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रावत ने बहुगुणा पर साधा निशाना

देहरादून। केदारनाथ त्रासदी को लेकर उत्तराखण्ड में एक बार फिर से सियासत गर्मा गई है। आपदा को लेकर एक बार फिर से आरोपों का दौर शुरू हो चुका है। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री हरीश रावत ने केदारनाथ त्रासदी को सवा तीन साल गुजर जाने के बावजूद वहां अभी तक नरकंकाल मिलने की जिम्मेदारी से आज पीछा छुड़ाने का प्रयास करते हुए इसका दोष तत्कालीन मुख्यमंत्री और अपने पूर्ववर्ती पर डालते हुए कहा कि उन्हीं के आदेश से खोज अभियान बंद किया गया था। इस संबंध में बगैर किसी का नाम लिये रावत ने संवाददाताओं से कहा, ‘जो लोग खोज अभियान ठीक तरह से चलाने में राज्य सरकार की विफलता को लेकर जोर-जोर से चिल्ला रहे हैं, उन्हें मेरी बजाय यह सवाल तत्कालीन मुख्यमंत्री से पूछना चाहिये जिन्होंने यह अभियान बंद कराया था। मैंने तो इसे दोबारा शुरू करवाया।’ आपदा के बाद लापता लोगों को ढ़ूंढ़ने के लिये पहले अभियान की शुरूआत और अंत तत्कालीन मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा के कार्यकाल में हुआ था। बहुगुणा अब भाजपा में शामिल हो चुके हैं। रावत ने कहा कि यह बहुत विचित्र बात है कि इतनी भयंकर आपदा के बाद शवों की खोजबीन का काम इतना शीघ्र और इस संभावना को ध्यान में रखे बिना खत्म कर दिया गया कि बाढ़ में आये लाखों टन मलबे के नीचे नरकंकाल पड़े हो सकते हैं।

मुख्यमंत्री रावत ने हाल में त्रिजुगीनारायण-केदारनाथ पैदल ट्रैक से लगे घने जंगलों में मिले नरकंकालों का श्रेय भी खुद को दिया और कहा कि राज्य सरकार द्वारा चलाये गये अभियान के तहत भेजे गये ट्रेकिंग अभियान दल ने ही उन नरकंकालों को सबसे पहले देखा। उन्होंने कहा कि गढ़वाल के पुलिस महानिरीक्षक संजय गुंज्याल की अगुवाई में गठित टीम ने क्षेत्र से अब तक 31 कंकाल बरामद किये हैं जिनका डीएनए नमूने लेने की औपचारिकतायें पूरी करने के बाद हिंदू रीति रिवाजों के साथ अंतिम संस्कार किया जा रहा है। मुख्यमंत्री ने यह भी कहा कि नरकंकालों की खोजबीन के लिये त्रिजुगीनारायण और आसपास के क्षेत्रों में चलाया जा रहा अभियान अभी 10 दिन और जारी रहेगा। हालांकि, रावत ने यह भी साफ किया कि वर्ष 2013 के मध्य में हुई त्रासदी की विकरालता को देखते हुए किसी भी सरकार के लिये कभी भी विश्वास के साथ यह कह पाना संभव नहीं होगा कि यह बरामद हुआ आखिरी नरकंकाल है। उन्होंने कहा कि मैंने पहले भी कहा है कि क्षेत्र में फैले पड़े लाखों टन मलबे के नीचे नरकंकाल अब भी दबे हो सकते हैं। इस संभावना को कभी भी नकारा नहीं जा सकता। यहां तक कि अभी जारी खोजबीन अभियान के समाप्त होने के बाद भी हम पूरे विश्वास से यह नहीं कह सकते कि हमें आखिरी नरकंकाल मिल गया है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि फरवरी 2014 में सत्ता संभालते समय उनके सामने शवों की तलाश के लिये केदार घाटी के जंगलों को खंगाले जाने या राज्य की अर्थव्यवस्था को पटरी पर वापस लाने के लिये चारधाम क्षेत्र में आधारभूत सुविधाओं के पुनर्निर्माण के असंभव से दिखने वाले कार्य को करने की दोहरी चुनौती थी। उन्होंने कहा, ‘‘मैंने दूसरी चुनौती को चुना और खतरा लिया। हालांकि, आज मैं इस बात को संतोष से कह सकता है कि मेरे प्रयास रंग लाये हैं और हम बाहरी दुनिया को सुरक्षित उत्तराखंड और चारधाम यात्रा का संदेश दे पाने में सफल रहे हैं। इस तथ्य की पुष्टि चारों धामों में आने वाले श्रद्धालुओं की बढ़ती संख्या से हो जाती है। हमने इस संख्या को वर्ष 2018 तक 30-40 लाख तक ले जाने का अपना लक्ष्य निर्धारित किया है।’’
मुख्यमंत्री ने यह भी दावा किया कि केदारघाटी तथा अन्य प्रभावित क्षेत्रों में पूरा पुनर्निर्माण कार्य राज्य सरकार ने सीमित संसाधनों के बावजूद अकेले अपने दम पर किया है और केंद्र ने इसमें उसे कभी कोई सहयोग नहीं दिया। रावत ने कहा, ‘केंद्र द्वारा स्वीक्त 8000 करोड़ रुपए के राहत पैकेज का एक चौथाई हिस्सा भी हमें अब तक नहीं मिला है। फिर भी हमने अपने थोड़े बहुत संसाधनों के बूते पुनर्निर्माण की महान चुनौती हाथ में ली जिसमें हमें अच्छी सफलता भी मिली।’

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