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पेड़ गिरने से क्षतिग्रस्त हुआ मकान, सरकारी मदद की राह तक रहा पीड़ित परिवार

देहरादून। राजधानी देहरादून के बीचों-बीच स्थित दर्शनलाल चौक के निकट हाल ही में एक मकान पर एक भारी-भरकम पेड़ अचानक गिर गया। जिससे घर की छत और दीवारें पूरी तरह से टूट गयी और घर के भीतर रखा सारा सामान क्षतिग्रस्त हो गया।

गौरतलब है कि देहरादून के दर्शनलाल चौक के निकट स्थित काली माता मंदिर में वहां के पुजारी सिद्धार्थ बहुगुणा का परिवार रहता है। मंदिर के पुजारी सिद्धार्थ बहुगुणा के साथ ही उनकी पत्नी व दो छोटे बच्चे भी इन दो कमरों के मकान में रहते हैं।

प्राप्त सूचना के अनुसार बीती 25 जून को जनपद में हुई भीषण बारिश की वजह से जहाँ पूरा क्षेत्र पानी से लबालब भर गया, वहीं सड़क का सारा पानी बहकर मंदिर के आंगन में भर गया। रातभर तकरीबन 3 फुट से भी ज्यादा पानी मंदिर में जमा रहा।

इसी बीच रात को 3 बजे के करीब गृह स्वामी जब अपने परिवार संग मकान में सो रहे थे तभी पास खड़ा एक पीपल का भारी-भरकम पेड़ उखड़कर इनके मकान पर आ गिरा। इस दुर्घटना में मकान की छत, दीवारें और कमरे के भीतर रखा कीमती सामान पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गया। किसी तरह से मकान स्वामी अपनी व अपने परिवार की जान बचा पाए।

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तभी से लेकर आजतक वे शासन व प्रशासन से मदद की गुहार लगा रहे हैं मगर उनकी सुध लेने वाला कोई नहीं है। पीड़ित सिद्धार्थ बहुगुणा के अनुसार वे अपनी फरियाद को लेकर स्थानीय विधायक खजानदास से लेकर मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत तक से गुहार लगा चुके हैं किन्तु किसी ने उनकी सुध नहीं ली।

उनके अनुसार वे नगर के मेयर विनोद चमोली, जिलाधिकारी ए.एस. मुरुगेशन और वन विभाग के अधिकारियों को भी मामले से अवगत करा चुके हैं मगर अभी तक कोई भी घटनास्थल का मुआयना करने नहीं आया और ना ही शासन व प्रशासन की ओर से उन्हें कोई आर्थिक मदद ही प्रदान की गई।

वहीँ अब वे मुआवजे के लिए सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगा रहे हैं किन्तु दो माह का समय बीत जाने के बावजूद भी उन्हें सिर्फ उन्हें सरकारी आश्वासन ही मिल रहा है, मदद नहीं। वाकई ये काफी हैरान करने वाला और बेहद शर्मनाक रवैया है सरकारी तंत्र और सरकार का। जिससे साफ़ झलकता है कि सरकार कितनी उदासीन है पीड़ितों के जख्म पर मरहम लगाने के प्रति।

ऐसे में सवाल ये उठता है कि जब राजधानी देहरादून के बीचोंबीच स्थित क्षतिग्रस्त मकान के मुआवजे के लिए मकान स्वामी को इतना भटकना पड़ रहा है तो पहाड़ों के दूरस्थ इलाकों में हादसों के शिकार लोगों को सरकारी इमदाद के लिए कितनी जद्दोजहद करनी पड़ती होगी?

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