देश को समर्पित था भगत सिंह का जीवन
नई दिल्ली। भारत की आजादी के अमर नायक भगत सिंह 23 मार्च 1931 को शहीद हुए थे। उन्हें सुखदेव और राजगुरु के साथ लाहौर जेल में फांसी पर लटका दिया गया था। भगत सिंह के क्रांतिकारी जीवन के बारे में हम काफी-कुछ जानते हैं। इसलिए आज हम उनके निजी जीवन के बारे में बात करेंगे। जब एक हिन्दी फिल्म में भगत सिंह के प्यार के काल्पनिक सीन दिखाए गए तो उस पर काफी विवाद हुआ था। इस बात का कोई ऐतिहासिक साक्ष्य नहीं मिलता कि भगत सिंह की कोई प्रेमिका थी। कुछ इतिहासकार ये जरूर मानते हैं कि भगत सिंह के परिवार वालों ने 16 साल की उम्र में ही उनकी शादी तय करने की कोशिश की थी। इतना ही नहीं इस बात से नाराज होकर भगत सिंह अपने घर से भागकर कानपुर चले गए थे।
भगत सिंह के संपूर्ण दस्तावेज के संपादक प्रोफेसर चमन लाल लिखते हैं, “भगत सिंह ने 1923 में एफए की परीक्षा सोलह वर्ष की उम्र में पास कर ली थी वो बीए में दाखिल हुए। तभी परिवार ने उन पर विवाह करवाने का दबाव डाला, विशेषतः दादी जय कौर द्वारा जिनके मन में पोते के प्रति बहुत लाड़ था। संभवतः मानांवाला गांव का एक समृद्ध परिवार भगत सिंह को देखने आया और सगाई के लिए तारीख भी निश्चित कर दी गई।” भगत सिंह के पिता किशन सिंह, चाचा अजीत सिंह और स्वर्ण सिंह क्रांतिकारी थे। गदर पार्टी के करतार सिंह सराभा को भगत सिंह अपना आदर्श मानते थे। वो किशोरावस्था में ही तय कर चुके थे कि वो अपना जीवन देश की आजादी की लड़ाई को समर्पित करेंगे।
भगत सिंह ने शादी किए जाने के बात से नाराज होकर घर छोड़ दिया। घर से जाते समय उन्होंने अपने पिता को पत्र लिखकर कहा, “मेरी ज़िन्दगी बड़े मकसद यानी आज़ादी-ए-हिन्द के असूल के लिए समर्पित हो चुकी है। इसलिए मेरी ज़िन्दगी में आराम और दुनियावी ख्वाहिशों और आकर्षण नहीं हैं।” भगत सिंह ने अपने पत्र में घर छोड़ने के लिए अपने पिता से माफी मांगते हुए लिखा है, “उम्मीद है कि आप मुझे माफ फरमाएंगे।”
भगत सिंह कानपुर जयचंद्र विद्यालंकार से “प्रताप” के संपादक और स्वतंत्रता सेनानी गणेश शंकर विद्यार्थी के नाम परिचय पत्र लेकर गये थे। कानपुर प्रवास के दौरान भगत सिंह ने अन्य कार्यों के साथ ही “प्रताप” के संपादकीय विभाग में भी काम किया था। वो बलवंत उपनाम से अखबार में लेख भी लिखते थे। इस बीच उनके घरवाले उनके गायब होने से परेशान हो गए। खासकर उनकी दादी की तबीयत उनके जाने के बाद बीमार पड़ गयीं। भगत सिंह के पिता किशन सिंह ने लाला लाजपत राय के अखबार ‘बंदे मातरम’ में पत्र छपवाकर भगत से घर लौट आने का अनुरोध किया। चमन लाल लिखते हैं, “जब किशन सिंह को भगत सिंह के दोस्तों से पता चला कि वो कानपुर में हैं तो उन्होंने अपने मित्र व कांग्रेसी नेता हसरत मोहानी को पत्र लिखा और भगत सिंह को विवाह का आग्रह न करने का आश्वासन दिया, तब कई महीने बाद भगत सिंह घर लौटे।”