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पापमोचनी एकादशी पर इन उपायों से दूर होंगी सारी परेशानियां, पढ़िये पूरी जानकारी

आज चैत्र कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि और सोमवार का दिन है। एकादशी तिथि आज शाम 4 बजकर 15 मिनट तक रहेगी। उसके बाद द्वादशी तिथि लग जाएगी। आज पापमोचिनी एकादशी का व्रत किया जायेगा। वैसे तो वर्षभर में 24 एकदाशियां पड़ती हैं, लेकिन जब अधिकमास या मलमास आता है, तो इनकी संख्या बढ़कर 26 हो जाती है। वर्षभर की सभी एकादशियों का व्रत भगवान विष्णु के निमित्त किया जाता है। एकादशी व्रत में श्री विष्णु की पूजा-अर्चना करने और उनके निमित्त कुछ उपाय करने से आपको विशेष रूप से लाभ मिलता है। साथ ही व्यक्ति को हर प्रकार की परेशानी से छुटकारा मिलता है और जीवन में आगे बढ़ने का रास्ता मिलता है।

पापमोचनी एकादशी पर करेंगे ये उपाय तो दूर होंगी ये परेशानियां

अगर आपके बिजनेस को किसी की बुरी नजर लग गई है, जिसके कारण बिजनेस में आपका प्रॉफिट कम हो गया है, तो आज 11 गोमती चक्र और 3 छोटे एकाक्षी नारियल लें। अब इन्हें मंदिर में स्थापित करके, इनकी धूप-दीप आदि से पूजा करें और पूजा के बाद एक पीले रंग के कपड़े में गोमती चक्र और एकाक्षी नारियल बांधकर अपने ऑफिस या दुकान के मुख्यद्वार पर लटका दें। आज ऐसा करने से आपको बिजनेस में प्रॉफिट ही प्रॉफिट मिलेगा।

यदि आपका पैसा अपने ही किसी जान-पहचान वाले के यहां फंस गया है और अब वह आपको पैसा वापिस देने का नाम नहीं ले रहा और आप भी उससे पैसा मांगने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं, तो आज एक गोमती चक्र लें और शाम के समय अंधेरा होने पर किसी वीरानी जगह पर या घर के बाहर खाली पड़ी जगह पर जाकर एक गड्ढा खोदें और श्री विष्णु का नाम लेते हुए गोमती चक्र उस गड्ढे में दबा दें और भगवान से प्रार्थना करें कि वह व्यक्ति आपका पैसा लौटा दें। आज ऐसा करने से जल्द ही वह व्यक्ति खुद चलकर आपका पैसा वापस करने आयेगा।

अगर आप अपने घर, ऑफिस या दुकान की आर्थिक स्थिति को बेहतर बनाना चाहते है तो आज एक छोटा-सा पीला कपड़ा और 11 गोमती चक्र लें। उस पीले कपड़े को मन्दिर में मां लक्ष्मी के आगे रख दें और उस पर एक-एक गोमती चक्र मंत्र बोलते हुए रखते जायें। एक गोमती चक्र पीले कपड़े पर रखें और मंत्र बोलें- ‘ऊँ नारायणाय नमः’। इसी तरह बाकी गोमती चक्र भी रखें। अब धूप-दीप आदि से विधि-पूर्वक श्री विष्णु, देवी लक्ष्मी और मन्दिर में रखे गोमती चक्र की पूजा करें। पूजा के बाद उन गोमती चक्रों को वहीं रखा रहने दें और अगले दिन उनमें से 5 गोमती चक्र को अपने घर की तिजोरी में, 5 गोमती चक्र को अपने दुकान या ऑफिस की तिजोरी में और आखिरी बचे हुए एक गोमती चक्र को उसी पीले कपड़े में बांधकर मन्दिर में रख दें। आज ऐसा करने से हर तरह से आपकी आर्थिक स्थिति मजबूत होगी।

अगर आप नौकरी में प्रमोशन चाहते हैं तो आज एक कच्चा जटा वाला नारियल और 8 बादाम लेकर भगवान विष्णु के मंदिर में चढ़ा दें। साथ ही भगवान विष्णु के इस मन्त्र का 11 बार जप करें। मन्त्र है- ऊँ नारायणाय नमः। आज ऐसा करने से नौकरी में आपके प्रमोशन के चांस बढ़ेंगे

अगर किसी दूसरे व्यक्ति के कारण आपके दाम्पत्य रिश्ते में परेशानी चल रही हैं, बात-बात पर झगड़े होते रहते हैं, तो आज स्नान के बाद घर में ही भगवान विष्णु की प्रतिमा या मन्दिर के सामने आसन बिछाकर बैठ जायें। साथ ही एक लोटे या गिलास में जल भरकर रख लें और उसमें थोड़ा गुड़ और लाल फूल डाल दें। अब भगवान विष्णु के मंत्र- ‘ऊँ नारायणाय नमः’ का कम से कम एक माला जाप करें। जाप के बाद भगवान से दोनों हाथ जोड़कर अपने रिश्ते में चल रही परेशानी को दूर करने के लिये प्रार्थना करें और जाप के समय रखे हुए जल को पीपल की जड़ में चढ़ा दें। आज ऐसा करने से जल्द ही आपके रिश्ते में फिर से विश्वास बहाल होगा और दोनों के बीच की अनबन दूर होगी।

पापमोचनी एकादशी की पूजा विधि

प्रात:काल सभी कामों से निवृत्त होकर स्नान करें। इसके बाद भगवान विष्णु की पूजा करें। पूजा पर घी का दीपक जलाएं। जाने-अनजाने में आपसे जो भी पाप हुए हैं उनसे मुक्ति पाने के लिए भगवान विष्णु से हाथ जोड़कर प्रार्थना करें। इस दौरान ‘ऊं नमो भगवते वासुदेवाय’ मंत्र का जप निरंतर करते रहें। एकादशी की रात्रि प्रभु भक्ति में जागरण करे, उनके भजन गाएं। भगवान विष्णु की कथाओं का पाठ करें। द्वादशी के दिन उपयुक्त समय पर कथा सुनने के बाद व्रत खोलें।

एकादशी व्रत दो दिनों तक होता है लेकिन दूसरे दिन की एकादशी का व्रत केवल सन्यासियों, विधवाओं अथवा मोक्ष की कामना करने वाले श्रद्धालु ही रखते हैं। व्रत द्वाद्शी तिथि समाप्त होने से पहले खोल लेना चाहिए लेकिन हरि वासर में व्रत नहीं खोलना चाहिए और मध्याह्न में भी व्रत खोलने से बचना चाहिये। यदि द्वादशी तिथि सूर्योदय से पहले समाप्त हो रही हो तो सूर्योदय के बाद ही पारण करने का विधान है।

पापमोचनी एकादशी व्रत कथा

व्रत कथा के अनुसार चित्ररथ नामक वन में मेधावी ऋषि कठोर तप में लीन थे। उनके तप व पुण्यों के प्रभाव से देवराज इन्द्र चिंतित हो गए और उन्होंने ऋषि की तपस्या भंग करने हेतु मंजुघोषा नामक अप्सरा को पृथ्वी पर भेजा। तप में विलीन मेधावी ऋषि ने जब अप्सरा को देखा तो वह उस पर मन्त्रमुग्ध हो गए और अपनी तपस्या छोड़ कर मंजुघोषा के साथ वैवाहिक जीवन व्यतीत करने लगे।

कुछ वर्षो के पश्चात मंजुघोषा ने ऋषि से वापस स्वर्ग जाने की बात कही। तब ऋषि बोध हुआ कि वे शिव भक्ति के मार्ग से हट गए और उन्हें स्वयं पर ग्लानि होने लगी। इसका एकमात्र कारण अप्सरा को मानकर मेधावी ऋषि ने मंजुधोषा को पिशाचिनी होने का शाप दिया। इस बात से मंजुघोषा को बहुत दुःख हुआ और उसने ऋषि से शाप-मुक्ति के लिए प्रार्थना करी।

क्रोध शांत होने पर ऋषि ने मंजुघोषा को पापमोचनी एकादशी का व्रत विधिपूर्वक करने के लिए कहा। चूंकि मेधावी ऋषि ने भी शिव भक्ति को बीच राह में छोड़कर पाप कर दिया था, उन्होंने भी अप्सरा के साथ इस व्रत को विधि-विधान से किया और अपने पाप से मुक्त हुए।

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