वैज्ञानिकों का बड़ा दावा, टीके के एक डोज से खत्म होगी HIV-AIDS की बीमारी
नई दिल्ली। एचआईवी एड्स दुनिया की सबसे खतरनाक बीमारियों में से एक है। बीते दशकों में दुनिया ने काफी तरक्की की। टेक्नोलॉजी में विश्व आगे बढ़ा, लेकिन एड्स जैसी लाइलाज बीमारी का हल नहीं खोजा जा सका। अब इजराइल से एक नई खबर आई है। दरअसल, कैंसर जैसी बीमारी के इलाज के बाद अब वैज्ञानिकों ने एचआईवी एड्स HIV/AIDS जैसी जानलेवा बीमारी का इलाज भी ढूंढ लिया है। इस बीमारी से जूझ रहे मरीजों का इम्यून सिस्टम बेहद कमजोर हो जाता है और अपने आप वायरस से लड़ने में सक्षम नहीं होता। इजराइल के तेल अवीव शहर के विश्वविद्यालय के शोधार्थियों ने एक ऐसी वैक्सीन बनाने में सफलता हासिल की है, जिसके बारे में दावा है कि एक खुराक से ही बॉडी में वायरस को खत्म किया जा सकेगा।
किस तरह बनाया गया यह टीका?
इजराइल के साइंटिस्टों ने जिस टेक्नोलॉजी का उपयोग इस वैक्सीन को बनाने में किया है उसे जीन एडिटिंग टेक्नोलॉजी कहा जाता है। हालांकि फिलहाल इसका ट्रायल अभी चूहों पर किया गया है। वैक्सीन में टाइप बी डब्ल्यूबीसी यानी व्हाइट ब्लड सेल्स का उपयोग किया गया। इनसे इम्यून सिस्टम में HIV से लड़ने वाली एंटीबॉडीज विकसित होती हैं। दावा है कि इस दवा से बनने वाली एंटीबॉडीज सुरक्षित और शक्तिशाली हैं। यह संक्रामक बीमारियों के अलावा कैंसर और बाकी ऑटोइम्यून बीमारियों से ठीक होने में भी इंसान के काम आ सकती हैं। रिसर्चर्स का मानना है कि अगले कुछ सालों में AIDS और कैंसर का परमानेंट इलाज मार्केट में आ सकता है।
क्या है AIDS बीमारी?
एड्स एक ऐसी बीमारी है जो HIV नामक वायरस के शरीर में आ जाने से होती है। इसका पूरा नाम एक्वायर्ड एमीनों डेफिशियेन्सी सिंड्रोम (Acquired Immuno Deficiency Syndrome) है। एड्स से पीड़ित व्यक्ति का इम्यून सिस्टम कमज़ोर हो जाता है। माना जाता है कि यह वायरस चिम्पांजी से इंसान में 20वीं सदी में ट्रांसफर हुआ था।अभी इसका स्थाई इलाज उपलब्ध नहीं है।
सबसे पहले अफ्रीकी देश कॉन्गो में आया था पहला मामला
1959 में अफ्रीकी देश कॉन्गो में एड्स का पहला मामला सामने आया था, जब एक व्यक्ति की मौत हो गई। उसके खून की जांच की गई तो पता चला कि उसे एड्स था।
फिर 1980 के दशक के शुरुआत में इस बीमारी के सामने आने के बाद से अब तक दुनियाभर में लाखों की तादाद में लोग इस बीमारी से जान गंवा चुके हैं। बताया जाता है कि 3.26 करोड़ से भी अधिक लोग दुनियाभर में एचआईवी से पीड़ित हैं। इस बीमारी में 60 डिग्री सेल्सियस से ऊपर तापमान होने पर एचआईवी विषाणु मारे जाते हैं। हमारे देश में 1986 में चेन्नई में एड्स का पहला मामला सामने आया था।
कैसे काम करती है यह वैक्सीन?
जीन एडिटिंग से बदल चुके सेल्स से जैसे ही वायरस का सामना होता है, वैसे ही सेल्स उस पर हावी हो जाते हैं। टाइप बी वाइट ब्लड सेल्स ही हमारे शरीर में वायरस और बैक्टीरिया के खिलाफ इम्यूनिटी बढ़ाते हैं। ये नसों के जरिए अलग-अलग अंगों में पहुंच जाते हैं। अब वैज्ञानिकों ने जीन एडिटिंग टेक्नोलॉजी CRISPR की मदद से इनमें बदलाव करना शुरू कर दिया है। CRISPR एक जीन एडिटिंग टेक्नोलॉजी है, जिसकी मदद से वायरस, बैक्टीरिया या इंसानों के सेल्स को जेनेटिकली बदला जा सकता है। इससे जैसे ही बदल चुके सेल्स से वायरस का सामना होता है, वैसे ही सेल्स उस पर हावी हो जाते हैं।