रिजर्व बैंक ने रेपो रेट में नहीं किया बदलाव, पढ़िये पूरी खबर
मुंबई। भारतीय रिजर्व बैंक (RBI-Reserve Bank of India) ने शुक्रवार को आर्थिक नीति की घोषणा कर दी है। आरबीआई ने लगातार 11वीं बार प्रमुख ब्याज दरों में कोई बदलाव नहीं किया है। रेपो रेट बिना किसी बदलाव के साथ 4% रहेगा। एमएसएफ रेट और बैंक रेट बिना किसी बदलाव के साथ 4.25% रहेगा। रिवर्स रेपो रेट भी बिना किसी बदलाव के साथ 3.35% रहेगा। हालांकि आरबीआई गवर्नर ने महंगाई को लेकर चिंता जरूर व्यक्त की। दास ने कहा, फिलहाल हमने रेपो रेट को 4 फीसदी पर स्थिर बनाए रखा है। इससे कर्ज का प्रवाह बढ़ाने में मदद मिलेगी और महामारी के दबाव से अर्थव्यवस्था को बाहर लाया जा सकेगा।
आरबीआई गवर्नर ने कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था महामारी की वजह से पैदा हुई सुस्ती से धीरे-धीरे उबर रही है। वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल के दाम ऊंचे स्तर पर बने हुए हैं। A अर्थव्यवस्था बड़े विदेशी मुद्रा भंडार की वजह से संतोषजनक स्थिति में; रिजर्व बैंक अर्थव्यवस्था के ‘बचाव’ के लिए पूरी तरह से तैयार है। आरबीआई गवर्नर ने कहा कि भारत दुनिया के अन्य देशों के मुकाबले अलग रास्ते पर चल रहा है। आईएमएफ के अनुमानों के अनुसार भारत प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में साल-दर-साल सबसे तेज गति से बढ़ने की ओर अग्रसर है। यह रिकवरी बड़े पैमाने पर टीकाकरण और निरंतर वित्तीय और मौद्रिक सहायता के चलते प्राप्त होगी।
रेपो रेट (Repo Rate)
रेपो रेट को आसान भाषा में ऐसे समझा जा सकता है। बैंक हमें कर्ज देते हैं और उस कर्ज पर हमें ब्याज देना पड़ता है। ठीक वैसे ही बैंकों को भी अपने रोजमर्रा के कामकाज के लिए भारी-भरकम रकम की जरूरत पड़ जाती है और वे भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) से कर्ज लेते हैं। इस ऋण पर रिजर्व बैंक जिस दर से उनसे ब्याज वसूल करता है, उसे रेपो रेट कहते हैं।
रेपो रेट से आम आदमी पर क्या पड़ता है प्रभाव
जब बैंकों को कम ब्याज दर पर ऋण उपलब्ध होगा यानी रेपो रेट कम होगा तो वो भी अपने ग्राहकों को सस्ता कर्ज दे सकते हैं। और यदि रिजर्व बैंक रेपो रेट बढ़ाएगा तो बैंकों के लिए कर्ज लेना महंगा हो जाएगा और वे अपने ग्राहकों के लिए कर्ज महंगा कर देंगे।
रिवर्स रेपो रेट (Reverse Repo Rate)
यह रेपो रेट से उलट होता है। बैंकों के पास जब दिन-भर के कामकाज के बाद बड़ी रकम बची रह जाती है, तो उस रकम को रिजर्व बैंक में रख देते हैं। इस रकम पर आरबीआई उन्हें ब्याज देता है। रिजर्व बैंक इस रकम पर जिस दर से ब्याज देता है, उसे रिवर्स रेपो रेट कहते हैं।
रिवर्स रेपो रेट का आम आदमी पर ऐसे पड़ता है प्रभाव
जब भी बाजारों में बहुत ज्यादा नकदी दिखाई देती है, आरबीआई रिवर्स रेपो रेट बढ़ा देता है, ताकि बैंक ज्यादा ब्याज कमाने के लिए अपनी रकम उसके पास जमा करा दें। इस तरह बैंकों के कब्जे में बाजार में छोड़ने के लिए कम रकम रह जाएगी।
जानिए क्या होता है नकद आरक्षित अनुपात (Cash Reserve Ratio/CRR)
बैंकिंग नियमों के तहत हर बैंक को अपने कुल कैश रिजर्व का एक निश्चित हिस्सा रिजर्व बैंक के पास रखना ही होता है, जिसे कैश रिजर्व रेश्यो अथवा नकद आरक्षित अनुपात (सीआरआर) कहा जाता है। यह नियम इसलिए बनाए गए हैं, ताकि यदि किसी भी वक्त किसी भी बैंक में बहुत बड़ी तादाद में जमाकर्ताओं को रकम निकालने की जरूरत पड़े तो बैंक पैसा चुकाने से मना न कर सके।
आम आदमी पर सीआरआर का ऐसे पड़ता है प्रभाव
अगर सीआरआर बढ़ता है तो बैंकों को ज्यादा बड़ा हिस्सा रिजर्व बैंक के पास रखना होगा और उनके पास कर्ज के रूप में देने के लिए कम रकम रह जाएगी। यानी आम आदमी को कर्ज देने के लिए बैंकों के पास पैसा कम होगा। अगर रिजर्व बैंक सीआरआर को घटाता है तो बाजार नकदी का प्रवाह बढ़ जाता है।
क्या है एसएलआर (Statutory liquidity ratio/वैधानिक तरलता अनुपात)
जिस रेट पर बैंक अपना पैसा सरकार के पास रखते हैं, उसे एसएलआर कहते हैं। नकदी को नियंत्रित करने के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता है। कमर्शियल बैंकों को एक खास रकम जमा करानी होती है, जिसका इस्तेमाल किसी इमरजेंसी लेन-देन को पूरा करने में किया जाता है।