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टीएसआर द्वारा बीते 4 वर्षों में किये गए कार्य ही 2022 में भाजपा को विजय दिलायेंगे

देहरादून। शुक्रवार को चले सियासी उठापटक के बाद देर रात अचानक मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। उन्होंने अपना इस्तीफा उत्तराखंड की महामहिम राज्यपाल बेबी रानी मौर्य को सौंपा।

इसी बीच सत्ता के गलियारों में अटकलें तेज हो गई कि एक बार फिर से पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत के हाथों में राज्य की कमान सौपी जा सकती है। वहीं राजनीति के जानकार एवँ सूत्र बताते हैं कि भाजपा हाईकमान किसी अनुभवी एवँ संघ के व्यक्ति को ही सीएम बनाने को तरजीह देगा। ऐसे में “फ़िर एक बार टीएसआर” की बात सही हो सकती है।

यदि देखा जाए तो त्रिवेंद्र सिंह रावत के सिवा और कोई विधायक नहीं जो अनुभवी होने के साथ ही प्रदेश में भाजपा को पुनः सत्ता आसीन कर सकता है पर भाजपा को अब बिना कोई त्रुटि करे ऐसा निर्णय लेना है जिससे भाजपा पुनः सत्ता में आ सके।

हमने पिछले 4 साल के एक सर्वे रिपोर्ट में यह पाया की यदि भाजपा ने तीसरी बार इस तरह का नया परीक्षण किया और अनुभवी विधायक को कमान नही दी तो 2022 में उसे कांग्रेस से भी कम सीटे मिलेंगी। इसलिए आम जानमानस की रिपोर्ट और सर्वे को देखते हुए अनुभवी विधायक को ही मुख्यमंत्री बनाया जायेगा।

क्योंकि त्रिवेंद्र रावत के खिलाफ एक भी आरोप एवं भ्रस्टाचार की कोई शिकायत आज तक उपलब्ध नहीं है। जो साजिश भी उनके खिलाफ हुई वह महज सुनी सुनाई बाते या बिना प्रमाणिकता के आधार पर विरोधियों द्वारा साजिश के तहत फैलाई गई अफवाहें मात्र थी, जिससे सरकार और भाजपा को अस्थिर किया जा सके। इन सारी साजिशो का कोई प्रमाण नहीं है और बाद में भाजपा हाईकमान को भी यह अहसास हो गया है कि ये सब विरोधियों द्वारा राज्य में अस्थिरता फैलाने हेतु किया गया।

बरहाल आज सारे प्रकरण एवं मामले का पटाक्षेप हो गया है और भाजपा अपना स्वर्णिम व आने वाले समय में सरकार बनाने का सपना त्रिवेंद्र सिंह रावत के रूप में पूरा कर सकती है। भाजपा पर्यवेक्षक नरेंद्र सिंह तोमर एवं वी पुरुदेश्वरी को बताया जा चुका है कि अनजान और गैर अनुभवी विधायक को उत्तराखंड में अपना मुखिया नहीं बनाएगी क्योंकि दूध का जला छाछ भी फूंक-फूंककर पीता है।

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यदि जातीय समीकरण की ही बात की जाए तो त्रिवेंद्र रावत ठाकुर हैं और प्रदेश में 10 जिले ठाकुर बाहुल्य है। वहीं वे 4 साल का सफल सरकार चलाने का अनुभव भी रखते हैं। ऐसे में त्रिवेंद्र निर्विवादित मुख्यमंत्री पुनः हो सकते हैं जिनके साथ आरएसएस और प्रदेश की जनता सहित समस्त विधायकों का साथ पूर्ण रूप से होगा।

बहरहाल अब भाजपा को बिना किसी रोक टोक एवं पुरानी गलती को सुधारते हुए त्रिवेंद्र सिंह रावत को मुख्यमंत्री घोषित कर देना चाहिए। इसलिए त्रिवेंद्र सिंह रावत इस समय एक मजबूत चेहरा पुनः भाजपा के सामने हो सकता है और जहाँ तक विधायकों को पूछने की बात है तो भाजपा में पूछने या सुनने का कोई नियम नहीं है। यहाँ जो पार्टी हाई कमान चाहता है वही सबको मानना होगा। वहीं त्रिवेंद्र 4 साल निर्विवादित मुख्यमंत्री रहे हैं। देखा जाए तो एक-दो को छोड़ आज भी सब त्रिवेद्र सिंह रावत के पक्ष में है।

यह जरूर है की त्रिवेंद्र रावत के 4 साल में कुछ ऐसे निर्णय रहे हैं जो विरोधियों को रास नहीं आये जिसमे दलाली प्रथा का अंत, रिश्वत प्रथा का अंत, ट्रांसफर पोस्टिंग में पैसो का चलन और भ्रष्ट अधिकारियो के खिलाफ जांच बैठाना, भ्रष्ट कार्यों पर रोक लगाना है और ऐसे काम जो निर्वावदित सरकार चलाने में अवरोध उत्पन्न करते हो, वो त्रिवेंद्र सिंह रावत ने नहीं होने दिए।

इसीलिए उनके और सरकार के दुश्मनो ने साजिश करके हाईकमान को मीडिया एवं अन्य साधनो से गुमराह करके व उनके कुछ सलाहकारों के साथ मिलकर साजिश के तहत उन्हें कोर्ट- कचहरी में फंसाने की कोशिश की और कुचक्र रचा। जो अब कुछ महीनो बाद स्पष्ट हो गया कि सब साजिश के तहत किया गया था। वही लोग जो गाहे बगाहे उनकी दूसरो के भड़काने पर बुराई करते आज तारीफ़ करने से नहीं थकते हैं।

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