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दून की हवा में घुल रहा ज़हर

देहरादून। अपनी शांति और सुन्दरता के लिए विश्वविख्यात देहरादून में अब पहले जैसा कुछ भी नहीं रहा, सब कुछ बदल चुका है। जहां पहले देहरादून में सुन्दरता और शांति हुआ करती थी वहीं अब यहां बेतहाशा वाहनों की लम्बी कतारें, शोर-शराबा और प्रदूषण नजर आता है। दून में रोजाना तेजी से बढ़ते वाहनों की वजह से यहां की हवा में जहर घुलने लगा है।

कभी शुद्ध आबोहवा के लिए जाने वाली दून की वादियां प्रदूषण की मार से बेहाल होने लगी हैं। राजधानी देहरादून में वायु प्रदूषण तो मानकों से काफी ऊपर पहुंच ही चुका है, अब ध्वनि प्रदूषण भी सीमा लांघने लगा है। हालांकि अभी इसे खतरनाक स्तर पर नहीं माना जा रहा, लेकिन अलार्मिंग अवश्य कहा जा रहा है। यही वजह है कि प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने दून के जिलाधिकारी को शोर पर नियंत्रण के लिए कुछ सिफारिश भेजी हैं।

दरअसल, राजधानी बनने के बाद बीते 16 साल में देहरादून में वाहनों का दबाव करीब तीन गुने से ज्यादा बढ़ गया है। ऐसे में वाहनों के शोर के साथ ही प्रेशर हार्न भी ध्वनि प्रदूषण का बड़ा कारण बने हुए हैं। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने दिसंबर 2016 में शहर में विभिन्न स्थानों पर दर्ज ध्वनि प्रदूषण को लेकर जारी रिपोर्ट में  खतरनाक स्तर की ओर बढ़ रहे शोर की स्थिति को उजागर किया है।

रिपोर्ट के अनुसार साइलेंस जोन गांधी पार्क और घंटाघर के साथ ही सर्वे चौक की स्थिति ज्यादा गंभीर है। मुख्य पर्यावरण अधिकारी अमरजीत सिंह ने बताया कि मानकों के अनुसार औद्योगिक क्षेत्र में दिन के वक्त ध्वनि की तीव्रता 75 डेसिबल, व्यावसायिक में 65, आवासीय क्षेत्रों में 55 और साइलेंस जोन में 50 डेसिबल से अधिक नहीं होनी चाहिए। लेकिन दून में आवासीय क्षेत्रों को छोड़कर ध्वनि प्रदूषण सभी क्षेत्रों में मानकों से अधिक है।

उन्होंने बताया कि इस पर नियंत्रण के लिए प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने परिवहन विभाग और जिलाधिकारी को अपनी सिफारिशें भेज दी हैं। अब ऐसे में देहरादून की पर्यटन नगरी की पहचान को भी खतरा होने लगा है। ऐसा प्रतीत हो रहा है कि वो दिन दूर नहीं जब पर्यटन नगरी के रूप में पहचाने जाने वाली दून नगरी अपनी बची-खुची  पहचान भी खो दे।

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