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पिछले आठ वर्षों से मौत को मात दे रहा है ये शख़्स!

नई दिल्ली। अपनी जिन्दगी में आपने कईं अजब किस्से सुने होंगे। मगर हम जिस किस्से के बारे में आपको बताने जा रहे हैं वो नासिर्फ अजब ही है बल्कि जिन्दगी को नये सिरे से व अलग अंदाज में जीने की प्रेरणा भी देता है। वो कहते हैं न, ‘किसी को खोने का असली एहसास, उसके जाने के बाद ही होता है’। ज़िन्दगी भी कुछ ऐसी ही है, ये हमें चुटकी में वो सब कुछ सिखा जाती है, जिसे हम उम्र भर नहीं भूलते। हम आपको कैंसर से जूझ रहे ओसामा सुलेमान के बारे में बताने जा रहे हैं। करीब 8 साल पहले सुलेमान को ब्रेन कैंसर हो गया था, 9 महीने ट्रीटमेंट के बाद डॉक्टरों ने कह दिया था कि उनके पास जीने के लिए सिर्फ़ 6 महीने या 1 साल ही बचा है, लेकिन डॉक्टर्स के कहे से उलट सुलेमान आज भी ज़िंदा हैं और ज़िन्दगी की क़ीमत बख़ूबी समझते हैं।

अपने इस लेटर में उन्होंने ज़िन्दगी की क़िताब से कुछ पन्ने पढ़ कर सुनाने की कोशिश की है। “8 साल बाद भी मैं इस बीमारी से लड़ कर कैसे ज़िंदा हूं? यही बताने के लिए आप लोगों के बीच आया हूं। जब मुझे पता चला कि मेरे पास कम समय है, तो मैंने वो सभी काम किए, जो पहले से करता था, मैं ख़ुद को अपने काम में बिज़ी रखता था, घूमने जाता था। अपने परिवार के साथ ज्यादा समय बिताने लगा, दोस्तों के घर जाना और उनके साथ पार्टी करना। इस बीच मैंने वो सब किया, जो मैं पहले नहीं कर पाया था। इस दौरान मैंने अपनी बीमारी को भूल कर ज़िन्दगी जीना सीखा। मैं खुशियों को अपनी ज़िन्दगी में सबसे ज़्यादा महत्व देने लगा। इस बीच इस बीमारी ने मुझे कई बार तोड़ने की कोशिश भी की, लेकिन मैं डरा नहीं, बस मेरा लेफ़्ट साइड पैरालाईज़्ड हो गया है, इसके बाद भी मैं जी रहा हूं।”

सुलेमान की ये कहानी कई लोगों को प्रेरणा देती है। उन्होंने ज़िन्दगी की अहमियत को समझ कर किस तरह मौत को मात दी। क्योंकि जब इंसान मौत के करीब होता है, तभी उसे ज़िन्दगी का एहसास होता है। ऐसे समय इंसान अपनी ग़लतियों को सुधारना चाहता है, वो बस ज़िन्दगी को जीना चाहता है। जब इंसान इस धरती पर आता है तो वो साथ में अपनी मौत का समय भी लेकर आता है। लेकिन ज़िन्दगी को कैसे जीना है, ये इंसान के हाथ में होता है। इस बारे में एक शायर ने बहुत खूब लिखा है कि ‘‘जिन्दगी जिन्दादिली का नाम है, मुर्दादिल क्या खाक जिया करते हैं’’।

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