उत्तराखंड के हजारों गांवों में नहीं पहुंची सड़क, आयोग की रिपोर्ट में हुए कई खुलासे
ग्राम्य विकास एवं पलायन निवारण आयोग ने प्रदेश के पलायन की जिन प्रमुख समस्याओं को जिम्मेदार माना है, उनमें एक सड़कें भी हैं। अच्छी सड़कों के अभाव में ग्रामीणों को स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार जैसी महत्वपूर्ण सुविधाएं सहज रूप से उपलब्ध नहीं हैं।
देहरादून। राज्य गठन के 22 साल बाद भी प्रदेश में छह हजार से अधिक गांवों में सड़क नहीं पहुंची है। हालत यह है कि 84 गांवों के लोग आज भी 10-10 किमी पैदल चलने को मजबूर हैं। इतना रास्ता नापने के बाद वे मोटर मार्ग तक पहुंच पाते हैं। प्रदेश में 5828 गांव आज भी शून्य से पांच किमी तक के फासले पर हैं।
यह खुलासा ग्राम्य विकास एवं पलायन निवारण आयोग की दूसरी अंतरिम रिपोर्ट से हुआ है। आयोग ने प्रदेश के पलायन की जिन प्रमुख समस्याओं को जिम्मेदार माना है, उनमें एक सड़कें भी हैं। अच्छी सड़कों के अभाव में ग्रामीणों को स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार जैसी महत्वपूर्ण सुविधाएं सहज रूप से उपलब्ध नहीं हैं।
इस कारण उन्हें ऐसे स्थानों पर पलायन करना पड़ रहा है, जहां आजीविका या रोजगार के साथ उन्हें अन्य सुविधाएं भी आसानी से मिल जाएं। रिपोर्ट के मुताबिक, राज्य में 10 किमी से अधिक की दूरी पर 82 गांव, तोक और मजरे मौजूद है। छह से 10 किमी दूरी पर 376 तथा शून्य से पांच किमी दूरी पर 5828 गांव सड़क सुविधा से वंचित हैं।
इन ब्लाॅकों में सड़कों की सबसे अधिक कमी
विकासखंड ओखलकांडा 197, धौलादेवी में 194 व डीडहाट 191 गांव सड़कों से वंचित हैं। अलबत्ता विकासनगर, हल्द्वानी, रुद्रपुर और बाजपुर ब्लाॅक में सिर्फ एक-एक गांव सड़क से नहीं जुड़ पाए हैं। ये सभी मैदानी गांव हैं।