जानिए किन वजहों से कर्नाटक में भाजपा किंग बनकर उभरी ?
नई दिल्ली। कर्नाटक में एक बार फिर बीजेपी का कमल खिल गया है। सिद्धारमैया की सारी कोशिशें फेल हो गई हैं। वे लिंगायत को अलग धर्म का दर्जा देने से लेकर कर्नाटक का अलग झंडा तक का कार्ड चले, लेकिन कोई काम नहीं आया है। बीजेपी की जीत का आधार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रखा और सत्ता की हारी हुई बाजी को जीत में बदल दिया। बीजेपी के कर्नाटक विधानसभा चुनाव जीतने के पीछे पांच कारण प्रमुख हैं।
मोदी मैजिक:
कर्नाटक में बीजेपी की जीत का सबसे बड़ा आधार पीएम नरेंद्र मोदी ने रखा है। नरेंद्र मोदी के उतरने से पहले राज्य में बीजेपी की हालत काफी पतली थी। 1 मई को मोदी की रैली में बीजेपी के नेता ने उनके सामने ही कहा था ‘मोदीजी आ गए हैं अब तो हमें जीतने से कोई नहीं रोक नहीं सकता है।’ नरेंद्र मोदी ने कर्नाटक में 21 रैलियां करके हारी बाजी को जीत में तब्दील कर दिया।
सोशल इंजीनियरिंग:
कर्नाटक में बीजेपी की जीत में दूसरा प्रमुख कारण जातीय समीकरण रहा है। बीजेपी कर्नाटक में लिंगायत समुदाय से लेकर आदिवासियों और दलितों को साधने के साथ-साथ ओबीसी मतों को एकजुट करने में बड़ी कामयाबी रही है। नरेंद्र मोदी ने अपनी रैलियों में दलित और आदिवासियों की बात को काफी जोर-शोर से उठाया है। इसके अलावा बीजेपी ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के जरिए हिंदुत्व कार्ड खेला।
येदियुरप्पा और श्रीरामुलू के साथ आने का फायदा:
कर्नाटक में बीजेपी के लिए येदियुरप्पा और श्रीरामुलू की वापसी फायदा का सौदा साबित हुई। 2013 के विधानसभा चुनाव में येदियुरप्पा की बगावत ही बीजेपी के लिए महंगी साबित हुई थी। पिछले चुनाव में येदियुरप्पा की पार्टी ने 10 फीसदी और श्रीरामुलू की पार्टी ने करीब 3 फीसदी वोट हासिल किए थे। बीजेपी ने इन दोनों नेताओं को साथ मिलाकर अपनी हार का बदला कांग्रेस से चुका लिया है।
रेड्डी बंधुओं पर दांव:
अवैध खनन मामले के आरोपी जनार्दन रेड्डी पर बीजेपी दांव लगाना फायदा का सौदा रहा। बीजेपी ने रेड्डी बंधु के परिवार के करीब आधा दर्जन लोंगो को टिकट दिया था। इसके अलावा उनके कई करीबियों को भी टिकट दिया गया था। रेड्डी बंधु को बेल्लारी के आसपास की सीटों की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। नतीजों के मुताबिक बेल्लारी इलाके में कमल खिलता दिख रहा है। जबकि रेड्डी बंधुओं को साथ लेने पर बीजेपी की किरकिरी हो रही थी। इसके बावजूद बीजेपी ने रेड्डी का सहयोग लिया और यह फायदा का सौदा साबित हुआ।
लिंगायत का भरोसा कायम:
लिंगायत मतों का बीजेपी पर भरोसा कायम रहा। कांग्रेस का उन्हें अलग धर्म का दर्जा देने का कार्ड नहीं चला। कर्नाटक में लिंगायत मतों की बड़ी हिस्सेदारी है और यह किंगमेकर मानी जाती है। 16 फीसदी लिंगायत समुदाय के वोट हैं। लिंगायत के मजबूत गढ़ माने जाने वाले सेंट्रल कर्नाटक में बीजेपी के लिए नतीजे बेहतर आए हैं। इसके अलावा बीजेपी अपने मतों को एकजुट करने में कामयाब रही है। जबकि कांग्रेस के वोटबैंक में जबर्दस्त सेंधमारी हुई है।