14 साल में बनकर तैयार हुई थी ‘मुगल-ए-आजम’, फ़िल्म के डायरेक्टर को लोग कहते थे सनकी और जिद्दी
मुंबई। बॉलीवुड के सफल फिल्म निर्माता और निर्देशकों की श्रेणी में टॉप पर रहने वाले के. आसिफ को लोग पागल फिल्म डायरेक्टर भी कहते थे। इसकी वजह बहुत बड़ी थी। उनके जानने वालों के मुताबिक वह बड़े सनकी और जिद्दी इंसान थे। 14 जून 1922 को इटावा में जन्मे आसिफ एक बार जो सोच लेते थे उसे पूरा करके ही दम लेते थे। यही वजह थी कि लाख रुकावटों के बावजूद उन्होंने अपनी फिल्म मुगल-ए-आजम को पूरा कर लिया। लगातार 14 सालों तक फिल्म का निर्माण चलता रहा। विदेश से हाथी, घोड़े मंगवाए। यही नहीं सोने की कृष्ण की मूर्ति को सेट पर भारी सुरक्षा के बीच में रखकर सीन शूट किए गए थे। अपना सब कुछ फिल्म में दांव लगाने वाले आसिफ को बड़ा झटका तब लगा जब बड़े पर्दे पर मुगल-ए-आजम के रिलीज होते ही कोई रिस्पॉन्स नहीं मिला। वह तनाव में चले गए थे। उन्होंने बहुत सारे लोगों से पैसे उधार लिए थे। 9 मार्च 1971 को मुंबई में उनका निधन हो गया था।
सालों बाद फिल्म ने कमाए करोड़ों
रिलीज के होने के बाद भी फिल्म को लोग पसंद नहीं कर रहे थे। इससे उन्हें दिल का दौरा भी पड़ा। बॉलीवुड के जानकार बताते हैं कि उनकी मौत की असली वजह मुगल-ए-आजम फिल्म के फ्लॉप होने का तनाव भी थी। उनकी मौत के बाद यह फिल्म पूरे हिंदुस्तान में ही नहीं पाकिस्तान, इटली, जापान, अमेरिका, श्रीलंका, ऑस्ट्रेलिया में भी अलग-अलग भाषाओं में रिलीज हुई। करीब डेढ़ करोड़ की लागत से बनी इस फिल्म ने कुछ सालों बाद ही करोड़ों रुपये कमा लिए थे। लेकिन अपनी फिल्म की सफलताओं को देखने के लिए के आसिफ जिंदा नहीं थे।
‘प्यार किया तो डरना क्या’ गाने को फिल्माने में 10 लाख रुपये खर्च किये गए
चौदह सालों में 1.5 करोड़ की लागत से बनी फिल्म मुगल-ए-आजम के एक गाने ‘प्यार किया तो डरना क्या’ को फिल्माने में 10 लाख रुपये खर्च किये गए थे। ये उस दौर की वो रकम थी जिसमें एक पूरी फिल्म बन कर तैयार हो जाती थी। 105 गानों को रिजेक्ट करने के बाद नौशाद साहब ने ये गाना चुना था। इस गाने को लता मंगेशकर ने स्टूडियो के बाथरूम में जाकर गाया था, क्योंकि रिकॉर्डिंग स्टूडियो में उन्हें वो धुन या गूंज नहीं मिल पा रही थी जो उन्हें उस गाने के लिए चाहिए थी। उस गाने को आज तक उसके बेहतरीन फिल्मांकन के लिए याद किया जाता है। उसी फिल्म के एक और गाने ‘ऐ मोहब्बत जिंदाबाद’ के लिए मोहम्मद रफी के साथ 100 गायकों से कोरस गवाया गया था। इस फिल्म को बड़ा बनाने के लिए हर छोटी चीज पर गौर किया गया था।
आठवीं जमात तक ही पढ़ पाए
के. आसिफ आठवीं जमात तक ही पढ़े थे। पैदाइश से जवानी तक का वक्त गरीबी में गुजारा था। फिर उन्होंने भारतीय सिनेमा के इतिहास की सबसे बड़ी, भव्य और सफल फिल्म का निर्माण किया। 9 मार्च 1971 को दिल का दौरा पड़ने से वे इस दुनिया को अलविदा कह गए। भारतीय सिनेमा में अब तक की सर्वश्रेष्ठ फिल्म मुगल-ए-आजम को ही माना जाता है। के आसिफ ने अपने जीवन में केवल दो फिल्में ही बनाई थीं। के.आसिफ को खुद पर इतना कॉन्फिडेंस था कि सामने वाला घबरा जाता था। मुगल-ए-आजम की फिल्म की वजह से ही दिलीप कुमार और मधुबाला रातों रात स्टार बन गए थे। साल 2004 में यह फिल्म कलर होकर एक बार फिर बड़े पर्दे पर रिलीज हुई थी। जिसे दर्शकों ने बेहद पसंद किया था।