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जम्मू-कश्मीर में भूकंप के तेज झटके, दिल्ली-एनसीआर में भी महसूस हुई हलचल

श्रीनगर/नई दिल्ली। जम्मू-कश्मीर में भूकंप के तेज झटके महसूस किए गए। रिक्टर स्केल पर भूकंप की तीव्रता 5.9 मापी गई है। इस भूकंप का केंद्र अफगानिस्तान के हिंदूकुश इलाके में था। भूकंप इतना तेज था की कश्मीर में लोग घरों से बाहर निकल गए। वहीं इस भूकंप की तीव्रता दिल्ली-एनसीआर में भी महसूस की गई। भूकंप वैज्ञानिक डॉक्टर जेएल गौतम ने बताया कि यह भूकंप जिस हिंदकुश इलाके में आया, वहां से भारत में जम्मू-कश्मीर काफी पास है। इस कारण ज्यादा झटके वहीं महसूस किए गए। हालांकि दिल्ली-एनसीआर में भी भूकंप के झटकों को महसूस किया गया।

सवाल यह उठता है कि तेज भूकंप आ जाए, तो इस स्थिति में भूकंप के झटके को सहने के लिए दिल्ली कितनी तैयार है। भूकंप पर वल्नेबरिलिटी काउंसिल ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट है, यह रिपोर्ट कहती है कि दिल्ली तेज भूकंप के झटकों को सहने के लिए बिल्कुल तैयार नहीं है। दरअसल दिल्ली को सिस्मिक जोन 4 में रखा गया है। चार और पांच जोन को नुकसान की बड़ी आशंका वाले स्थानों को रखा गया है।वैसे दिल्ली-एनसीआर की हर ऊंची इमारत असुरक्षित नहीं है। इस बात की तसदीक वैज्ञानिकों द्वारा हाल के वर्षों में तैयार की गई रिपोर्ट से भी स्पष्ट होती है।

अपनी रिपोर्ट में वैज्ञानिकों ने चेताया है कि इन इमारतों का गलत तरीके से निर्माण इन्हें रेत में भी धंसा सकता है। इसके साथ ही वैज्ञानिकों ने यह भी कहा है कि सिस्मिक जोन-4 में आने वाली राजधानी दिल्ली भूकंप के बड़े झटके से खासा प्रभावित हो सकती है। अगर यहां 7 की तीव्रता वाला भूकंप आया तो दिल्ली की कई सारी इमारतें और घर रेत की तरह भरभराकर गिर जाएंगे। ऐसा इसलिए है, क्योंकि यहां की इमारतों में इस्तेमाल होने वाली निर्माण सामग्री ऐसी है, जो भूकंप के झटकों का सामना करने में पूरी तरह से सक्षम नहीं है। दिल्ली में मकान बनाने की निर्माण सामग्री ही आफत की सबसे बड़ी वजह है।

भूकंप सहने के लिए क्यों तैयार नहीं दिल्ली, 4 अहम बातें

1. लगभग हर रिसर्च और हर विशेषज्ञ यही मानते हैं कि दिल्ली की 70-80% इमारतें भूकंप का औसत से बड़ा झटका झेलने के लिहाज से डिजाइन ही नहीं की गई हैं। पिछले कई दशकों के दौरान यमुना नदी के पूर्वी और पश्चिमी तट पर बढ़ती गईं इमारतें खासतौर पर बहुत ज्यादा चिंता की बात है क्योंकि अधिकांश के बनने के पहले मिट्टी की पकड़ की जांच नहीं हुई है।

2. दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र की एक बड़ी समस्या आबादी का घनत्व भी है। डेढ़ करोड़ से ज्यादा आबादी वाले दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र में लाखों इमारतें दशकों पुरानी हो चुकी हैं और तमाम मोहल्ले एक दूसरे से सटे हुए बने हैं।

3. दिल्ली से थोड़ी दूर स्थित पानीपत इलाके के पास भूगर्भ में फॉल्ट लाइन मौजूद हैं, जिसके चलते भविष्य में किसी बड़ी तीव्रता वाले भूकंप की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता। दिल्ली-एनसीआर में जमीन के नीचे मुख्यतया पांच लाइन दिल्ली-मुरादाबाद, दिल्ली-मथुरा, महेंद्रगढ़-देहरादून, दिल्ली सरगौधा रिज और दिल्ली- हरिद्वार रिज मौजूद है।

 4. हैदराबाद स्थित राष्ट्रीय भूभौतिकीय अनुसंधान संस्थान के शोध के अनुसार प्राथमिक स्तर पर इन भूकंपों की एक वजह भूजल का गिरता स्तर भी सामने आ रहा है। भू वैज्ञानिकों के अनुसार भूजल को धरती के भीतर लोड (भार) के रूप में देखा जाता है। यह लोड फाल्ट लाइनों के संतुलन को बरकरार रखने में मददगार होता है। भूजल के गिरते स्तर से फाल्ट लाइनों का लोड असंतुलित हो रहा है।

कैसी​ इमारतों से सबसे ज्यादा परेशानी

रिपोर्ट में कहा गया है कि दिल्ली के 91.7 प्रतिशत मकानों की दीवारें पक्की ईंटों से बनी हैं, जबकि कच्ची ईंटों से 3.7 प्रतिशत मकानों की दीवारें बनी हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि कच्ची या पक्की ईंटों से बनी इमारतों में भूकंप के दौरान सबसे ज्यादा दिक्कत आती है। ऐसे में इस मैटीरियल से बिल्डिंग को बनाते वक्त सावधानी बरतनी चाहिए और विशेषज्ञों से सलाह जरूर लेनी चाहिए। इसके लिए नेशनल बिल्डिंग कोड 2016 का पालन करना चाहिए।

चौथे सबसे ऊंचे क्षेत्र के अंतर्गत में आता है दिल्ली
देहरादून में वाडिया इंस्टिट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के विशेषज्ञों के अनुसार इंडियन प्लेट्स के आंतरिक हिस्से में बसे दिल्ली-एनसीआर में भूकंप का लंबा इतिहास है। हालांकि भूकंप का समय, जगह और तीव्रता का साफ तौर पर अंदाजा नहीं लगाया जा सकता, लेकिन यह साफ है कि एनसीआर क्षेत्र मे लगातार भूकंप के झटके आ रहे हैं, जो राजधानी में बड़े भूकंप की वजह बन सकते हैं। भौगोलिक दृष्टि से भी दिल्ली महत्वपूर्ण है, यह भारत में चौथे सबसे ऊंचे क्षेत्र के अंतर्गत आता है, जिससे यह भूकंप की चपेट में आ जाता है। दिल्ली ज्यादातर भूकंप का अनुभव तब करती है जब एक भूकंप मध्य एशिया या हिमालय पर्वतमाला के क्षेत्रों को हिट करता है।

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