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ग्रहण के समय गर्भवती महिलाएं न करें ये काम, होगा ये असर

नई दिल्ली। आकाशमंडल में जब चन्द्रमा,पृथ्वी और सूर्य के बीच से होकर गुजरता है और पृथ्वी से देखने पर सूर्य पूर्ण या आंशिक रूप से ढका हुआ नजर आता है, तो सूर्यग्रहण लगता है और कंकणाकृति सूर्य ग्रहण के समय चन्द्र बिम्ब अनुपात में सूर्य बिम्ब से छोटा होने के कारण उसको पूर्णरुप से ग्रस्त नहीं कर पाताहै। जिससे सूर्य बिम्ब का अधिकतर भाग ग्रहण से प्रभावित रहता है और उसकी आकृति अंगूठी के समान दिखलाई देती है।

21 जून को कंकणाकृति सूर्य ग्रहण लगेगा। यह ग्रहण भारत में दृश्य रहेगा। कंकणाकृति सूर्य ग्रहण के प्रारम्भ में सूर्य-चन्द्र मृगशिरा नक्षत्र में रहेंगे और ग्रहण मोक्ष के समय चन्द्रमा आर्द्रा नक्षत्र में रहेगा। बता दें कि यह ग्रहण महत्वपूर्ण हो रहा है।

इस तरह होगा सूर्य ग्रहण

पृथ्वी का 70 प्रतिशत से अधिक भाग जलीय क्षेत्र है जबकि ग्रहण का 80 प्रतिशत भाग भूभाग को स्पर्श करता है। ग्रहण पक्ष का केवल 5 प्रतिशत भाग प्रशान्त महासागर में अन्त में समाप्त होता है। आचार्य इंदु प्रकाश के अनुसार चन्द्रमा की छाया प्रथम भूमध्य रेखा पर रिपब्लिक कांगो और डेमाकेटिक रिपब्लिक कांगो के उत्तर के कुछ अंशों के पास पड़ती है। उत्तर की ओर कुछ मुडकर यह लाल सागर दक्षिण सूडान होते हुये नील नदी पार करती है।

दक्षिण सूडान की पूर्वी सीमा के बाद ग्रहण पथ यूरोपिया होते झरिट्रिया पहुंचता है। यमन के कुछ भाग को छूते हुए यह अरब प्रायद्वीप में प्रवेश करता है। ओमान की खाड़ी और अरब सागर होते हुए यह पाकिस्तान के ग्वादर वलूचिस्तान में प्रवेश करता है। तीन सौ किलोमीटर उत्तर पूर्व की ओर चलता ग्रहण पथ सिन्धु नदी पहुंचता है।

यह भारत के रेगिस्तान के उपर से होता हुआ देहरादून के बाद जोशीमठ पहुचता है। ऊंचे पर्वतीय इलाकों को पार करता हुआ हिमालय के कुमायूं के पर्वक शिखरों, हरडोल से होता हुआ चीन की सीमा में प्रवेशकर तिब्बत पहुंचता है। तिब्बत की पूर्वी सीमा के बाद ग्रहण पथ चीन के सिचुआन प्राप्त में प्रवेश करता है। बाद में यह ताइवान सागर और तटीय चीन में प्रवेश करता है। यह गुआम क्षेत्र पार करने के पहले समाप्त हो जाता है।

यह कंकणाकृति रूप में मध्य अफ्रीका, दक्षिण एशिया चीन और प्रशान्त महासागर में दृश्य है खण्ड रूप में अफ्रीका, दक्षिण पूर्वी यूरोप, एशिया में दृश्य है।

सूर्य ग्रहण का समय

आचार्य इंदु प्रकाश के अनुसार ग्रहण स्पर्श काल सुबह 9 बजकर 16 मिनट पर होगा, कंकणाकृति ग्रहण 10 बजकर 19 मिनट पर शुरू होगा। इस ग्रहण का मध्य काल दोपहर 12 बजकर 10 मिनट पर होगा। कंकणाकृति ग्रहण दोपहर 2 बजकर 2 मिनट पर समाप्त हो जायेगा और इस ग्रहण का मोक्ष काल दोपहर 3 बजकर 4 मिनट पर होगा।

काशी में यह खण्डग्रास रूप में दृश्य होगा। काशी में ग्रहण स्पर्श काल सुबह 10 बजकर 31 मिनट पर होगा। मध्य काल दोपहर 12 बजकर 17 मिनट पर रहेगा एवं मोक्ष काल दोपहर 2 बजकर 40 पर होगा। ग्रहण ग्रास मान 0.821 रहेगा अर्थात सूर्य बिम्ब आधा से अधिक चन्द्रमा से ग्रहण ग्रस्त होगा।

सू्रय ग्रहण का सूतक

ग्रहण का सूतक 20 जून को रात्रि 10 बजकर 30 से प्रारम्भ हो जाएगा। जो ग्रहण समाप्त होने के साथ खत्म होगा।

सूतक काल में क्या करें और क्या न करें

सूतक शुरू होने के बाद मूर्ति स्पर्श, हास्य, विनोद से बचे, इस दौरान भोजन आदि करना वर्जित होता है। यह बाल-वृद्ध और अस्वस्थ लोगों पर लागू नहीं होता है। यानि जरुरत पड़ने पर ये लोग भोजन कर सकते है।

दरअसल ग्रहण के दौरान चारों तरफ बहुत अधिक निगेटिविटी फैल जाती है इसलिए घर में सभी पानी के बर्तन में, दूध में और दही में कुश या तुलसी की पत्ती या दूब धोकर डालनी चाहिए और ग्रहण समाप्त होने के बाद दूब को निकालकर फेंक देना चाहिए।

ग्रहण के समय रसोई से संबंधित कोई भी कार्य नहीं करना चाहिए, खासकर कि खाना नहीं बनाना चाहिए।

गर्भवती महिलाएं  ग्रहण के समय बरतें सावधानियां

गर्भवती महिलाओं को इस दौरान अपना खास ख्याल रखना चाहिए। उन्हें किसी भी तरह का काम नहीं करना चाहिए।

सुई में धागा नहीं डालना चाहिये।
कुछ काटना, छीलना नहीं चाहिये।
कुछ छौंकना या बघारना नहीं चाहिये।

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार ग्रहण के समय प्रेग्नेंट महिलाओं को बाहर नहीं निकलना चाहिए।

घर में रहकर पूजा-पाठ करना चाहिए और सूर्यदेव के मंत्रों का तेज आवाज़ में उच्चारण करना चाहिए। सूर्यदेव का एक महत्वपूर्ण मंत्र इस प्रकार है-
‘ऊँ घृणिः सूर्याय नमः’
इस मंत्र का जाप करने से आपके आस-पास निगेटिविटी नहीं रहेगी।

जब ग्रहण शुरू हो तब थोड़ा-सा अनाज और कोई पुराना पहना हुआ कपड़ा निकालकर अलग रख दें और जब ग्रहण समाप्त हो जाये तब उस कपड़े और अनाज को आदरसहित, रिक्वेस्ट के साथ किसी जरुरतमंद को दान कर दें। इससे आपको शुभ फल प्राप्त होंगे।

 

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