लॉकडाउन ने मुझे समझाया समाजसेवी होने का असली अर्थ : अरुण यादव

देहरादून। आज से एक साल पहले लॉक डाउन लगने के बाद चारो तरफ सन्नाटा पसरा था। उस समय मेरे समाजिक कार्य के प्रति संकट के बादल मंडरा रहे थे। मेरी संस्था ‘अपने सपने’ के बच्चों के अधिकांश माता पिता रोज की दिहाड़ी मजदूरी करने वाले थे, अपने परिवार के साथ-साथ संस्था के लगभग 130 बच्चों के परिवार को भी सँभालने की जिम्मेदारी और बढ़ गयी। ये कहना है “अपने सपने एनजीओ” के संस्थापक एवँ अध्यक्ष अरुण कुमार यादव का।
मीडिया को जारी एक बयान में उन्होंने कहा- मुझे वह दिन याद है जब लॉकडाउन होने के ठीक तीन दिन बाद संस्था के बच्चे आये सर मेरे घर मे कुछ भी राशन नही है खाने के लिए। हो सके तो राशन दे दीजिए सर, यह सुन मैंने बच्चों को कुछ राशन दे दिया। फिर मैंने सोचा ऐसे एनजीओ के और बच्चो के परिवार भी होंगे, तो मैंने उनकी मदद के लिए कदम बढ़ाना शुरू कर दिया।
मुझे लॉकडाउन से सबसे महत्वपूर्ण सीख उस समय मिली जब देहरादून के माजरा से पैदल एक मजदूर जो लॉकडाउन से पहले घरो में पुताई का कार्य करते थे, सलीम नामक यह मजदूर जब मेरे पास राशन के लिए आये। तो किसी तरह मैंने उनकी मदद की।
तब मैंने सोचा यदि मैं इस कोरोना महामारी के संकट में केवल संस्था के बच्चों एंव उनके परिवार की ही मदद की तो यह मेरा स्वार्थ होगा, क्योंकि इस संकट की घड़ी में जरूरतमंद, मजदूर, छात्र व छात्राऐंं भी परेशान थे तो मुझे इनके बारे में भी सोचना चाहिए।
उस समय मैंने पहली बार सोशल मीडिया के साथ व्हाट्सएप स्टेट्स पर कुछ लोगो के मदद रूपी फ़ोटो शेयर किये। फिर क्या कारवाँ बनता गया। लोगो द्वारा मदद मिलना शुरू हुआ। बहुत से लोगो ने मेरे ऊपर विश्वास किया। उस विश्वास को मैंने बुझने नही दिया। मेरा और दो गुने जोश के साथ मदद रूपी कारवां प्रारभ हो गया।
सभी लोगों की मदद से लॉकडाउन और अनलॉक डाउन के समय में संस्था के लगभग 130 बच्चों एवं उनके परिवार के साथ-साथ 2000 से अधिक मजदूरों एवं कुछ छात्र-छात्राओं की भी राशन एवं हौसलें रूपी मदद की। वही जरूरतमंद बच्चों के शिक्षा के प्रति मदद, तो वही नंगे पांव रहने वाले मजदूरों को चप्पले प्रदान करना रहा।
चाहे वह घड़ी हो या इस घड़ी हो सभी सहयोगियों ने जो स्नेह प्यार और दिल खोल कर मदद के लिए हाथ बढ़ाया उन सभी को मेरा अभिनंदन शुक्रिया, आभार। उस समय मेरा पग-पग साथ देने वाले विकास चौहान जी, बद्रीविशाल जी का भी सदा अभिनंदन आभार, साथ ही शुक्रिया आभार अभिनंदन समस्त देहरादून मीडिया का भी।
वाकई “समाजसेवी होने का असली अर्थ असल में लॉकडाउन ने ही मुझे सिखाया…”