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वरिष्ठ भाजपा नेता अजय सोनकर ने दी लोकपर्व ‘घी त्यार’ की हार्दिक शुभकामनाएं

वरिष्ठ भाजपा नेता अजय सोनकर ने लोकपर्व ‘घी त्यार’ के बारे में वर्णन करते हुए कहा कि भाद्रपद की सिंह संक्रांति को उत्तराखंडवासी घी संक्रांति के रूप में मनाते हैं। उत्तराखंड के पहाड़ी समाज की मान्यताओं के अनुसार इस दिन घी का सेवन आवश्यक होता है, इसलिए इस त्यौहार को घी संक्रांति के रूप में मनाते हैं।

देहरादून। वरिष्ठ भाजपा नेता, प्रसिद्ध जनसेवी एवं वार्ड संख्या 18 इंदिरा कॉलोनी, चुक्खुवाला के पूर्व नगर निगम पार्षद अजय सोनकर उर्फ घोंचू भाई ने उत्तराखंड के प्रसिद्ध लोकपर्व ‘घी त्यार’ के पावन अवसर पर हार्दिक शुभकामनाएं दी हैं।

इस अवसर पर जारी अपने संदेश में जनसेवी अजय सोनकर ने कहा- आप सभी को उत्तराखंड के प्रसिद्ध लोकपर्व ‘घी त्यार’ (घी संक्रांति) व ओलगिया के पावन अवसर पर हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं।

वरिष्ठ भाजपा नेता अजय सोनकर ने लोकपर्व ‘घी त्यार’ के बारे में वर्णन करते हुए कहा कि भाद्रपद की सिंह संक्रांति को उत्तराखंडवासी घी संक्रांति के रूप में मनाते हैं। उत्तराखंड के पहाड़ी समाज की मान्यताओं के अनुसार इस दिन घी का सेवन आवश्यक होता है, इसलिए इस त्यौहार को घी संक्रांति के रूप में मनाते हैं। यहाँ के लोगों की मान्यता है कि, जो व्यक्ति इस दिन घी का सेवन नहीं करता उसे अगले जन्म में घोंघे की योनि में जन्म लेना पड़ता है। जिसे लोग यहां गनेल कहते हैं। वर्षा काल में पशुचारे की बहुताय के कारण दूध-दही व माखन की कोई कमी नहीं होती, इसलिए इस दिन लोग उसे भी घी-माखन दे देते हैं, जिसके पास इन चीजों का आभाव होता है। शायद इसलिये इसे एक उत्सव का रूप दे दिया गया।

उन्होंने कहा कि कुमाऊं में इस त्यौहार को ओलगिया त्यौहार या ओग देने का त्यौहार भी कहते हैं। ओलगिया त्यौहार का अर्थ होता है, भेंट देने वाला त्यौहार। ओळग का अर्थ होता है, विशेष भेंट। ऐतिहासिक जानकारी के अनुसार चंद्र काल में अस्थाई कृषक अपने भू स्वामियों और बड़े शासनाधिकारियों को फल, सब्जियों , दूध और दही की डाली भरकर भेंट के रूप में देते थे। भेंट या उपहार के लिए प्रचलित शब्द ओळग का संदर्भ कुछ विद्वान, मराठी भाषा के ओळखणे या गुजराती के ओळख्यूं शब्द से मानते हैं। घी संक्रांति के दिन दिए जाने वाले उपहारों में, अरबी के पत्ते और मक्के व दूध दही प्रमुख होते हैं। उत्तराखंड एक प्राकृतिक प्रदेश है। यहाँ के उत्सव और पर्व सभी प्रकृति को समर्पित रहते हैं। हालांकि घी संक्रांति के दिन लोग एक दूसरे को फल सब्जियां, दूध, दही, घी और माखन उपहार स्वरूप देकर इस पर्व को मनाते हैं। बड़े-बुजुर्ग अपने छोटों को जी राये-जागी राये का आशीष देते हैं।

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