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कुर्मांचल परिषद देहरादून ने प्रधानमंत्री से की आइडीपीएल को पुनर्जीवित करने की मांग

देहरादून। कुर्मांचल परिषद देहरादून ने माननीय प्रधानमंत्री को मेल भेजा तथा ट्वीट कर ऋषिकेश स्थित आइडीपीएल दवा फैक्टरी को शुरू करने हेतु निवेदन किया है। केंद्रीय महासचिव चंद्रशेखर जोशी ने भावनात्मक पत्र लिखते हुए कहा है कि वैशाख मास को सभी महीनों में उत्तम बताया गया है, इसी महीने भगवान नारायण ने नर का अवतार लिया था, देवभूमि उत्तराखण्ड से जन कल्याण के लिए इस महासंकट के दौर में आपको पत्र प्रेषित है, आशा है संज्ञान लेगे- पत्र को डॉक्टर रमेश पोखरियाल निशंक केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री को भी मेल और ट्वीट किया है।

विषय- आईडीपीएल ऋषिकेश- गरीबों को दवा मुहैया कराने के लिए 1962 में बनी कंपनी को फिर से पुनर्स्थातपित किये जाने की आवश्याकता-

परम आदरणीय,
भारत और तत्कालीन सोवियत संघ के सहयोग से गरीबों को सस्ती दवाएं मुहैया कराने के मकसद से ऋषिकेश के वीरभद्र स्‍थान में वर्ष 1962 में इंडियन ड्रग्स फार्मास्युटिकल लि. (आईडीपीएल) फैक्ट्री का शिलान्यास किया गया था। 1967 में फैक्ट्री में उत्पादन शुरू किया गया था। शुरुआती डेढ़ दशक में यहां पैंसिलीन, स्ट्रेप्टोमाइसिन, टेट्रासाइक्लीन, एंटी फंगल टैब्लेट जैसी महत्वपूर्ण दवाएं तैयार करके पूरे देश में भेजी जाती थी। कई सस्ती जीवनरक्षक और सस्ती दवाएं बनाने वाली यह कंपनी विशाल थी, यहां पांच हजार से ज्‍यादा तो स्थायी कर्मचारी थे, वर्तमान में विख्यात दवा फैक्ट्री आईडीपीएल (इंडियन ड्रग्स एंड फार्मास्युटिकल लिमिटेड) को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से ‘औषधि’ की दरकार है। जाने किस दबाव में यह दवा कम्‍पनी बंद कर दी गयी,
गुजरात के सूरत में 1985 में फैले प्लेग के दौरान कोई संस्थान दवा बनाने को तैयार नहीं हुआ, ऐसी स्थिति में आईडीपीएल से बनाकर प्लेग की सारी दवाओं की आपूर्ति की गई थी।

श्री सुभाष भटट पूर्व सदस्‍य जिला पंचायत देहरादून ने भी माननीय प्रधानमंत्री तथा केन्‍द्रीय मानव संसाधन मंत्री डा0 रमेश पोखरियाल से निवेदन किया है कि आईडीपीएल रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय के अधीन आता है, यदि आईडीपीएल को स्वास्थ्य मंत्रालय अपने अधीन ले तो सरकार द्वारा निशुल्क दी जाने वाली दवाओं का उत्पादन यहां हो सकता है। इससे केंद्र सरकार को भी निशुल्क दवाओं को निजी संस्थानों से अधिक दाम पर खरीदना नहीं पड़ेगा। इससे करोड़ों की धनराशि बचेगी। ऋषिकेश स्थित सरकारी दवा कंपनी आईडीपीएल बदहाल है, अरसे से बीमार चल रही ऋषिकेश में स्थापित विख्यात सरकारी दवा निर्माता कंपनी आईडीपीएल (इंडियन ड्रग्स एंड फार्मास्युटिकल लिमिटेड) को दवा की दरकार है।

चन्‍द्रशेखर जोशी केंद्रीय महासचिव ने माननीय प्रधानमंत्री को विस्तार से अवगत कराया है कि आईडीपीएल देश के नवरत्नल संस्थायनो में शुमार थी तथा देश की प्रमुख दवा निर्माता संस्थांनो में से एक थी और देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू द्वारा ऋषिकेश में स्था पित आईडीपीएल को 52 वर्ष के सफल सफर के बाद बंद कर दिया गया, 1962 में देश के प्रथम प्रधानमंत्री ने सोवियत संघ के सहयोग से इसकी आधार शिला रखी थी, वर्ष 1967 में यहां उत्पा्दन शुरू हुआ था, टेटरासाइक्लिन व अन्यश जीवन रक्षक औषधि का निर्माण करने वाली इस दवा फैक्टीर अर्थतंत्र की रीढ थी, परन्तु 1992 मे इस फैक्टी को रूग्ण् इकाई घोषित करने के साथ 1996 में उत्पा्दन सीमित कर दिया गया।

वर्तमान में पूरा विश्व भारत की ओर आशा भरी निगाह से देख रहा है, यह सब आपकी सरकार के कुशल निर्देशन में सम्परन्न, हो रहा है, जहां कठिन दौर में हम कोरोना को हराने में खुद भी लड़ रहे हैं #अपने मित्र साथियों की मदद भी कर रहे है #भारत ने इस वैश्विक संकट (Covid-19) के वक़्त –##भूटान को डॉक्टर्स और चिकित्सा सामग्री भेजा # #संयुक्त अरब_अमीरात को #ओमान को #स्वीडन को #इटली को #दक्षिण अफ्रीका को #इराक को # कजाखिस्तान को # अफगानिस्तान को # ईरान को (कोरोना टेस्ट करने वाला स्टैंडर्ड लैब भी दिया) # SAARC देशों को # अमेरिका को भी विश्व के लगभग 70 देशों ने भारत के सामने इस मुश्किल में हाथ पसारा # भारत ने इस विपदा की घड़ी में अपनी जरूरतों को स्टोर करते हुए सबकी मदद करने का ऐलान किया ; इन सबके लिए सिर्फ एक शब्द में यही कहा जा सकता है कि God Bless U.

करोना संकट के दौरान विश्व में भारत ने सबकी मदद का ऐलान किया है इसको देखकर कभी देश की नवरत्नत सरकारी दवा निर्माता कम्पंनी को भी आशा हो चली है कि क्याा पता माननीय प्रधानमंत्री जी उसका स्वर्णिम इतिहास देखकर कुछ संज्ञान लेगे- वही उत्त्राखण्ड में भी जनचर्चा शुरू हो गयी है कि इस नाजुक समय में गरीबों को दवा मुहैया कराने के लिए बनी कंपनी को फिर से पुनर्स्थापित किये जाने की जरूरत है-

देहरादून कुर्मांचल परिषद हाथीबड़कला शाखा पदाधिकारी तथा आमजन के बीच लोकप्रिय भाजपा युवा नेता तथा पूर्व सदस्य जिला पंचायत देहरादून ने माननीय पीएम और केन्द्रीेय मानव संसाधन मंत्री को इस संबंध में टविट किया है- सुभाष भटट ने बताया कि गुजरात के सूरत में 1985 में फैले प्लेग के दौरान कोई संस्थान दवा बनाने को तैयार नहीं हुआ, ऐसी स्थिति में आईडीपीएल से बनाकर प्लेग की सारी दवाओं की आपूर्ति की गई थी। आज गंगा किनारे बसे आईडीपीएल को पुर्नस्थासपित कर एक पुण्य कार्य करने की तीव्र आवश्यकता है।

ज्ञात हो कि भारत और तत्कालीन सोवियत संघ के सहयोग से गरीबों को सस्ती दवाएं मुहैया कराने के मकसद से ऋषिकेश के वीरभद्र 1962 में इंडियन ड्रग्स फार्मास्युटिकल लि. (आईडीपीएल) फैक्ट्री का शिलान्यास किया गया था। 1967 में फैक्ट्री में उत्पादन शुरू हो गया था। शुरुआती डेढ़ दशक में यहां पैंसिलीन, स्ट्रेप्टोमाइसिन, टेट्रासाइक्लीन, एंटी फंगल टैब्लेट जैसी महत्वपूर्ण दवाएं तैयार करके पूरे देश में भेजी जाती थी। कई सस्ती जीवनरक्षक और सस्ती दवाएं बनाने वाली यह कंपनी विशाल थी, यहां पांच हजार स्थायी कर्मचारी थे, विख्यात दवा फैक्ट्री आईडीपीएल (इंडियन ड्रग्स एंड फार्मास्युटिकल लिमिटेड) को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से ‘औषधि’ की दरकार है।

1980 के आसपास आईडीपीएल का बेहतर संचालन हुआ। उदारीकरण के दौर में सार्वजनिक संस्थानों से सरकारों के हाथ खींचने और प्राइवेटाइजेशन को बढ़ावा देने का नतीजा आईडीपीएल ने भी भुगता। 1992 में फैक्ट्री को बीमारू इकाई करार दिया गया कर्मचारियों को जबरन रिटायरमेंट देना, छंटनी आदि के चलते मानव संसाधन तो घटा ही, एक वक्त फैक्ट्री में उत्पादन भी पूरी तरह से ठप हो गया। इसे बीमारू फैक्ट्री बताकर ब्यूरो आफ इंडस्ट्रीयल फाइनेंशियल रिकंस्ट्रशन (बीआईएफआर) को रेफर कर दिया। इस विशाल फैक्ट्री के करीब एक हजार क्वार्टर खाली पड़े हैं। इनमें अधिकांश देखरेख के अभाव में गिरासू हो चुके हैं। 2013-14 में आईडीपीएल ने आर्डर मिलने पर 22 करोड़ रुपये की दवाओं का उत्पादन किया जो करीब दो दशक का रिकॉर्ड उत्पादन है। इसके लिए आईडीपीएल को डब्लूएचओ जीएमपी सर्टिफिकेट से नवाजा गया है। यह उत्पादन कंपनी में 25 वर्ष पहले होता था। आईडीपीएल दवाओं को एक्सपोर्ट भी कर सकने की स्थिति में आ गयी थी।

प्रारंभ में, औषध कंपनियों पर बहुद्देशीय कंपनियों का ही एकाधिकार था। वे ही सभी प्रकार की दवाओं का भारत में आयात करती थीं और उनका विपणन करती थीं; विशेष रूप से कम कीमत वाली जेनरिक तथा बहुत कीमती विशिष्ट दवाइयों का. जब भारतीय सरकार ने निर्यात वस्तुओं के आयत पर रोक लगाने की प्रक्रिया चलाई तो इन बहुद्देशीय कंपनियों ने निर्माता इकाइयां स्थापित कर लीं और बहुमात्रिक दवाइयों का आयात जारी रखा। सन 1960 के दशक में भारत सरकार ने घरेलू औषध उद्योग की नींव रखी और बहुमात्रिक दवाइयों के बनाने के लिए सरकारी उपक्रम “हिंदुस्तान एंटीबायोटिक्स लिमिटेड” और “भारतीय औषधि फार्मास्यूटिकल्स लिमिटेड” को प्रोन्नत किया। फिर भी, बहुद्देशीय कंपनियों का महत्त्व बना ही रहा, क्योंकि उनके पास टेक्नीकल कुशलता, वित्तीय शक्ति तथा एक बाजार से दूसरे बाजार तक जाने के लिए नवाचार का गुण था। मौलिक अनुसंधान हेतु आने वाला अतिव्यय, गहन वैज्ञानिक ज्ञान की जरुरत और वित्तीय क्षमता – कुछ ऐसी बाधाएं थीं जिनकी वजह से निजी उपक्रम की भारतीय कंपनियों को पूरी सफलता न मिली।

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