भीड़तंत्र का शिकार बनी अबला दर-दर की ठोकरें खाने को है मजबूर
देहरादून, (नित्यानंद भट्ट)। हाल ही में पुलिस प्रशासन के सामने ही कुछ लोगों ने ऐसा तांडव मचाया की मानवता ही शर्मसार हो गई। फिल्मों में अक्सर हम देखते हैं कि दबंग अपनी दबंगई करते हैं और पुलिस तमाशबीन बनी चुपचाप देखती रहती है। ऐसा ही एक नजारा हाल में देखने को मिला। पिथौरागढ़ जनपद के धारचूला गांव में इस पटकथा की शुरुआत हुई। प्राप्त जानकारी के अनुसार देहरादून निवासी एक महिला द्वारा देहरादून के कैंट थाने में जिशान नामक युवक के खिलाफ यौन शोषण एवं डराने धमकाने समेत विभिन्न धाराओं में मुकदमा दर्ज कराया गया। मामला महिला से संबंधित होने के कारण पुलिस ने मुकदमा दर्ज कर तत्काल कार्यवाही शुरू कर दी।
यह मामला उत्तराखंड के कई समाचार पत्रों में प्रमुखता से प्रकाशित किया गया। घटना प्रकाश में आने पर धारचूला में गुस्से का माहौल पैदा हो गया। मामला इसलिए भी गहराया क्योंकि महिला गैर समुदाय से ताल्लुक रखती थी, वहीं दूसरी ओर इस पूरे प्रकरण से बेखबर आरोपी जीशान की मां आमना अपनी बेटी को मेडिकल की परीक्षा दिलाने शहर से बाहर गई हुई थी और जीशान घर पर ही मौजूद था। इस प्रकरण से नाराज दर्जनों लोग सड़कों पर उतर आए और आमना के घर की और चल दिए।
जैसे ही जीशान को भीड़ के आने की भनक लगी वह जान बचाकर भाग निकला। गुस्साई भीड़ ने बेकाबू होकर पहले पुलिस की मौजूदगी में ही उसके घर में जमकर लूटपाट की व कीमती सामान बाहर फेंका। कुछ सामान लोग उठाकर साथ ले गए जबकि कीमती सामान, उसके घर व दुकान को सरेआम आग के हवाले कर दिया गया। इस पूरे प्रकरण को पुलिस के मुस्तैद सिपाही खामोशी से देखते रहे। वहीं भीड़ से कुछ लोगों के द्वारा जिसान के परिजनों को जिंदा जलाने की बातें भी कहीं जाने लगी।
लोग आमना और जीशान समेत परिवार को तलाशते नजर आए। आमना के सपनों का संसार खुलेआम सुलगता रहा और लोग तमाशा देखते रहे। कुछ समय बाद ही पुलिस के द्वारा आरोपी जीशान को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया। देखते ही देखते आमना का हंसता खेलता परिवार सड़क पर आ गया। आपको बता दें कि आमना के पति की कुछ समय पूर्व ही कैंसर से जूझते हुए मौत हो गई थी। महज जीशान ही घर में इकलौता कमाने वाला शख्स था जो अब सलाखों के पीछे है।
कुछ परिचितों ने आमना को फोन करके पूरे घटनाक्रम की जानकारी दी। पति की मौत से पूरी तरह टूट चुकी अभागन आमना पर मानों जैसे दुखों का पहाड़ टूट गया हो। वह वापस अपने घर भी ना जा पाई और जान बचाने के लिए अपने रिश्तेदारों के यहां देहरादून चली आई। जब पीड़िता ने प्रशासन से मदद की गुहार लगाई तो प्रशासन द्वारा उन्हें धारचूला ना आने की हिदायत दी गई और साफ शब्दों में कहा गया कि आपके यहां आने से माहौल और खराब हो सकता है।
अब सवाल यह उठता है कि जनता की रखवाली पुलिस के पास पावर है, वर्दी है बावजूद इसके उसे माहौल खराब होने का डर सता रहा है। वहीं दूसरी ओर पति की मौत और अब बेटे की गिरफ्तारी से दुखी आमना का घर और दुकान भी खाक हो चुका है। सवाल यह उठता है आखिर अभागी महिला अपनी बेटी के साथ कहां जाएगी ?घटना के बाद से ही पीड़िता अपनी बेटी को साथ लिए दर-दर की ठोकरें खाने को विवश है। दूसरी ओर जिन लोगों ने आमना के घर को आग के हवाले किया वे लोग धर्म का चोगा ओढ़े खुलेआम घूम रहे हैं और पुलिस प्रशासन उनके खिलाफ कार्यवाही करने की हिम्मत तक नहीं जुटा पा रहा है।
वाकई हास्यास्पद है कि पुलिस आरोपियों को सलाखों के पीछे पहुंचाने की बजाय पीड़ित महिला को ही अपने घर आने से रोक रहा हैं। आखिर क्या कसूर है इस मां का, यही कि उसने जीशांत जैसे बेटे को जन्म दिया जो शायद गलत निकला। आरोपी जीशान को तो पुलिस ने सलाखों के पीछे भेज दिया। वह कसूरवार है या नहीं यह कानून तय करेगा मगर आमना का घर और दुकान जलाने का अधिकार जनता को किसने दिया ?
आखिर कब तक हमारे देश में भीड़तंत्र कानून पर हावी रहेगा। पुलिस क्यों हर बार ऐसे उपद्रवियों को रोकने में नाकाम हो जाती है। परिवार के किसी एक सदस्य की गलती की सजा पूरे परिवार को आखिर क्यों भुगतनी पड़े। कानून हाथ में लेकर खुद न्याय करने का अधिकार भीड़ को कौन से संविधान ने दिया। जब जनता ही दंडाधिकारी बन जाए तो न्यायालय की क्या जरूरत रह जाती है।
अब सवाल यह उठता है कि आखिर अभागी आमना और उसकी बेटी का क्या होगा। इस पूरे मामले में उनका क्या कसूर था जो वह सजा भुगत रहे हैं। क्या वह कभी अपने घर वापस जा पाएंगे आरोपी जीशान का भविष्य तो न्यायालय तय करेगा किंतु पल-पल जिंदगी की तकलीफों से जूझ रही बेघर मां बेटी कैसे एक सामान्य जीवन जी पाएंगी। आखिर कैसे इनकी गुजर-बसर होगी।
यहां पुलिस प्रशासन पर भी सवाल खड़ा होता है कि इनके आशियाने को राख करने वालों पर कानून का शिकंजा कब कसेगा। क्या उन्हें भी कभी सजा मिल पाएगी अगर आमना और उसकी बेटी को धारचूला वापस जाने की प्रशासन इजाजत दे भी देता है तो क्या प्रशासन इनकी रक्षा कर पाएगा। इनके पालन पोषण का जिम्मा कौन उठाएगा, घटनास्थल पर मौजूद पुलिस कर्मियों की कार्यशैली को लेकर क्या कोई कार्यवाही होगी। यह सारे सवाल इस कहानी की गंभीरता को बयां करने के लिए काफी हैं।