बलात्कारी बाबा के चरणों में सिर टिकाने वाला सीएम आखिर कैसे उठाता बाबा के गुंडों पर हथियार
नई दिल्ली। डेरा सच्चा सौदा के प्रमुख गुरमीतसिंह राम रहीम को न्यायालय ने शुक्रवार को साध्वी से बलात्कार के आरोप में दोषी करार देकर जेल भेज दिया। दुष्कर्मी बाबा की गिरफ्तारी को लेकर उसके अंधभक्तों ने हरियाणा, पंजाब और दिल्ली समेत यूपी के नोयडा और गाज़ियाबाद में जमकर उत्पात मचाया। इस हिंसा में अबतक 32 लोगों के मारे जाने की आधिकारिक खबर मिली है। किन्तु इस हिंसा के लिए सारा देश हरियाणा की मनोहर लाल खट्टर सरकार को ही जिम्मेवार मान रहा है।
भाजपा की मनोहर लाल खट्टर सरकार राज्य में अपनी जिम्मेवारी निभाने में पूरी तरह से चूक गयी और पूरी तरह दुष्कर्मी बाबा के गुंडों के आगे बेबस नज़र आई। एक ओर बाबा के गुंडे सड़कों पर तांडव करते रहे वहीँ मुख्यमंत्री खट्टर टीवी में बैठे ये तमाशा चुपचाप देखते रहे। वाकई मुख्यमंत्री खट्टर ने साबित कर दिया कि ये खट्टर नहीं “खटारा” सरकार है।
सवाल ये उठता है कि जब सरकार को मालूम था कि ऐसे हालात हो सकते हैं तो धारा 144 लगे होने के बावजूद भीड़ को इकठ्ठा क्यों होने दिया गया। पुलिस क्यों तमाशबीन बनी रही। आखिर खट्टर ने पुलिस को लॉ एंड आर्डर को नियंत्रित करने के आदेश पहले क्यों नहीं दिये। बाद में सिर्फ इतना कह देने से कि ‘हमसे चूक हो गयी’ उनका गुनाह कम नहीं हो जाएगा।
मगर सीएम खट्टर भी क्या करते , कैसे हथियार उठा लेते इन गुंडों के खिलाफ। कल ये लोग ही तो थे जो चुनावी जीत का आधार बने थे। आखिर कैसे सुरक्षाबलों को कड़े आदेश दे देते। दुष्कर्मी बाबा का हमेशा उनके सिर पर हाथ रहा है, अब कैसे वो वचन भूल जाएं जो समर्थन के समय किया था। दामन फैला कर तो कांग्रेस भी गयी थी पर बाबा ने प्रसाद सिर्फ भाजपा की ही झोली में डाला था।
साहब ये कलयुग है अब स्वयं भगवान श्री कृष्ण स्वयं समझाने नहीं आयेंगे कि हे खट्टर ! जब सत्य की राह त्याग कर अपने सगे संबंधी बगावत करेंगे तो हथियार उठाने से मत चूकना। यूं तो टेबल पर एलआईयू भी रिपोर्ट रख रही थी, यूं तो देश की मीडिया भी दंगे होने की संभावना को चीख-चीख कर बता रही थी पर खट्टर कैसे सजग हो जाते, यदि हो जाते तो क्या ये बाबा का अप्रत्यक्ष विरोध नहीं था? अब पूरा देश गाली दे रहा है तो दे, उनके साथ साक्षी महाराज जैसे ओछी राजनीति करने वाले नेता जो हैं।
सवाल ये भी उठता है कि आखिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हिंसा की संभावनाओं को देखते हुए खट्टर को सख्ताई बरतने और राजधर्म निभाने के आदेश क्यों नहीं दिए। केंद्र सरकार 32 लोगों के मरने का इंतज़ार क्यों करती रही। घटना के बाद पीएम का शोक जताना क्या इन जख्मों पर मरहम लगा पायेगा। क्यों भाजपा हाईकमान सीएम खट्टर का इस्तीफा नहीं मांग रहा, क्या अब भी खट्टर की इस “खटारा” सरकार को पद पर बने रहने का अधिकार है?