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जानिए कैसे तैयार हुआ ‘पद्मावती’ में शाहिद-रणवीर का कवच

मुम्बई। राजस्थान की माटी में बुनी गई फिल्म ‘पद्मावती’ का अपनी दिल्ली से भी एक खास कनेक्शन है। वह यह कि फिल्म में महारावल रतन सिंह का रोल कर रहे शाहिद कपूर और अलाउद्दीन खिलजी का किरदार निभा रहे रणवीर सिंह के कवच दिल्ली के विपुल अमर और हरशीन अरोड़ा ने तैयार किए हैं।

एक योद्धा के लिए जितनी जरूरी उसकी तलवार होती है, उतना ही अहम होता है उसका कवच। एक योद्धा की बहादुरी भले ही उसकी तलवार की फुर्ती से नापी जाए, लेकिन उसे सुरक्षित कवच ही रखता है और फिल्म पद्मावती के दो योद्धाओं महारावल रतन सिंह (शाहिद कपूर) और अलाउद्दीन खिलजी (रणवीर सिंह) के खास कवच को तैयार किया है दिल्ली के विपुल अमर और हरशीन अरोड़ा ने। पेशे से बिज़नसमैन विपुल और साइकॉलजिस्ट हरशीन ‘पद्मावती’ से पहले फिल्म ‘राब्ता’ में सुशांत सिंह राजपूत का कवच भी डिजाइन कर चुके हैं।

साइको-एनालिसिस के बाद बने डिजाइंस:
विपुल और हरशीन की खासियत यह है कि वे लोगों की मनोदशा को समझकर उनकी सोच के हिसाब से कस्टमाइज डिजाइंस तैयार करते हैं। इसमें हरशीन का साइकॉलजिकल ज्ञान कारगर साबित होता है। वह बताती हैं, ‘चार साल पहले हमने ‘वी रेनेसां डिजाइंस’ की शुरुआत ही इसी कॉन्सेप्ट के साथ की कि हम लोगों की सोच को हकीकत में बदल पाए। बहुत से लोग चाहते हैं कि उनके पास कुछ ऐसा हो, जिसमें उनकी झलक हो। हम उनकी सोच को समझकर खासतौर पर वह चीज क्रिएट करते हैं जैसे ‘पद्मावती’ में शाहिद और रणवीर के कवच के लिए भी हमने उनके किरदारों की सोच, भंसाली के नजरिए, उस वक्त के इतिहास, हालात, उस समय की तकनीक सब पर गहराई से रिसर्च किया।

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300 साल पुरानी तकनीक का इस्तेमाल
बकौल हरशीन, ‘संजय लीला भंसाली ने हमसे एक बात कही थी कि ये कवच किरदारों को उभारने चाहिए और हमने वैसे ही काम किया। किरदारों की साइको-एनालिसिस करके 300 साल पुरानी लेदर तकनीक से कवच तैयार किए। रतन सिंह और खिलजी दोनों एक-दूसरे से अलग हैं। रतन सिंह सम्मानजनक महाराजा हैं, जो हर चीज सही करता है। अपनी मिट्टी से उसे प्यार है। दूसरी तरफ अलाउद्दीन खिलजी है, जो आक्रमण और पावर में यकीन करता है। इन सारी बातों को ध्यान में रखा। इसलिए शाहिद के कवच का बेस कलर ब्लड रेड है, जो बहादुरी और अपनी मिट्टी, अपने वतन से प्यार दिखाता है। उसमें जो डीप गोल्ड कलर यूज किया है, जो पैशन, सम्मान के लिए है। उनकी चेस्ट प्लेट में मेटल और लेदर को इन्फ्यूज किया है, जो पहले नहीं हुआ। ये दोनों मटीरियल एक बहादुर राजा की खूबियों को दर्शाता है। इसमें हमने राजपूताना मिट्टी के रंगों वाले शेड्स भी दिए हैं। वहीं रणवीर के कवच के कंधे पर दो शेर है। उसकी वजह ये है कि वह खूंखार है। शेर को जंगल का राजा कहा जाता है, लेकिन अलाउद्दीन की ताकत ऐसी है कि उसने दो शेरों को पालतू बनाकर अपने कंधे पर बैठा लिया है। उसके किरदार की डार्कनेस को उभारने के लिए घड़ियाल का डिजाइन वाली स्केलिंग दी है।’

साढ़े सात किलो का है रणवीर सिंह का लड़ाई वाला कवच:
हरशीन और विपुल को रणवीर और शाहिद का कवच तैयार करने में आठ महीने का समय लगा। उन्होंने बताया, ‘पिछले साल जुलाई-अगस्त में संजय भंसाली ने हमें अप्रोच किया और इस साल मार्च में मैंने डिलिवरी की।’ विपुल यह भी बताते हैं, ‘संजय भंसाली ने पहले हमें सिर्फ रणवीर का एक कवच डिजाइन करने को कहा था, लेकिन उन्हें वह इतना पसंद आया कि बाद में शाहिद और रणवीर की मुख्य लड़ाई का कवच भी डिजाइन करवाया। रणवीर का यह कवच साढ़े सात किलो, जबकि शाहिद का कवच साढ़े चार किलो का है। दिल्ली में रहकर मुंबई की फिल्म इंडस्ट्री से जुड़ाव कैसे हुआ? यह पूछने पर वे बताते हैं, ‘लेदर में हम काफी काम करते हैं। हम जैकेट्स, फर्नीचर, बैग्स, कपड़े बनाते हैं। ‘राब्ता’ के टाइम कॉस्ट्यूम डिजाइनर मैक्सिमा बासु कोई लेदर एक्सपर्ट ढूंढ रही थीं। उन्हें कहीं से हमारे बारे में पता चला तो वह हमसे मिलने आईं। उन्हें हमारा काम पसंद आया और ऐसे हम ‘राब्ता’ से जुड़े। संजय भंसाली से हमारा परिचय भी मैक्सिमा बासु ने ही कराया।’

यूं बनी विपुल-हरशीन की जोड़ी:

साइकॉलजिस्ट हरशीन और बिज़नसमैन विपुल अमर की दोस्ती फटॉग्रफी के प्रति लगाव के कारण हुई। बकौल हरशीन, ‘आईपी कॉलेज में पढ़ाई के दौरान मैंने फटॉग्रफी सोसायटी शुरू की थी। विपुल को भी फटॉग्रफी का काफी शौक था, इसलिए वे उससे जुड़े और हमारी दोस्ती हुई। साल 2010 में विपुल मुंबई शिफ्ट हो गए। तब मैं मैक्स हॉस्पिटल में जॉब कर रही थी, लेकिन उसमें क्रिएटिविटी के लिए बिल्कुल टाइम नहीं मिल पाता था, तो मैं भी जॉब छोड़कर मुंबई आ गई, क्योंकि मुझे कुछ क्रिएटिव करना था। यहां हमने फटॉग्रफी में एक्सपेरिमेंट करना शुरू किया। हमने साथ में एक रिसर्च किया,’स्टुपिड आई’। उसका कॉन्सेप्ट यह था कि हम साइकॉलजी और फटॉग्रफी को मिक्स करके एक नई थेरपी निकालेंगे। दरअसल, हर इंसान का एक ‘ट्रू सेल्फ’ होता है कि हम अपने को कैसे देखते हैं और एक ‘आइडल सेल्फ’ होता है कि अगर हम ये अचीव कर लें, तो हम बेस्ट हो जाएंगे। हमने वही जर्नी तस्वीर के जरिए दिखाई। तब हमें यह अहसास हुआ कि हर इंसान चाहता है कि वह जो सोचता है, उसे सच में देखना-छूना चाहता है। इसलिए मैंने और विपुल ने अपने तीसरे पार्टनर ग्राफिक डिजाइनर गिरीश नायर के साथ मिलकर ‘वी रेनेसा डिजाइंस’ शुरू किया कि हमारे पास जो भी अपनी सोच लेकर आएगा, उसे हम हकीकत में बदल पाएं।’

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