स्व. इंद्रमणि बडोनी की जयंती पर जनसेवी अजय सोनकर ने किया नमन

देहरादून। वरिष्ठ भाजपा नेता, प्रसिद्ध जनसेवी एवँ वार्ड संख्या 18 इंदिरा कॉलोनी, चुक्खुवाला के पूर्व नगर निगम पार्षद अजय सोनकर उर्फ घोंचू भाई ने उत्तराखंड के गांधी कहे जाने वाले स्व. इंद्रमणि बडोनी जी की जयंती पर उनका स्मरण करते हुए उन्हें नमन किया।
इस दौरान जनसेवी अजय सोनकर ने कहा कि स्व. इंद्रमणि बडोनी जी को यूं ही उत्तराखंड का गांधी नहीं कहा जाता। इसके पीछे उनकी महान तपस्या और त्याग रहा है। राज्य आंदोलन को लेकर उनकी सोच और दृष्टिकोण को आज भी शिद्दत से याद किया जाता है।
स्व. इंद्रमणि बडोनी जी का स्मरण करते हुए जनसेवी अजय सोनकर ने कहा कि इंद्रमणि बड़ोनी आज ही के दिन यानी 24 दिसंबर, 1925 को टिहरी जिले के जखोली ब्लॉक के अखोड़ी गांव में पैदा हुए थे। उनके पिता का नाम सुरेश चंद्र बडोनी था। साधारण परिवार में जन्मे बड़ोनी का जीवन अभावों में गुजरा। उनकी शिक्षा गांव में ही हुई। देहरादून से उन्होंने स्नातक की उपाधि हासिल की थी। वह ओजस्वी वक्ता होने के साथ ही रंगकर्मी भी थे। लोकवाद्य यंत्रों को बजाने में निपुण थे।
उन्होंने कहा कि वर्ष 1953 का समय, जब बड़ोनी गांव में सामाजिक व सांस्कृतिक कार्यों में जुटे थे। इसी दौरान राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की शिष्या मीराबेन टिहरी भ्रमण पर पहुंची थी। बड़ोनी की मीराबेन से मुलाकात हुई। इस मुलाकात का असर उन पड़ा। वह महात्मा गांधी की शिक्षा व संदेश से प्रभावित हुए। इसके बाद वह सत्य व अहिंसा के रास्ते पर चल पड़े। पूरे प्रदेश में उनकी ख्याति फैल गई। लोग उन्हें उत्तराखंड का गांधी बुलाने लगे थे।
अजय सोनकर ने कहा कि स्व. इंद्रमणि बडोनी जी का उत्तराखंड को लेकर अलग ही नजरिया था। वह उत्तराखंड को अलग राज्य बनाना चाहते थे। वे गैरसैंण को उत्तराखंड की राजधानी के रूप में देखना चाहते थे, हालांकि आज तक गैरसैंण स्थायी राजधानी नहीं बन सकी। आज भी पहाड़ के लोग पहाड़ में ही राजधानी बनाने के लिए संषर्घरत हैं।
उन्होंने कहा कि स्व. इंद्रमणि बड़ोनी जैसे महान नेताओं ने राज्य को जो विजन दिया था, हमारे नेता उसे आज तक पूरा नहीं कर पाए। वह राज्य को समृद्ध बनाना चाहते थे। शिक्षा, स्वास्थ्य, पर्यटन व रोजगार को लेकर वह बहुत अधिक सजग रहा करते थे। किन्तु हमारे राज्य की महान हस्तियों और राज्य आन्दोलनकारियों के सपनों का उत्तराखण्ड हमें आजतक नहीं मिल पाया है।