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बाजार में बिकने वाले फल और सब्जियों में बड़े पैमाने पर हो रहा कीटनाशक का प्रयोग, पढ़िए पूरी रिपोर्ट

नागपुर। महाराष्ट्र के नागपुर सहित पूरे विदर्भ के बाजार में इन दिनों बिकने वाली सब्जियां और फल में कीटनाशक की मात्रा बड़े पैमाने पर पाई जा रही है। इस बात का खुलासा नागपुर में स्थित महाराष्ट्र सरकार द्वारा संचालित ‘इंसेक्टिसाइड रेसिड्यू टेस्टिंग लैबोरेट्री’ ने की है। आईआरटीएल विभाग के वैज्ञानिकों ने बताया कि बाजार में उपलब्ध सब्जियों एवं फल में ऐसे कीटनाशक पाए जा रहे हैं, जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं। बाजार से कुछ फल एवं सब्जियां जांच के लिए लैब में लाई गई उनमें पालक, मिर्ची, टमाटर, बैगन, करेला, ग्वारफली, गोभी, शिमला मिर्च, लोकी, हरा मटर सब्जियों का समावेश है जिनमें कीटनाशक की मात्रा थोड़े बड़े पैमाने में पाई गई है।

35 में से 15 सैंपल मापदंडों पर खरे नहीं उतरे

लैब के अधिकारियों ने बताया कि बाजार से लाये गये फलों में भी कीटनाशक की मात्रा पाई गई है। इनमें संतरा, मोसम्मी, अंगूर , पपीता का सैंपल लिया गया था, जिसमें थोड़े या ज्यादा मात्रा में कीटनाशक की मात्रा पाई गई है, जो शरीर के लिए घातक है। पिछले 1 वर्ष में लैब में 35 सैंपल टेस्ट किए गए उनमें से 15 सैंपल मापदंडों पर खरे नहीं उतरे। लैब के वैज्ञानिकों का कहना है कि अनाज में यह मात्रा ना के बराबर मिलती है क्योंकि अनाज की ऊपरी परत प्रोसेसिंग में हटा दी जाती है। दाल, विभिन्न प्रकार के चावल या अन्य जो अनाज हैं उसके ऊपरी परत हटाकर ही लोग उसका सेवन करते हैं एवं अनाज को सुखाकर उसको उपयोग में लाने के प्रोसेस किया जाता है तो कीटनाशक के छिड़काव के कई महीने बाद उसका उपयोग खाने में लोग लेते हैं, इसलिए उसमें मात्रा ना के बराबर होती है। लेकिन सब्जियां एवं फलों में तो कभी-कभी ऐसा देखा जाता है कि एक या दो दिन पहले कीटनाशक का छिड़काव हुआ है और फल एवं सब्जियां बाजार में आ गई हैं।

ऑर्गेनिक कृषि में उत्पादन नहीं बढ़ता: किसान

वहीं किसानों का कहना है कि धीरे-धीरे मिट्टी की उपज शक्ति समाप्त हो गई है और ज्यादा उत्पादन के लिए किसान कीटनाशकों का उपयोग करते हैं, नेचुरल खेती जिसे ऑर्गेनिक कृषि कहा जाता है उसमे उत्पादन नहीं बढ़ता है, ना उसका बाजार मूल्य मिलता है। ऐसा देखा जा रहा है कि एक फसल में कम से कम 5 से 6 बार कीटनाशकों का छिड़काव करना पड़ता है, क्योंकि अलग-अलग प्रकार की कीड़ों की प्रजातियां फसलों को नुकसान पहुंचाती है।

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