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नशे की गिरफ्त में दून की जवानी
देहरादून। राजधानी देहरादून और उसके आसपास नशे का कारोबार तेजी से फैल रहा है। आलम ये है कि देहरादून की ज्यादातर युवा पीढ़ी पूरी तरह से नशे की गिरफ्त में आ चुकी है। एजुकेशन हब के नाम से मशहूर देहरादून की गलियां ‘अंधेरी गलियों’ में तब्दील हो चुकी हैं। शिक्षण संस्थान ड्रग माफिया के सॉफ्ट टारगेट बने हुए हैं। सिगरेट-तंबाकू गुटखा की बात छोड़िए, यहां छात्र-छात्राएं चरस, अफीम और स्मैक से लेकर नशीले इंजेक्शन और गोलियों का खुलेआम सेवन कर रहे हैं।
इंजेक्शन व कैप्सूल ‘मनपसंद’ आइटम बन चुकी हैं। आंकड़ों पर गौर करें तो 2016 में जांच एजेंसियों ने 25089 नशीली गोलियां और 628 इंजेक्शन बरामद किए। गोलियों की यह तादाद तीन साल में सबसे अधिक थी। इसके बाद शहर में बड़े पैमाने पर अभियान चलाकर कार्रवाई तो हुई मगर ‘बड़ी मछली’ हमेशा पुलिस की पकड़ से दूर रही।
पुलिस छुटभैय्या तस्करों को गिरफ्त में लेकर कर्तव्यों की इतिश्री करती रही लेकिन नेटवर्क तोड़ने में सफल नहीं हुई। यही वजह रही कि सूबे में आई नई भाजपा सरकार ने पहले ही दिन दून में नशे पर चिंता जता पुलिस को सख्त कार्रवाई के निर्देश दिए। जिले में एंटी ड्रग स्क्वायड का गठन इसी पहल का अहम हिस्सा है।
ड्रग माफिया का नेटवर्क
युवाओं को फंदे में फांसने के लिए ड्रग माफिया का नेटवर्क भी कम नहीं है। कभी फ्री पॉर्टीज के नाम पर उन्हें नशे का सेवन कराया जा रहा है तो कभी गु्रप के जरिये। ऐसे छात्र-छात्राओं को जाल में फांसा जाता है जो उनके लिए दोहरे मुनाफे का सौदा बनें। उन्हें गैंग में शामिल कर मुफ्त में नशीले पदार्थ उपलब्ध कराए जाते हैं व आदी होने पर मोटी रकम वसूल की जाती है। उनका इस्तेमाल अन्य छात्रों को फांसने के लिए भी किया जाता है।
डीआइजी पुष्पक ज्योति का कहना है कि राजधानी में नशे का फैलता नेटवर्क वाकई में चिंता की बात है, लेकिन पुलिस इस नेटवर्क को तोड़ने के लिए बड़े पैमाने पर कार्रवाई कर रही है। विशेष अभियान के तहत एंटी ड्रग स्क्वॉयड बनाया गया है। जल्द सकारात्मक परिणाम दिखेंगे। नशे के तस्करों को बख्शा नहीं जाएगा।
स्कूल-कॉलेजों के पास फैला जाल
पिछले कुछ अंतराल के आंकड़ों पर ध्यान दें तो यही सचाई सामने आती है कि ड्रग माफिया का जाल स्कूल-कॉलेजों के आसपास ही रहा। इनका मेन टारगेट प्राईवेट इंस्टीट्यूट समेत पब्लिक व बोर्डिंग स्कूलों के छात्र-छात्राएं रहे। चूंकि इनमें अधिकतर छात्र दूसरे शहर या राज्यों से आए हुए हैं और मां-बाप से दूर रहते हैं, ऐसे में ये जाल में आसानी से फंस जाते हैं।
तीस रुपये से शुरू होती है कीमत
नशे में मदहोश होने के लिए युवाओं को तीस से डेढ़ सौ रुपये खर्च करने होते हैं। इनमें उन्हें नशे के इंजेक्शन, गोली, स्मैक, चरस व अफीम आसानी से उपलब्ध कराए जा रहे हैं।
दून में यहां हैं नशे के अड्डे
प्रेमनगर, पटेलनगर, क्लेनमटाउन, सुभाषनगर, राजपुर, धर्मपुर, रिस्पना पुल, हरिद्वार रोड, राजा रोड, कौलागढ़, जाखन, कनक चौक, करनपुर, ईसी रोड, रेसकोर्स, रायपुर, चकराता रोड, वसंत विहार, जोहड़ी गांव, गढ़ीकैंट, ऋषिकेश, सहसपुर, चकराता व विकासनगर।
प्लाट व खंडहर भी अड्डे
शहर के खाली प्लॉट व खंडहरों में नशे के मुख्य अड्डे चलाए जा रहे हैं। इस बात की तस्दीक पुलिस भी कर रही। गुजरे तीन वर्ष में हत्या के 21 मामले ऐसे हैं जो नशे के चलते प्लॉट या खंडहर में हुईं। 2014 में चर्चित कुणाल गुप्ता हत्याकांड व 2012 में वैभव सैनी हत्याकांड ऐसे ही मामलों से जुड़े हैं। बावजूद इसके अब भी शहर में दो हजार से ज्यादा खाली प्लाट व साठ से ज्यादा खंडहर नशेडिय़ों का अड्डा बने हुए हैं।
कैसे करें बच्चों की मदद
-यह जान लें कि नशा एक बीमारी है, इसका सही व पूरा इलाज जरूरी है
-बच्चे की बातों पर विश्वास करें
-बच्चे के प्रति सहानुभूति व सहयोग की भावना रखें और समझदारी से पेश आएं
-बच्चे में आत्मविश्वास जगाएं और लत छुड़वाने में मदद करें
-ज्यादा नसीहत या डांटने के बजाय उसे उचित परामर्श दिलाएं
-फर्जी नशा मुक्ति केंद्रों पर जाने से बचें
-इलाज के बाद भी बराबर ख्याल रखें व नियमित जांच कराते रहें