महादुर्गा नवमी पर इस तरह करें माता को प्रसन्न
नई दिल्ली। महानवमी हिन्दू धर्म में बहुत ही महत्त्वपूर्ण मानी जाती है। इस साल शारदीय नवरात्रि का नौवां दिन 18 अक्टूबर को है। नौ दिनों तक चलने वाले ‘नवरात्र’ में नवमी की तिथि को मां सिद्धिदात्री की पूजा विशेष रूप से की जाती है। अश्विन महीने में मनाने वाले इस पर्व को महा नवरात्री कहा जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार नवरात्रि वर्ष में चार बार आते हैं जिसमें से चैत्र और अश्विन माह में आने वाले नवरात्रि प्रमुख पर्व के रुप में मनाए जाते हैं।
पौष और माघ माह के नवरात्रि को गुप्त नवरात्रि कहा जाता है। इस साल नवरात्र की 10 अक्टूबर से शुरु हो चुके हैं। जो 18 अक्टूबर को खत्म होंगे। नवरात्रि नौ दिनों का पर्व है और इसके आखिरी दिन को महानवमी या दुर्गानवमी के नाम से जाना जाता है। इस वर्ष शारदीय नवरात्रि की नवमी 18 अक्टूबर को है। इस दिन कन्या पूजन कर नवरात्रि का समापन किया जाता है।
कन्या पूजन के बाद नौ दिन के बाद व्रत खोला जाता है। व्रत को पूरा करने के और मां दुर्गा का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए कन्याओं का अष्टमी और नवमी के दिन पूजन करना आवश्यक होता है। जिसके बाद ही नौ दिन का यह तप पूर्ण होता है। नवरात्रों में किए गए व्रत के अनेक फायदे बताए गए हैं। इससे शरीर संतुलित रहता है। जब मौसम बदलता है तब शरीर को संतुलित रखना आवश्यक होता है। इससे बीमारियां नहीं लगती हैं। नवरात्र के दौरान व्रत करने से शरीर में संयम, साधना की शक्ति आ जाती है।
महानवमी पूजा शुभ मुहूर्त: महानवमी 17 अक्टूबर, 12:50 से शुरू होकर 18 अक्टूबर, 15:29 को समाप्त होगी।
पूजन विधि – महानवमी के दिन मां सिद्धिदात्री की पूजा पूरे विधि-विधान से करनी चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं हो सके तो आप कुछ आसान तरीकों से मां को प्रसन्न कर सकते हैं। सिद्धिदात्री की पूजा करने के लिए नवान्न का प्रसाद, नवरस युक्त भोजन तथा नौ प्रकार के फल-फूल आदि का अर्पण करना चाहिए। इस प्रकार ‘नवरात्र’ का समापन करने से इस संसार में धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
मंत्र-
या देवी सर्वभूतेषु मातृरूपेणसंस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
ध्यान मंत्र
वन्दे वंछितमनरोरार्थेचन्द्रार्घकृतशेखराम्।
कमलस्थिताचतुर्भुजासिद्धि यशस्वनीम्॥
स्वर्णावर्णानिर्वाणचक्रस्थितानवम् दुर्गा त्रिनेत्राम।
शंख, चक्र, गदा पदमधरा सिद्धिदात्रीभजेम्॥
पटाम्बरपरिधानांसुहास्यानानालंकारभूषिताम्।
मंजीर, हार केयूर, किंकिणिरत्नकुण्डलमण्डिताम्॥
प्रफुल्ल वदनापल्लवाधराकांत कपोलापीनपयोधराम्।
कमनीयांलावण्यांक्षीणकटिंनिम्ननाभिंनितम्बनीम्॥