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जानिए मेडल जीतने के बाद दांतों से क्यों काटते हैं एथलीट

नई दिल्ली। ओलंपिक में मेडल जीतना हर एथलीट का सपना होता है। इस सपने को पूरा करने के लिए एथलीट अपनी पूरी ताकत लगा देते हैं। आपने अकसर देखा होगा कि मेडल जीतने के बाद पोडियम पर खड़े एथलीट जीते हुए मेडल के एक हिस्से को अपने दांतों से काटते हुए नज़र आते हैं। लेकिन क्या आपने कभी इस बात पर ध्यान दिया कि मेडल जीतने के बाद एथलीट ऐसा क्यों करते हैं? नहीं पता न, चलिए हम बताते हैं कि आख़िर ओलंपिक खिलाड़ी मेडल जीतने के बाद ऐसा क्यों करते हैं?

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दरअसल, पदक जीतने के बाद उसको अपने दांतों से काटने की ये परंपरा सबसे पहले एथेंस ओलंपिक से शुरू हुयी थी। ये परंपरा आज भी जारी है लेकिन साल 1912 में स्टॉकहोम ओलंपिक में ये परंपरा बंद हो गयी थी। स्टॉकहोम ओलंपिक में आख़िरी बार खिलाड़ियों को शुद्ध सोने के मेडल दिए गए थे। कहा जाता है कि खिलाड़ी जीत के बाद मेडल अपने दांतों से इसलिए दबाते हैं, ताकि सोने के असली या नकली होनी का पता चल सके। बाद में ये एक परम्परा के तौर पर शुरू हो गयी और खिलाड़ी आज भी ओलंपिक में मेडल जीतने के बाद ऐसा करते हैं।

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जबकि इस संबंध में इंटरनेशनल सोसाइटी ऑफ़ ओलंपिक हिस्‍टोरियन के प्रेसीडेंट डेविड का कहना है कि पोज़ देने का ये तरीका वर्षों पुराना है। ये खिलाड़ियों का अपनी जीत को दर्शाने का एक तरीका मात्र है, इसके अलावा और कुछ नहीं है लेकिन आज ये जीत का आइकॉन सा बन गया है। ओलंपिक में खिलाड़ियों को जो गोल्ड मेडल दिया जाता है वो 494 ग्राम सिल्वर और 6 ग्राम सोने का बना होता है। इसका मतलब ये हुआ कि जिसे हम आजतक गोल्ड मेडल समझते थे, उसमे सिर्फ़ 6 ग्राम सोना होता है। लगता है इसीलिए खिलाड़ी दांतों से काटकर असली या नक़ली की पहचान करते हैं।

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कहा जाता है कि सोना एक ऐसा धातु है जिसकी शुद्धता की पहचान दांत से काटने के बाद ही हो जाती है। ये परंपरा ऐतिहासिक रही है जोकि इस धातु की शुद्धता के परीक्षण के लिए होती थी। क्योंकि मुलायम धातु होने के कारण सोने को दांतों से काटने पर इस पर निशान पड़ जाते हैं। साल 2010 में इससे जुड़ा एक रोचक मामला भी सामने आया था। जब एथलीट जर्मन लुगर मोलर रजत पदक काट रहे थे, तभी उनका दांत टूट गया था। इसलिए अब एथलीट थोड़ा एलर्ट रहते हैं। ब्राजील के रियो डे जेनेरियो में भारतीय रेसलर साक्षी मालिक ने भी मेडल जीतने के बाद कुछ ऐसा ही किया था। ओलंपिक में माइकल फेल्प्स सबसे ज़्यादा 23 मेडल जीतने वाले खिलाड़ी हैं। इसका ये मतलब हुआ कि सोने की सबसे अच्छी परख़ माइकल फेल्प्स को होगी।

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