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सुंदरता की नई परिभाषा प्रस्तुत करती है ‘छपाक’, देखें रिव्यू

मुंबई। लंबे इन्तज़ार के बाद दीपिका पादुकोण की फ़िल्म ‘छपाक’ दर्शकों के सामने आई है। सिनेमा को हमेशा से समाज का आईना कहा जाता रहा है और बीते सालों में रुपहले पर्दे ने इस बात को लगातार साबित किया है। इस दौर में जिस तरह से सामजिक मुद्दों वाली और महिलाओं की त्रासदी को दिखाने वाली फिल्मों का ट्रेंड चला है, उसमें मेघना गुलजार निर्देशित और दीपिका पादुकोण अभिनीत छपाक सबसे मजबूत कॉन्टेंट के साथ प्रस्तुत हुई हैं।

कहानी एसिड अटैक विक्टिम सर्वाइवर लक्ष्मी अग्रवाल के जीवन पर आधारित है। कहानी की शुरुआत एसिड विक्टिम सर्वाइवर मालती (दीपिका पादुकोण) से होती है, जो नौकरी की तलाश में है। इस कोशिश में उसे बार-बार तेजाबी हमले से हुए उसके बदसूरत चेहरे की याद दिलाई जाती है। कई सर्जरी से गुजर चुकी मालती को जब एक पत्रकार ढूंढकर उसका इंटव्यू करती है, तब कहानी की दूसरी परतें खुलती हैं। मालती एसिड विक्टिम सर्वाइवर्स के लिए काम करनेवाले एनजीओ से जुड़ती है, जहां कई एसिड विक्टिम्स के साथ एनजीओ के कर्ता-धर्ता अमोल (विक्रांत मेसी) से मिलती है। उसके बाद तेजाबी हमले की शिकार दूसरी लड़कियों के जरिए मालती की दारुण त्रासदी सामने आती है।

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19 साल की खूबसूरत और हंसमुख मालती (दीपिका पादुकोण) सिंगर बनने के सपने देख रही, मगर बशीर खान उर्फ बबू द्वारा किए गए अमानुषी एसिड अटैक के बाद उसकी जिंदगी पहले जैसे कभी नहीं रह पाती। घर में टीवी की बीमारी से ग्रसित भाई, आर्थिक तंगी से जूझते माता-पिता और उसमें मालती की अनगिनत सर्जरी के बीच पुलिस इन्वेस्टिगेशन और कोर्ट-कचहरी के चक्कर। तेजाबी हमले के बाद कुरूप हुए चेहरे और समाज के तमाम ताने-उलाहनों और तिरस्कार के बीच एक चीज नहीं बदलती और वह होता है, परिवार का सपॉर्ट और वकील अर्चना (मधुरजीत सरघी) का मालती को इंसाफ दिलाने का जज्बा। अर्चना की प्रेरणा से ही वह एसिड को बैन किए जाने की याचिका दायर करती है। इस हौलनाक सफर में मालती का चेहरा भला छीन लिया जाता हो, मगर उसकी मुस्कान कोई नहीं छीन पाता।

निर्देशक के रूप में मेघना गुलजार की खूबी यह है कि उन्होंने कहानी को रियलिस्टक रखा है। एसिड अटैक की त्रासदी को कहीं भी मेलोड्रैमेटिक या सनसनीखेज नहीं होने दिया। फिल्म का फर्स्ट हाफ जरूर कुछ सुस्त है, मगर मध्यांतर के बाद घटनाक्रम अपनी रफ्तार पकड़ता है। तलवार और राजी जैसी सफल और विचारप्रेरक फिल्मों का निर्देशन कर चुकी मेघना ने इसे डॉक्यू ड्रामा के अंदाज में फिल्माया है। मेघना सुंदरता की परंपरागत धारणा पर भी प्रहार करती नजर आती हैं। साथ ही ये फ़िल्म सुंदरता की नई परिभाषा भी प्रस्तुत करती है।

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एसिड विक्टिम सर्वाइवर के रूप में दीपका का प्रॉस्थेटिक मेकअप काबिले-तारीफ है। हां, कुछ सवाल ऐसे जरूर हैं, जो अनुत्तरित रह जाते हैं। शंकर-एहसान -लॉय के संगीत में टाइटिल ट्रैक ‘छपाक’ दिल को छूनेवाला बन पड़ा है। दीपिका पादुकोण को अगर फिल्म की रूह कहा जाए तो अतिशयोक्ति न होगी। निर्मात्री और अभिनेत्री के रूप में तेज़ाब से जले चेहरे के साथ पेश होना उन जैसी हिरोइन के लिए साहसी कदम ही कहा जाएगा, मगर वे मालती की भूमिका को जीवंत कर गई हैं।

उनके द्वारा निभाए गए कई दृश्य आपका दिल निचोड़ कर रख देते हैं। एक दृश्य में अपनी इमिटेशन जूलरी और कपड़ों को बैग में रखते हुए कहती हैं, ‘न नाक है और न कान , ये झुमके कहां लटकाऊंगी मां?’ विक्रांत मेसी ने अपनी भूमिका को जानदार बनाया है। उन्हें और ज्यादा स्क्रीन स्पेस दिया जाना चाहिए था। लॉयर अर्चना की भूमिका में मधुरजीत सरगी ने लाजवाब अभिनय किया है। सहयोगी कलाकारों ने अपनी भूमिकाओं के साथ पूरा न्याय किया है।

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क्यों देखें- दीपिका पादुकोण के अभिनय हुए एसिड विक्टिम सर्वाइवर्स की त्रासदी को जानने के लिए यह फिल्म जरूर देखें।

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