उत्तराखंड की विलुप्त होती जा रही संस्कृति पर जनसेवी भावना पांडे ने व्यक्त की चिंता, सरकार से की ये मांग
देहरादून। उत्तराखंड की विलुप्त होती जा रही संस्कृति को लेकर वरिष्ठ राज्य आंदोलनकारी, प्रसिद्ध जनसेवी एवं जनता कैबिनेट पार्टी की केंद्रीय अध्यक्ष भावना पांडे ने अपनी चिंता व्यक्त की है। उन्होंने कहा कि जिस तरह से हमारे उत्तराखंड की संस्कृति तेजी से विलुप्त हो रही है, ये वाकई गंभीर विषय है।
वरिष्ठ राज्य आंदोलनकारी भावना पांडे ने अपनी चिंता जाहिर करते हुए कहा कि हमारी आज की युवा पीढ़ी अपने संस्कार एवं पहाड़ी संस्कृति को लगभग भूलती ही जा रही है। हालत ये है कि हमारे बच्चे अपनी पहाड़ी बोली-भाषा को बोलने में भी झिझक महसूस करते हैं।
उन्होंने कहा कि तेजी से बढ़ता हुआ शहरीकरण एवं विदेशी संस्कृति टीवी व मोबाइल फोन के ज़रिए हमारे घरों के भीतर घुसपैठ कर चुके हैं। ये विदेशी कल्चर कहीं न कहीं हमारे युवाओं के दिलों में बस चुका है। इसी वजह से आज के युवा अपनी संस्कृति को भूल विदेशी वस्त्र पहनने, अंग्रेजी गीतों की धुनों को सुनने व इन पर थिरकने में ज्यादा रुचि लेने लगे हैं।
उत्तराखंड की बेटी भावना पांडे ने कहा कि उत्तराखंड देवों की भूमि है, यहाँ के कण-कण में देवी-देवताओं का वास है मगर अफ़सोस होता है जब हमारे युवा अपने देवी-देवताओं के मंदिरों में न जाकर दूसरे धर्मों को ज्यादा तरजीह देते हैं। हमारे पारंपरिक त्यौहार मानों आज गायब से होते जा रहे हैं। युवा पीढ़ी इन पारंपरिक त्यौहार को मनाने से भी कतराने लगी है।
उन्होंने कंडारी में स्थित भगवान रघुनाथ मंदिर का उदाहरण देते हुए कहा कि आज भी प्रत्येक वर्ष यहां कम से कम सात-आठ गांव के लोग आकर अपनी संस्कृति को जिंदा रखते हुए सांस्कृतिक कार्यक्रमों को आयोजित करते हैं। किंतु बड़े ही दुःख की बात है कि ना तो हमारे युवा और ना ही उत्तराखंड सरकार अपनी संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए कोई खास कार्य कर रही है। उन्होंने मांग करते हुए कहा कि सरकार को आगे आकर ऐसी सांस्कृतिक चीजों को बढ़ावा देना चाहिए।
जनसेवी भावना पांडे ने कहा कि उत्तराखंड की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को संजोये रखने में यहां के परंपरागत ढोलवादकों (बाजगियों और ढोलियों) की अहम भूमिका है। ढोलवादन की उनकी पारंपरिक विधा का अदभुत संसार है और यहां सोलह संस्कार तो उनके बिना अधूरे हैं। इस बीच वक्त ने करवट बदली और आधुनिकता की चकाचौंध का असर यहां के परंपरागत ढोलवादकों के साथ ही उनकी पारंपरिक विधा पर भी पड़ा। आज स्थिति ये है कि परंपरागत ढोलवादकों की संख्या अंगुलियों में गिनने लायक रह गई है। ऐसे में उनके पारंपरिक ज्ञान और लोककला पर भी संकट के बादल मंडराने लगे हैं। उन्होंने मांग करते हुए कहा कि उत्तराखंड में लोककलाओं के संरक्षण के लिए परंपरागत ढोलवादकों को प्रोत्साहित करने के साथ ही उनकी पारंपरिक विधा को संरक्षण देने की पहल की जानी चाहिए।
जेसीपी अध्यक्ष भावना पांडे ने कहा कि अपनी लोक कलाओं एवं संस्कृति की पहचान के लिए दुनिया में खास स्थान रखने वाले उत्तराखंड राज्य में आज कईं पारंपरिक लोक कलाएं अपना अस्तित्व खोती जा रही हैं। अधिकतर लोक कलाएं विलुप्ति की कगार पर हैं तो कई इतिहास के पन्नों तक सिमट कर रह गई हैं। उन्होंने कहा कि यदि हमारी सरकार एवं हमारे युवा अपनी पहाड़ी संस्कृति के प्रति इतने लापरवाह बने रहेंगे तो भावी पीढ़ी को इन महत्वपूर्ण चीजों से कौन रूबरू करवाएगा। ये एक बड़ा सवाल है जिसके बारे में हम सभी को गंभीरता से सोचना होगा।