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#MeToo कैंपेन को लेकर हाईकोर्ट हुआ सख्त, मीडिया से बात न करने का दिया आदेश

नई दिल्ली। इन दिनों सोशल मीडिया पर चल रहे #MeToo कैंपेन के बीच दिल्ली हाई कोर्ट ने एक अहम आदेश दिया। दरअसल, एक महिला पत्रकार ने एक वेब पोर्टल के कुछ वरिष्ठ कर्मचारियों पर यौन उत्पीड़न के आरोप लगाए थे। कोर्ट ने यह बंदिश लगा दी कि वे इस कथित घटना के बारे में सोशल मीडिया या अन्य किसी पब्लिक प्लैटफॉर्म पर जानकारी सार्वजनिक न करें। चीफ जस्टिस राजेद्र मेनन और जस्टिस वीके राव की बेंच ने ओपन कोर्ट में महिला और आरोपों का सामना कर रहे लोगों को एक अंतरिम आदेश दिया। कोर्ट ने कहा कि वे किसी भी मीडिया प्लैटफॉर्म पर इस मुद्दे को लेकर न तो टिप्पणी करें और न ही इस मामले में शामिल लोगों की पहचान सार्वजनिक हो।

इससे पहले, इस मामले में अदालत ने 7 नवंबर 2017 को एक आदेश दिया था। इसमें याचिकाकर्ता और मामले से जुड़े अन्य लोगों की पहचान छिपाने के लिए कहा गया था। हालांकि, एक नई याचिका में कर्मचारियों ने दावा किया कि महिला ने #MeToo कैंपेन के तहत टि्वटर और फेसबुक के जरिए न केवल घटना का वर्णन किया, बल्कि इसमें कथित तौर पर शामिल लोगों के नाम भी लिए। याचिका में आरोप लगाया गया कि महिला ने कोर्ट के पिछले आदेश का उल्लंघन किया।

अदालत की बेंच ने कहा, ‘किसी भी पक्ष को इस मामले पर मीडिया में इंटरव्यू नहीं देना चाहिए।’ कोर्ट ने ‘किसी तीसरे पक्ष पर भी इस मामले पर प्रसारण करने या सोशल मीडिया पर जाने की बंदिश लगाई।’ कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि इस मामले पर टि्वटर या फेसबुक समेत सभी सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म पर किए गए पोस्ट हटाए जाएं। दिल्ली सरकार का पक्ष रख रहे वकील गौतम नारायण के मुताबिक, कोर्ट ने कहा कि मामले से संबंधित पक्षों को अदालत में विचाराधीन इस मामले की पब्लिसिटी करने से बचना चाहिए।

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