हैरतः करीब 10 करोड़ लोगों को रातभर मोबाइल देखने की वजह से नहीं आती नींद!
नई दिल्ली। अभी तक जगा रहे हो, रात भर मोबाइल में ही लगे रहोगे, सुबह उठना नहीं हे क्या ? ऑफ़िस जाने के लिए कल फिर देर हो जायेगी, इसलिए तुम्हारी नींद पूरी नहीं होती और सिर दर्द होता है…! ऐसा अक्सर आपके परिजन आपको बोलते होंगे जब आप रात-रात भर मोबाइल में आंखें गड़ाए रहते होंगे और सोते नहीं होंगे। पर क्या करें कहते हैं न कि किसी भी चीज़ की लत बुरी होती है और आज की पीढ़ी को रात में मोबाइल पर गेम खेलने और दुनिया भर की चीज़ें देखने की बुरी लत लग गई है और ये इतनी बुरी लत है कि ज्यादातर लोगों से अब चाहकर भी नहीं छूट रही है।
अब मोबाइल के गुलाम बने लोग भी क्या करें रात में जब तक सबके मैसेज का रिप्लाई न कर लें, फ़ेसबुक और इंस्टाग्राम के सारे नोटिफिकेशन्स न देख लेें और लोगों के स्टेटस न चेककऱ लें, चैन ही नहीं पड़ता। टेक्नोलॉजी के इस फ़ेक चैन के कारण कई लोगों की नींद उड़ चुकी है। फिर वे चाहे कितनी ही कोशिश क्यों न कर लें नींद आती ही नहीं है। हमारी पूरी जेनरेशन का यही हाल है।
क्या आप भी नींद ना आने से परेशान हैं, क्या जब-जब आप सोने की कोशश करते हैं तो नींद आपकी आंखों से कोसों दूर भाग जाती है, क्या आपके साथ कभी ऐसा हुआ है कि आपका मन तो कर रहा होता है सोने का पर जब लेटते हैं तो नींद फुर्र हो जाती है। या कभी ऐसा हुआ है कि बैठे-बैठे तो आप जम्हाई और झपकी लेने लगते हैं पर जैसे ही लेटते हैं आंखें बंटा जैसी खुल जाती हैं। अगर आपके साथ ऐसा होता है और आप इस बात से परेशान होकर ये सोच रहे हैं कि आपको नींद न आने की बीमारी हो गई है तो आपका सोचना काफ़ी हद तक सही भी है। क्योंकि इस तरह की समस्या से हर वो शख़्स जूझ रहा है जो स्मार्टफ़ोन का ज़्यादा इस्तेमाल करता है।
ये हम नहीं कह रहे, बल्कि एक सर्वे ने ऐसा दावा किया है। जी हां, फीलीप्स द्वारा कराये गए एक वैश्विक सर्वेक्षण के अनुसार, हम भारतीय तकनीक के इतने आदि होने के कारण नींद से कोसों दूर हो गए हैं। इस सर्वे के मुताबिक़ 32 प्रतिशत भारतियों का कहना है कि उनकी नींद पूरी न होने या नींद न आने का सबसे बड़ा कारण टेक्नोलॉजी है। जबकि 19 प्रतिशत इंडियंस अपने वर्किंग हॉर्स पर सोने के टाइम को ख़राब करने का आरोप लगाते हैं। इसके अलावा 66 प्रतिशत भारतीयों का मानना है कि स्वस्थ रहने का सबसे उपयुक्त तरीका है व्यायाम करना। साथ ही पर्याप्त मात्रा यानि कि 7.8 घंटे की नींद भी अच्छी सेहत के लिए ज़रूरी है।
वहीं सर्वे में खासतौर पर बताया गया है कि 45 प्रतिशत भारतीय सोने से पहले मेडिटेशन यानि कि ध्यान करते हैं ताकि उनको अच्छी और पर्याप्त नींद आ सके, जबकि 24 प्रतिशत अच्छी नींद के लिए विशेष तरह के बेडिंग का इस्तेमाल करते हैं। जहां वर्तमान में नींद संबंधी विकार के प्रति दुनियाभर में जागरूकता तेज़ी से बढ़ रही है। वहीं हम इडियंस अभी भी इसको प्राथमिकता नहीं दे रहे हैं। इस सर्वे में ये भी खुलासा हुआ है कि दुनिया भर में 26 प्रतिशत लोग अनिद्रा से जूझ रहे हैं।
दुनिया भर के 26 प्रतिशत लोगों ने माना है कि टेक्नोलॉजी (स्मार्टफ़ोन्स और अन्य गैजेट्स) के कारण वो जगे रहते हैं। जबकि 21 प्रतिशत ने कहा कि ख़र्राटे लेने वालों की वजह से वो जगे रहते हैं। वहीं 58 प्रतिशत लोगों ने कहा कि उनको अपनी ज़िन्दगी में चल रही परेशानियों या भविष्य की चिंता के कारण नींद नहीं आती।
आपकी जानकारी के लिए बता दें इस सर्वे में 13 देशों से 15000 वयस्कों को शामिल किया गया था। इसलिए संभवतः इसके आंकड़े इस बात का सबसे अच्छा प्रतिनिधित्व तो नहीं करते हैं। हालांकि, ये एक उचित आंकड़ा है, जो अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, पोलैंड, फ्रांस, भारत और चीन में फैल गया है। ये इस ओर इशारा ज़रूर करता है कि टेक्नोलॉजी ने हमारा चैन, नींद और सुकून सब कुछ छीन लिया है। सर्वेक्षण में कहा गया है, ‘‘अच्छी नींद लेना अच्छी सेहत के लिए ज़रूरी है, पूरी दुनिया में लगभग 10 करोड़ लोग अनिद्रा से ग्रसित हैं।’’ इन लोगों में से 80 प्रतिशत लोगों को इस बात का पता ही नहीं है। जबकि 30 प्रतिशत लोगों को कई कोशिशों के बाद नींद आती है और बहुत कच्ची नींद आती है, जो ज़्यादा देर की नहीं होती।