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जनसेवी अजय सोनकर ने महान क्रांतिकारी मंगल पांडे के बलिदान दिवस पर किया नमन

पूर्व पार्षद अजय सोनकर ने कहा, ब्रिटिश सरकार के खिलाफ बगावत की चिंगारी भड़काने वाले बैरकपुर रेजीमेंट के सिपाही मंगल पांडे को आज के ही दिन फांसी दी गई थी।

देहरादून। वरिष्ठ भाजपा नेता, प्रसिद्ध जनसेवी एवं वार्ड संख्या 18 इंदिरा कॉलोनी के पूर्व नगर निगम पार्षद अजय सोनकर उर्फ घोंचू भाई ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अग्रदूत अमर शहीद मंगल पांडे जी के बलिदान दिवस पर उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए सादर नमन किया।

इस अवसर पर जारी अपने संदेश में जनसेवी अजय सोनकर ने कहा- अदम्य साहस और वीरता के प्रतीक, प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम 1857 में अंग्रेजी हुकूमत को भारत छोड़ने की चुनौती देकर देशभर में आजादी की अलख जगाने वाले, महान क्रांतिकारी मंगल पांडे जी के बलिदान दिवस पर उन्हें कोटि-कोटि नमन।

पूर्व पार्षद अजय सोनकर ने कहा, ब्रिटिश सरकार के खिलाफ बगावत की चिंगारी भड़काने वाले बैरकपुर रेजीमेंट के सिपाही मंगल पांडे को आज के ही दिन फांसी दी गई थी। देश को आजाद कराने का पहला श्रेय मंगल पांडे को ही है। उनकी आजादी की चिंगारी भर ने ब्रिटिश हुकूमत को इतना डरा दिया कि निश्चित तारीख से दस दिन पहले ही 8 अप्रैल 1857 को पश्चिम बंगाल के बैरकपुर जेल में उन्हें फांसी दे दी गई।

जनसेवी अजय सोनकर ने महान क्रांतिकारी मंगल पांडे जी का स्मरण करते हुए कहा कि मात्र 22 साल की उम्र में ही वे ईस्ट इंडिया कंपनी की 34वीं बंगाल नेटिव इन्फेंट्री में सिपाही के तौर पर शामिल हो गए थे। समय के साथ बदले हालात ने मंगल पांडे को ब्रिटिश हुकूमत का दुश्मन बना दिया। सिपाहियों के लिए साल 1850 में एनफिल्ड राइफल दिया गया। दशकों पुरानी ब्राउन बैस के मुकाबले शक्तिशाली और अचूक इस एनफिल्ड बंदूक को भरने के लिए कारतूस को दांतों की सहायता से खोलना पड़ता था। कारतूस के कवर को पानी के सीलन से बचाने के लिए उसमें चर्बी होती थी। इस बीच खबर मिली की कारतूस की चर्बी सूअर और गाय के मांस से बनी है। सिपाहियों ने इसे ब्रिटिश हुकूमत सोची-समझी साजिश के तहत हिंदू-मुसलमानों के धर्म से खिलवाड़ समझा। तभी मंगल पांडे ने कारतूस का इस्तेमाल करने से इंकार कर दिया। मंगल पांडे ने सिपाहियों से ब्रिटिश हुकूमत का विरोध करने के लिए कहा और हथियार उठा लिया था। उन्होंने सार्जेंट मेजर ह्यूसन को गोली मार दी।

इसके बाद उनकी गिरफ्तारी हुई और उन पर कोर्ट मार्शल कर 18 अप्रैल को फांसी पर चढ़ाने की सजा दी गई। इसके बाद भी ब्रिटिश शासन को भय था, इसलिए मंगल पांडे को 10 दिन पहले यानी 8 अप्रैल 1857 को गुपचुप तरीके से फांसी पर चढ़ा दिया। अपने अदम्य साहस से अंग्रेजी शासन की चूलें हिला देने वाले महान क्रांतिकारी, अमर बलिदानी मंगल पांडे जी के शौर्य, पराक्रम और त्याग की गाथा युगों-युगों तक देश प्रेम की अलख जगाती रहेगी।

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