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आलोक वर्मा प्रकरण में उच्चतम न्यायालय ने दिया ये निर्देश

नई दिल्ली। केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो के निदेशक आलोक कुमार वर्मा को अधिकार वापस लेकर उन्हें छुट्टी पर भेजे जाने के खिलाफ उनकी याचिका पर उच्चतम न्यायालय ने सुनवाई करते हुए कहा कि CVC दो सप्ताह में जांच पूरी करें। CJI रंजन गोगोई ने कहा कि CBI के वर्तमान मुखिया नागेश्वर राव सिर्फ रूटीन काम काज ही देखेंगे नाकी नीतिगत फैसले लेंगे। SC ने जांच के लिए CVC द्वारा 3 सप्ताह की मांग को खारिज करते हुए सिर्फ दो सप्ताह ही दिया है। यह जांच जस्टिस एके पटनायक की निगरानी में होगी। इसके साथ ही कोर्ट ने केंद्र सरकार को भी नोटिस भेजा है।

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उच्चतम न्यायालय ने केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) के निदेशक आलोक वर्मा की अर्जी पर शुक्रवार को सीबीआई, केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) और केंद्र सरकार से जवाब तलब किया। वर्मा ने खुद को जबरन छुट्टी पर भेजे जाने और सारे अधिकार वापस लिए जाने के सरकार के फैसले को चुनौती दी है। न्यायालय ने निर्देश दिया कि सीबीआई के अंतरिम निदेशक बनाए गए एम. नागेश्वर राव कोई नीतिगत फैसला नहीं करेंगे। बीते 23 अक्टूबर से अब तक राव की ओर से किए गए निर्णयों पर अमल नहीं होगा और उनके सारे फैसले एक सीलबंद लिफाफे में उच्चतम न्यायालय को सौंपे जाएंगे।
शीर्ष अदालत ने कहा कि उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश ए. के. पटनायक सीबीआई अधिकारियों के बीच लग रहे आरोप-प्रत्यारोप की सीवीसी जांच की निगरानी करेंगे और दो हफ्ते के भीतर रिपोर्ट न्यायालय में सौंपना होगी। प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति एस के कौल और न्यायमूर्ति के एम जोसेफ की पीठ ने मामले की अगली सुनवाई के लिए 12 नवंबर की तारीख तय कर दी। पीठ ने एनजीओ ‘कॉमन कॉज’ की अर्जी पर भी नोटिस जारी किए। एनजीओ ने सीबीआई अधिकारियों के खिलाफ एसआईटी जांच कराने की मांग की है।
एनजीओ की ओर से दायर अर्जी में सीबीआई के विशेष निदेशक राकेश अस्थाना को भी प्रतिवादी बनाया गया है। वर्मा और अस्थाना ने एक-दूसरे के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप लगाए हैं। शुक्रवार को हुई संक्षिप्त सुनवाई के दौरान वरिष्ठ वकील फली एस. नरीमन ने सीबीआई प्रमुख वर्मा की तरफ से दलीलें पेश की। नरीमन ने कहा कि वर्मा को प्रधानमंत्री, नेता प्रतिपक्ष और प्रधान न्यायाधीश की सदस्यता वाली चयन समिति की मंजूरी से सीबीआई निदेशक नियुक्त किया गया था। उन्होंने वर्मा से सारे अधिकार वापस लेने के सीवीसी और केंद्र के आदेश का भी जिक्र किया। वर्मा के पक्ष में दलीलें देने के लिए वरिष्ठ वकील ने विनीत नारायण मामले में उच्चतम न्यायालय की ओर से दिए गए फैसले का भी हवाला दिया।
शुरूआत में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि आरोप-प्रत्यारोप पर सीवीसी की जांच इस अदालत की निगरानी में 10 दिनों के भीतर पूरी होनी चाहिए। इस पर सीवीसी ने कहा कि जांच के लिए 10 दिन का वक्त पर्याप्त नहीं है, क्योंकि उसे बहुत सारे दस्तावेज खंगालने होंगे। सीवीसी ने कहा कि कुछ समय तक किसी को निगरानी की अनुमति नहीं दी जाए। पीठ ने सीवीसी को जांच पूरी करने के लिए दो हफ्ते का वक्त दिया। वर्मा ने खुद को जबरन छुट्टी पर भेजे जाने और 1986 बैच के ओड़िशा कैडर के आईपीएस अधिकारी राव को सीबीआई निदेशक पद का प्रभार दिए जाने के केंद्र के आदेश पर रोक लगाने की भी मांग की है।

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