एफआरआई में हुआ गोष्ठी का आयोजन
देहरादून। वन संरक्षण प्रभाग, वन अनुसंधान संस्थान, देहरादून ने 27 जून, 2019 को कॉलेजों, विश्वविद्यालयों एवं संस्थानों के वैज्ञानिकों, शोधकर्ताओं, शिक्षाविदों तथा वनों से जुड़े लोगों के लिए “वन कीटों और रोगों के प्रबंधन में वर्तमान चुनौतियां” विषय पर एक दिवसीय अनुसंधान संगोष्ठी का आयोजन किया जिसमें सम्बन्धित राज्यों जैसे हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के सरकारी एवं गैर-सरकारी संगठनो ने भाग लिया। संगोष्ठी में हरियाणा, पंजाब और उत्तराखंड वन विभाग के हितधारकों एवं देहरादून के किसानों ने भी भाग लिया। संगोष्ठी का मुख्य उद्देश्य वन कीटों और रोगों के प्रबंधन एवं विभिन्न मुद्दों पर चर्चा करना और हितधारकों के साथ वन अनुसंधान संस्थान द्वारा किए गए अनुसंधान को साझा करना था। संगोष्ठी का उद्घाटन मुख्य अतिथि श्री अरुण सिंह रावत, भा.वा.स., निदेशक, वन अनुसंधान संस्थान, देहरादून ने किया। संबोधन में उन्होंने वन संरक्षण प्रभाग के इतिहास और उपलब्धियों पर श्रोताओं का परिचय दिया जो 1779 की शुरुआत में आते हैं।
उन्होंने बताया की जे. जी. कोइंग ने दीमक, ओडोनोटर्मेस रिडेमनी के जीवन इतिहास को प्रकाशित किया था। वन कीट विज्ञान एवं वन व्याधि प्रभाग जो अब वन संरक्षण प्रभाग का हिस्सा हैं, अपने-अपने क्षेत्र में अग्रणी हैं, और 100 से अधिक वर्षों से देश की वन पैथोलॉजिकल और एंटोमोलॉजिकल समस्याओं पर सराहनीय योगदान देते आ रहें है। उन्होंने हितधारकों द्वारा सामना किए जा रहे बबूल, साल और शीशम की मृत्यु-दर एवं साल हार्ट वुड बोरर, पोप्लर, सागौन और शीशम निष्पत्रक आदि की कीट प्रबंधन समस्याओं पर प्रकाश डाला। उन्होंने जलवायु परिवर्तन पर भी ध्यान आकर्षित किया, जो कि कीटों और फफूंद, दोनों पर पहले से ही तनावग्रस्त जंगलों की घटनाओं को बढ़ा रहा है। उन्होंने कीटनाशकों के अंधाधुंध अनुप्रयोगों पर भी अपनी चिंता व्यक्त की जिसके परिणामस्वरूप कीटों एवं रोगों, पर्यावरण प्रदूषण और मानव स्वास्थ्य से संबंधित समस्याओं का प्रतिरोध और पुनरुत्थान हुआ है।
निदेशक वन अनुसंधान संस्थान, देहरादून ने इच्छा जताई कि हितधारकों और प्रख्यात वैज्ञानिकों की उपस्थिति में दिन भर के विचार-विमर्श से कई वन सुरक्षा संबंधी मुद्दे सामने आएंगे जो अनुसंधान को अंजाम देने और इन नई समस्याओं के समाधान के लिए नई-नई परियोजनाओं को तैयार करने में वैज्ञानिकों की मदद करेंगे। डॉ. मौ. यूसुफ, प्रमुख वन संरक्षण प्रभाग ने अपने स्वागत भाषण में कहा कि कीटों के नियन्त्रण के लिए उपयोग किये गये कीटनाशकों के प्रभाव, गैर-लक्ष्य और लाभदायक कीटों जीवों जैसे परजीवी, शिकारी कीटों और परागण के कीटों इत्यादि पर भी विनाशकारी हैं। उन्होंने जोर दिया कि हानिकारक कीटों का जैविक नियंत्रण एक प्रभावी, पर्यावरणीय रूप से सुरक्षित और आर्थिक रूप से व्यवहार्य कीट प्रबंधन हैं। वन अनुसंधान संस्थान ने सागौन और पोप्लर के निष्पत्र्कों और युकेलिप्ट्स गाँल के जैविक नियंत्रण का विकास किया है, जिसने इन कीटों का सफल प्रबंधन किया गया है। पंजाब राज्य में मेगास्टिग्म स्पी. को व्रह्त्त गुणन कर यूकेलिप्टस गाल ग्रसित क्षेत्रों में छोड़ कर जैविक नियंत्रण लागू करके युकेलिप्ट्स गाँल ततैया के संक्रमण को नियंत्रित में किया गया है। ।
डॉ. एन.एस. के. हर्ष ने महामारी बनने से पहले समस्याओं की पहचान के लिए रोग और कीट सर्वेक्षण की आवश्यकता पर जोर दिया। डॉ. अमित पांडे, वन पैथोलॉजिस्ट ने साल एंड शीशम मृत्यु दर, एग्रोफोरेस्ट्री रोगों और जैव कवकनाशी के वर्तमान परिदृश्य के बारे में जानकारी दी। श्री जगदीश चंदर, पी.सी.सी.एफ. हरियाणा ने वन कीट एवं वन व्याधि से संबंधित कई क्षेत्रो की समस्याओं को चिह्नित किया। वरिष्ठ वैज्ञानिकों ने हाल ही में ओक के नाशि कीटों, पोप्लर डिफोलिएटर के प्रतिरोध, जैव-नियंत्रण और आणविक विकृति विज्ञान में वर्तमान रुझानों पर भी चर्चा की है। डॉ. विजय वीर, डी. आर. डी. ओ. ने फेरोमोन पर अपने शोध कार्यों को प्रस्तुत किया।
देहरादून और उसके आसपास विभिन्न विश्वविद्यालयों और अनुसंधान संगठनों के प्रमुख वन संरक्षण वैज्ञानिक – डॉ. ए.एन. शुक्ला, (सेवानिवृत्त) पूर्व प्रमुख वन व्याधि विज्ञान प्रभाग, व.अ.सं.; प्रो. एम. सी. नौटियाल पूर्व डीन बागवानी, जी. बी. पंत कृषि और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, पंत नगर; डॉ. मुख्तार अहमद (सेवानिवृत्त), पूर्व प्रमुख, वन कीट विज्ञान प्रभाग, व.अ.सं.; श्री. आर एस भंडारी (सेवानिवृत्त), पूर्व प्रमुख, वन कीट विज्ञान प्रभाग, व.अ.सं.; डॉ. वी. पी. उनियाल, डब्ल्यू.आई.आई.; डॉ. पंकज तिवारी, प्रभारी, क्षेत्रीय सेरीकल्चर रिसर्च स्टेशन, सहसपुर, देहरादून; डॉ. गौरव शर्मा, प्रभारी और डॉ. वीनिता शर्मा, उत्तरी क्षेत्रीय केंद्र, जूलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया, देहरादून ने संगोष्ठी में भाग लिया। जगदीश चंदर, भा.वा.स., हरियाणा से पी.सी.सी.एफ. और श्री चरचिल, भा.वा.स., सी.सी.एफ., निदेशक, राज्य वन अनुसंधान संस्थान, पंजाब ने भी सेमिनार में भाग लिया। उद्घाटन सत्र के अंत में डॉ. अमित पांडेय, प्रभारी, वन व्याधि डिसिप्लिन ने धन्यवाद प्रस्ताव प्रस्तुत किया।