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भारत की आजादी के 75वें वर्ष का जश्न मनाने की एक विशिष्ट पहल है “आजादी का अमृत महोत्सव” : संजय कुमार

देहरादून। राष्ट्रगान का संकलन 15 अगस्त 2021 को लाइव दिखाया जाएगा। आजादी का अमृत महोत्सव भारत की आजादी के 75वें वर्ष का जश्न मनाने के उपलक्ष्य में की गयी एक विशिष्ट पहल है। आजादी का अमृत महोत्सव भारत की आजादी की 75वां वर्ष मनाने के उपलक्ष्य में पूरे देश में मनाया जा रहा है।

15 अगस्त 1947 भारत के लिए बहुत भाग्यशाली दिन था। इस दिन अंग्रजों की लगभग 200 वर्ष गुलामी के बाद हमारे देश को आज़ादी प्राप्त हुई थी। भारत को आज़ादी दिलाने के लिए कई स्वतंत्रता सेनानियों को अपनी जान गवानी पड़ी थी। स्वतंत्रता सेनानियों के कठिन संघर्ष के बाद भारत अंग्रजों की हुकूमत से आज़ाद हुआ था।

आज हम दुर्भाग्य के एक युग को समाप्त कर रहे हैं और भारत पुनः स्वयं को खोज पा रहा है। आज हम जिस उपलब्धि का उत्सव मना रहे हैं, वो केवल एक कदम है, नए अवसरों के खुलने का। इससे भी बड़ी विजय और उपलब्धियां हमारी प्रतीक्षा कर रही हैं। भारत की सेवा का अर्थ है, लाखों-करोड़ों पीड़ितों की सेवा करना।

इसका अर्थ है निर्धनता, अज्ञानता, और अवसर की असमानता मिटाना। हमारी पीढ़ी के सबसे महान व्यक्ति की यही इच्छा है कि हर आंख से आंसू मिटे। संभवतः यह हमारे लिए संभव न हो, पर जब तक लोगों कि आंखों में आंसू हैं, तब तक हमारा कार्य समाप्त नहीं होगा।

आज एक बार फिर वर्षों के संघर्ष के बाद, भारत जागृत और स्वतंत्र है। भविष्य हमें बुला रहा है। हमें कहां जाना चाहिए और हमें क्या करना चाहिए, जिससे हम आम आदमी, किसानों और श्रमिकों के लिए स्वतंत्रता और अवसर ला सकें, हम निर्धनता मिटा, एक समृद्ध, लोकतान्त्रिक और प्रगतिशील देश बना सकें? हम ऐसी सामाजिक, आर्थिक संस्थाओं को बना सकें, जो प्रत्येक स्त्री-पुरुष के लिए जीवन की परिपूर्णता और न्याय सुनिश्चित कर सके। कोई भी देश तब तक महान नहीं बन सकता जब तक उसके लोगों की सोच या कर्म संकीर्ण हैं।”

आजादी मिलने के बाद के 75 वर्षों में भारत ने बहुत अधिक आर्थिक और तकनीकी तरक्की की है, लेकिन आज भी उसकी गिनती विकसित देशों में नहीं की जाती। आर्थिक विकास का फल सभी को समान रूप से नहीं मिल पाया है, नतीजतन अमीर और गरीब के बीच की खाई और अधिक चौड़ी हुई है और धन कुछेक हाथों में केंद्रि‍त होता गया है। शिक्षा के क्षेत्र में उन्नति तो हुई है और भारत के कुछ शिक्षा संस्थान दुनिया भर में अपने उच्च स्तर के लिए जाने जाते हैं, लेकिन इसके साथ ही यह भी सही है, कि प्राथमिक और माध्यमिक स्तर की शिक्षा की उपेक्षा की गई है। इस उपेक्षा के कारण शैक्षिक संरचना की नींव कमजोर रह गई है।

(15 अगस्त पर विशेष, भाजपा पूर्व संगठन महामंत्री संजय कुमार की कलम से)

 

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