूसरी ईद जो ईद-उल-जुहा या बकरीद के नाम से भी जानी जाती हैं। ईद-उल-फितर का यह त्यौहार रमजान का चांद डूबने और ईद का चाँद नजर आने पर नए महीने की पहली तारीख को मनाया जाता हैं। रमजान के पुरे महीने रोजे रखने के बाद इसके खत्म होने की खुशी में ईद के दिन कई तरह की खाने की चीजे बनाई जाती हैं। सुबह उठा कर नमाज अदा की जाती हैं और खुदा का शुक्रिया अदा किया जाता हैं कि उसने पुरे महीने हमें रोजे रखने की शक्ति दी। नए कपड़े लिए जाते हैं और अपने दोस्तों-रिश्तेदारों से मिल कर उन्हें तोहफे दिए जाते हैं और पुराने झगड़े और मन-मुटावों को भी इसी दिन खत्म कर एक नयी शुरुआत की जाती हैं।

मीठी ईद के नाम से भी जाना जाता है ईद:
ईद-उल-फितर को मीठी ईद भी कहा जाता हैं। सेवइयों और शीरखुरमे की मिठास में लोग अपने दिल में छुपी कड़वाहट को भी भुला देते हैं। ईद का यह त्यौहार ना सिर्फ मुसलमान भाई मनाते हैं बल्कि सभी धर्मो के लोग इस मुक्कदस दिन की ख़ुशी में शरीक होते हैं ।

ईद-उल-फ़ित्र:
ईद-उल-फ़ित्र में ‘फ़ित्र’ अरबी का शब्द है जिसका मतलब होता है फितरा अदा करना। इसे ईद की नमाज़ पढने से पहले अदा करना होता हैं। फितरा हर मुसलमान पर वाजिब है और अगर इसे अदा नहीं किया गया तो ईद नहीं मनाया जा सकता। रोजा इस्लाम के अहम् फराइजो में से एक है और यह सब्र सिखाता है। रमज़ान में पूरे महीने भर के रोज़े रखने के बाद ईद मनाई जाती हैं। दरसल ईद एक तौफा है जो अल्लाह इज्ज़त अपने बन्दों को महिना भर के रोज़े रखने के बाद देते है। कहा जाता है के ईद का दिन मुसलमानों के लिये इनाम का दिन होता है। इस दिन को बड़ी ही आसूदगी और आफीयत के साथ गुजारना चाहिए और ज्यादा से ज्यादा अल्लाह की इबादत करनी चाहिए।

ईद और चांद का खास रिश्ता
ईद-उल-फ़ितर हिजरी कैलंडर (हिजरी संवत) के दसवें महीने शव्वाल यानी शव्वाल उल-मुकरर्म की पहली तारीख को मनाई जाती है। हिजरी कैलेण्डर की शुरुआत इस्लाम की एक प्रसिद्ध ऐतिहासिक घटना से मानी जाती है। वह घटना है हज़रत मुहम्मद द्वारा मक्का शहर से मदीना की ओर हिज्ऱत करने की यानी जब हज़रत मुहम्मद ने मक्का छोड़ कर मदीना के लिए कूच किया था।

हिजरी संवत जिस हिजरी कैलेण्डर का हिस्सा है वह चांद पर आधारित कैलेण्डर है। इस कैलेण्डर में हर महीना नया चांद देखकर ही शुरू माना जाता है। ठीक इसी तर्ज पर शव्वाल महीना भी ‘नया चांद’ देख कर ही शुरू होता है। और हिजरी कैलेण्डर के मुताबिक रमजान के बाद आने वाला महीना होता है शव्वाल। ऐसे में जब तक शव्वाल का पहला चांद नजर नहीं आता रमजान के महीने को पूरा नहीं माना जाता। शव्वाल का चांद नजर न आने पर माना जाता है कि रमजान का महीना मुकम्मल होने में कमी है। इसी वजह से ईद अगले दिन या जब भी चांद नजर आए तब मनाई जाती है।

जब भी ईद की बात होती है, तो सबसे पहले जिक्र आता है ईद के चांद का। ईद का चांद रमजान के 30वें रोज़े के बाद ही दिखता है। इसी चांद को देखकर ईद मनाई जाती है। हिजरी कैलेण्डर, जोकि इस्लामिक कैलेण्डर है, के अनुसार ईद साल में दो बार आती है। एक ईद होती है ईद-उल-फितर और दूसरी को कहा जाता है ईद-उल-जुहा। ईद-उल-फितर को महज ईद भी कहा जाता है। इसके अलावा इसे मीठी ईद भी कहा जाता है। जबकि ईद-उल-जुहा को बकरीद के नाम से भी जाना जाता है।

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