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सावधान! उत्तराखंड में पड़ सकता है “सूखा”

देहरादून। देश के उत्तरी छोर में बसे उत्तराखंड से शायद इस बार प्रकृति नाराज़ नज़र आ रही है। यही वजह है कि राज्य में न तो अभी तक बारिश ही हुई है और न ही बर्फबारी के आसार नजर आ रहे हैं। प्रदेश भले ही शीतलहर की चपेट में हो, लेकिन इंद्रदेव की बेरुखी सूखे की तरफ इशारा कर रही है।

यदि बारिश की ही बात की जाए तो सर्दियों में अक्टूबर से दिसंबर तक बारिश सामान्य से 76 फीसद कम रही, जबकि इस बार जनवरी में बूंद भी नहीं बरसी और 20 जनवरी तक बारिश के फिलहाल कोई संकेत भी नजर नहीं आ रहे हैं। इस सबके चलते सरकार के माथे पर भी बल पड़े हैं।

कृषि मंत्री सुबोध उनियाल के अनुसार अभी कहीं से कोई शिकायत तो नहीं मिली है, लेकिन मौसम के असर के मद्देनजर सभी जिलों के मुख्य कृषि अधिकारियों को सर्वे के निर्देश जारी किए जा रहे हैं। वहीं, गढ़वाल एवं कुमाऊं मंडलों में राजस्व विभाग की ओर से मौसम आधारित रेगुलर सर्वे भी प्रारंभ किया जा रहा है।

सर्दियों की बारिश रबी की मुख्य फसल गेहूं के साथ ही सेब समेत अन्य शीतकालीन फलों के लिए खास मायने रखती है। मौसम विभाग के आंकड़ों पर गौर करें तो सर्दियों में सूबे में एक अक्टूबर से 31 दिसंबर तक 85.6 मिमी बारिश होती है, जबकि इस मर्तबा इसमें 76 फीसद की कमी रही। यही नहीं, जनवरी का पहला हफ्ता गुजरने के बाद भी बारिश का कोई नामोनिशान नहीं है।

जाहिर है कि इससे किसानों के माथों पर चिंता की लकीरें उभर आई हैं। राज्य मौसम केंद्र, देहरादून के निदेशक विक्रम सिंह बताते हैं कि 20 जनवरी तक बारिश के संकेत न के बराबर हैं। इसके बाद भी वर्षा न हुई तो रबी की फसल और बागवानी पर असर पडऩे की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। वहीं, मंडलायुक्त गढ़वाल दिलीप जावलकर भी मानते हैं कि बारिश कम है। इसे देखते हुए फसलों पर पडऩे वाले असर के मद्देनजर रेगुलर सर्वे प्रारंभ किया जा रहा है। कुमाऊं मंडल में भी इसी तरह की कवायद की जा रही है।

कृषि मंत्री (उत्तराखंड) सुबोध उनियाल का कहना है कि राज्य में सर्दियों में अब तक बारिश काफी कम हुई है। इससे सरकार भी चिंतित है। ऐसे में खेती-किसानी पर इसके असर का आंकलन करने के लिए सर्वे कराया जाएगा। इसके लिए सभी जिलों में मुख्य कृषि अधिकारियों को निर्देश जारी किए जा रहे हैं।

उत्तराखंड बनने के बाद यह पांचवां मौका है, जब अक्टूबर से दिसंबर तक बारिश बेहद कम रही है। इस अवधि में वर्ष 2000 में 96, 2007 में 77, 2011 में 80,  2016 में 81.6 और 2017 में बारिश सामान्य से 76 फीसद कम रही।

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