समस्त देशवासियों को मकर संक्रांति के पावन अवसर पर हार्दिक शुभकामनाएं : डॉ. अभिनव कपूर
देहरादून। प्रसिद्ध जनसेवी, विख्यात शिक्षक एवं ज्ञान कलश सोशल वेलफेयर एंड एजुकेशनल सोसाइटी के अध्यक्ष डॉ. अभिनव कपूर ने समस्त देशवासियों को मकर संक्रांति के पावन अवसर पर हार्दिक शुभकामनाएं दी हैं।
इस अवसर पर जारी अपने संदेश में जनसेवी डॉ. अभिनव कपूर ने कहा- “समस्त देशवासियों को मकर संक्रांति के पावन पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं। यह पर्व आपके जीवन में हर्ष, उल्लास, उत्तम स्वास्थ्य व सुख समृद्धि लेकर आए, ईश्वर से यही प्रार्थना करता हूं।” सूर्यदेव की उपासना में मनाए जाने वाले उमंग और समृद्ध के पावन पर्व ‘मकर संक्रान्ति’ के साथ ही पोंगल, बिहू, उत्तरायण और पौष पर्व की समस्त देशवासियों को हार्दिक बधाई।
जनसेवी डॉ. अभिनव कपूर ने मकर संक्रान्ति पर्व का जिक्र करते हुए कहा कि मकर संक्रांति भारत का प्रमुख पर्व है। मकर संक्रांति (संक्रान्ति) पूरे भारत और नेपाल में किसी न किसी रूप में मनाया जाता है। पौष मास में जब सूर्य मकर राशि पर आता है तभी इस पर्व को मनाया जाता है। वर्तमान शताब्दी में यह त्योहार जनवरी माह के चौदहवें या पन्द्रहवें दिन ही पड़ता है, इस दिन सूर्य धनु राशि को छोड़ मकर राशि में प्रवेश करता है।
डॉ. कपूर ने कहा कि तमिलनाडु में इसे पोंगल नामक उत्सव के रूप में मनाते हैं जबकि कर्नाटक, केरल तथा आंध्र प्रदेश में इसे केवल संक्रांति ही कहते हैं। मकर संक्रान्ति पर्व को उत्तराखण्ड व गुजरात में उत्तरायण भी कहते हैं। 14 जनवरी के बाद से सूर्य उत्तर दिशा की ओर अग्रसर होता है, इसीलिए इसे उतरायण भी कहते है। पृथ्वी का झुकाव हर 6 माह तक निरंतर उतर की ओर एवं 6 माह दक्षिण की ओर बदलता रहता है। यह प्राकृतिक प्रक्रिया है।
उन्होंने कहा कि देवभूमि उत्तराखंड में इस पर्व को उत्तरायण के साथ-साथ अनेक नामों से मनाया जाता है। जहां कुमाऊं में इसे उत्तरायण के साथ-साथ घुघुतिया, गढ़वाल मंडल में पूर्वी उत्तर प्रदेश की तरह खिचड़ी संक्रांति के नाम से इस पर्व को मनाया जाता है। देश के विभिन्न हिस्सों के साथ-साथ राज्य में भी इस दिन विभिन्न स्थानों पर मेलों का आयोजन होता है। जिनमें से कुमाऊं के बागेश्वर जिले में सरयू-गोमती नदियों के संगम पर लगने वाला उत्तरायणी मेला प्रसिद्ध है वही इस दिन पोड़ी गढ़वाल में भी सुप्रसिद्ध गिंदी कोथिग का आयोजन किया जाता है। अल्मोड़ा में प्रवाहित होने वाली सरयू नदी के पूर्वी भाग के निवासी इस पर्व को पौष मासांत पर मनाते हैं, इसलिए वे इसे पुषूडियां त्यौहार कहते हैं।