नहीं है इस बीमारी की दवा, दूर करने में लग जाएंगे कई जन्म
आचार्य चाणक्य की नीतियां और विचार भले ही आपको थोड़े कठोर लगे लेकिन ये कठोरता ही जीवन की सच्चाई है। हम लोग भागदौड़ भरी जिंदगी में इन विचारों को भरे ही नजरअंदाज कर दें लेकिन ये वचन जीवन की हर कसौटी पर आपकी मदद करेंगे। आचार्य चाणक्य के इन्हीं विचारों में से आज हम एक और विचार का विश्लेषण करेंगे। आज का ये विचार नजर और नजरिए पर आधारित है।
‘सोच अच्छी होनी चाहिए…क्योंकि नजर का इलाज तो संभव है लेकिन नजरिए का नहीं।’ आचार्य चाणक्य
नजर कमजोर होने पर आसपास या फिर दूर की चीजें धुंधली दिखने लगती हैं। ऐसे में आईड्रॉप डालकर या फिर चश्मे का इस्तेमाल करके आप अपनी नजर को बढ़ा सकते हैं। ऐसा करने पर आपको जो चीजें धुंधली दिख रही हैं वो साफ-साफ दिखाई देने लगेंगी। लेकिन अगर किसी के नजरिए पर धूल जम गई तो उसे साफ करना किसी भी डॉक्टर के बस के बाहर है। ऐसा इसलिए क्योंकि सोच इंसान के दिमाग की उपज होती है। दिमाग से निकलने वाली ये सोच इंसान खुद बनाता है। इस कारण वो अपने नजरिए पर सबसे ज्यादा भरोसा करता है।
अगर कोई व्यक्ति उसके नजरिए को बदलने या फिर उस पर सवाल उठाता है तो उसकी सामने वाले से बहस होना तय है। ऐसा इसलिए क्योंकि व्यक्ति को लगता है जो नजरिया उसने बनाया है वो अपने आसपास की चीजों को देखकर बनाया है। जिसके बाद उसने अपनी ये राय बनाई। भले ही वो नजरिया ठीक ना भी हो तो भी वो उसे उस पर अटूट विश्वास होता है। ऐसे में इस इंसान को समझाने या फिर बदलने की कोशिश करने का मतलब है कि पत्थर से सिर फोड़ना। इसी वजह से आचार्य चाणक्य ने कहा है कि नजरिए या इलाज नहीं किया जा सकता।