जानिए श्रीवास्तव छोड़ बच्चन सरनेम क्यों अपनाया अमिताभ ने

मुम्बई। बॉलीवुड के महानायक अमिताभ बच्चन ने बुधवार को खुलासा किया कि उनके पिता और महान कवि हरिवंश राय बच्चन ने “बच्चन” सरनेम को इसलिए लिया था कि जाति और पंथ की रूढ़ियों को समाज द्वारा खारिज कर दिया जाना चाहिए। वह कोच्चि में अंतर्राष्ट्रीय विज्ञापन संघ (IAA) की 44 वीं विश्व कांग्रेस में ‘ब्रांड धर्म ’के बारे में बोल रहे थे। उन्होंने कहा “मेरे पिता का नाम हरिवंश राय श्रीवास्तव था। पारंपरिक रूप से भारत में सरनेम श्रीवास्तव या किसी अन्य उपनाम का अर्थ विशिष्ट जाति से है। उपनाम तुरंत एक व्यक्ति को एक शास्त्रीय स्टीरियोटाइप में डालता है। ये ब्राह्मण हैं, ये दलित हैं, ये क्षत्रिय हैं, इत्यादि। मेरे पिता ने इस प्रणाली को खत्म कर दिया क्योंकि इसने योग्यता के बावजूद लोगों में गहरे विभाजन पैदा कर दिए।”
अमिताभ बच्चन ने कहा, “मेरे पिता ने अपने नाम से जाति को हटा दिया और हरिवंश राय बच्चन का नाम अपनाया। बच्चन परिवार का सरनेम बन गया। बच्चन जाति और पंथ की रूढ़ियों को खारिज करने वाले मेरे पिता के ब्रांड थे। मैं विरासत को आगे बढ़ाने में गर्व महसूस करता हूं। मैं एक बच्चन हूं।” अपने एक घंटे के लंबे संबोधन के दौरान, अमिताभ बच्चन ने कॉरपोरेट उत्पादों के ब्रांड एंडोर्सर के साथ-साथ पोलियो और स्वच्छ भारत जैसे सार्वजनिक अभियानों के एक एंबेसडर के रूप में अपने अनुभव के बारे में विस्तार से बताया। “मैं शराब, तंबाकू आदि का विज्ञापन नहीं करता। मैं इस क्राफ्ट का मास्टर नहीं हूं। महारत से दूर, मैं आपकी सरल स्क्रिप्ट के बिना किसी प्यासे व्यक्ति को पीने के पानी की बोतल भी नहीं बेच सकता।
अमिताभ बच्चन को 15 फरवरी को हिन्दी सिनेमा में 50 साल पूरे हो गए। बता दें 15 फरवरी 1969 से ही अमिताभ के अभिनय की यात्रा सिनेमा जगत में शुरू हुई थी। अमिताभ ने फिल्म ‘सात हिंदुस्तानी’ से बॉलीवुड में डेब्यू किया था। उन्होंने अपने सिने करियर की ख्वाजा अहमद अब्बास की फिल्म ‘सात हिंदुस्तानी’ से की। इसके बाद उन्होंने राजेश खन्ना के साथ फिल्म ‘आनंद’ (1971) में काम किया। इस फिल्म के लिए उन्हें पहला फिल्मफेयर अवार्ड मिला। इसके बाद उन्होंने ‘परवाना’, ‘रेशमा और शेरा’, ‘गुड्डी’ और ‘बावर्ची’ जैसी फिल्मो में काम किया। साल 1973 में आइ फिल्म ‘जंजीर’ उनके करियर में मील का पत्थर साबित हुई। इस फिल्म के बाद वे एंग्री मैन बनकर उभरे।