प्रकृति से प्रेम एवं नव फसल की खुशियों का प्रतीक है हरेला पर्व: संजय कुमार
देहरादून। भाजपा के पूर्व संगठन मंत्री संजय कुमार ने हरेला पर्व पर बताया उत्तराखंड आदिकाल से अपनी परम्पराओं और रिवाजो द्वारा प्रकृति प्रेम और प्रकृति के प्रति अपनी जिम्मेदारी और प्रकृति की रक्षा की सद्भावना को दर्शाता आया है। इसीलिये उत्तराखंड को देवभूमि और प्रकृति प्रदेश भी कहते हैं। प्रकृति को समर्पित उत्तराखंड का लोक पर्व हरेला त्योहार या हरेला पर्व प्रत्येक वर्ष कर्क संक्रांति को, श्रावण मास के पहले दिन यह त्योहार मनाया जाता है।
उन्होंने बताया उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल में विशेष रूप से मनाया जाने वाला यह त्यौहार, प्रकृति प्रेम के साथ-साथ कृषि विज्ञान को भी समर्पित है। 10 दिन की प्रक्रिया में मिश्रित अनाज को देवस्थान में उगाकर, कर्क संक्रांति के दिन हरेला काट कर यह त्योहार मनाया जाता है। जिस प्रकार मकर संक्रांति से सूर्य भगवान उत्तरायण हो जाते हैं, औऱ दिन बढ़ने लगते हैं, वैसे ही कर्क संक्रांति से सूर्य भगवान दक्षिणायन हो जाते हैं। और कहा जाता है, की इस दिन से दिन रत्ती भर घटने लगते है। और रातें बड़ी होती जाती हैं।
कैसे मनाते हैं हरेला, हरेला कैसे बोया जाता है
संजय कुमार ने बताया हरेला बोने के लिए हरेला त्यौहार से लगभग 12 दिन पहले से तैयारी शुरू हो जाती है। घर के पास शुद्ध स्थान से मिट्टी निकाल कर सुखाई जाती है। और उसे छान कर रख लेते हैं। और हरेले में 7 या 5 प्रकार का अनाज का मिश्रण करके बोया जाता है। हरेला के 10 दिन पहले देवस्थानम में, लकड़ी की पट्टी में छनि हुई मिट्टी को लगाकर उसमे 7 या 5 प्रकार का मिश्रित अनाज बो देते हैं। इसको हरेला बोना कहते हैं।
हरेला बोते समय ध्यान देने योग्य बातें –
उन्होंने बताया मिश्रित अनाज के बीज सड़े न हो।
हरेले को उजाले में नही बोते, हरेले को सूर्य की रोशनी से बचाया जाता है। यदि मंदिर में बाहर का उजाला हो रहा, तो वहां पर्दा लगा देते हैं।
प्रतिदिन सिंचाई संतुलित और आराम से किया जाती है। ताकि फसल सड़े ना, और पट्टे की मिट्टी बहे ना।
हरेले की पूर्व संध्या को हरेले की गुड़ाई निराई की जाती है। और पहले इस दिन मीठी रोटी, (मिठे चिले) बनाये जाते थे। वर्तमान में यह परम्परा कम हो गयी है। हरेले के दिन पंडित जी देवस्थानम में हरेले की प्राणप्रतिष्ठा करते हैं। पकवान बनाये जाते हैं। और प्रकृति की रक्षा के प्रण के साथ पौधे लगाते हैं। कटे हुए हरयाव को गाव के सभी मंदिरों में चढ़ता है। साथ साथ मे घर मे छोटो को बड़े लोग हरेले के आशीष गीत के साथ हरेला लगाते हैं। और गाव में या रिश्तेदारी में नवजात बच्चों को विशेष करके हरेला का त्योहार भेजा जाता है।
हरेले की शुभकामनाएं देकर बुजुर्ग बच्चो को आशीर्वाद देते हैं। हरेला कुमाउनी संस्कृति का प्रमुख लोकपर्व है। यह उत्तराखंड के प्रसिद्ध लोक पर्वों में से एक है। हरेला त्यौहार प्रकृति से प्रेम एवं नव फसल की खुशियों व आपसी प्रेम का प्रतीक त्यौहार है।