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चेक बाउंसिंग केस में निर्दोष पाये जाने पर आरोपी को कोर्ट ने किया बरी

इस मामले को लेकर परिवादी के विद्वान अधिवक्ता विभूति भूषण नय्यर एवं अभियुक्त के विद्वान अधिवक्ता अमित त्यागी के बीच कईं बार की तीखी बहस हुई। जिरह के दौरान दोनो पक्षों के अधिवक्ताओं ने अपने मुवक्कीलों के पक्ष में साक्ष्य प्रस्तुत किये। किन्तु परिवादी के विद्वान अधिवक्ता विभूति भूषण नय्यर परिवादी की ओर से कोई ठोस साक्ष्य पेश नहीं कर पाये। वहीं अभियुक्त के विद्वान अधिवक्ता अमित त्यागी ने न्यायालय के समक्ष अभियुक्त को निर्दोष साबित करने हेतु पर्याप्त सबूत पेश किये।

देहरादून। चैक बाउंसिंग के मामले में निर्दोष पाये जाने पर कोर्ट ने आरोपी शख्स को बरी कर दिया है। कोर्ट ने साक्ष्यों के अभाव में आरोपी शख्स को दोषमुक्त करार दिया है। कोर्ट ने अभियुक्त के विद्वान अधिवक्ता अमित त्यागी की ओर से प्रस्तुत किये गए बयानों और सबूतों के मद्देनजर ये फैसला सुनाया।

प्राप्त जानकारी के अनुसार परिवादी कमील अहमद पुत्र अब्दुल खालिद, निवासी मेंहुंवाला माफी, ने अमजद पुत्र इमरान, निवासी- मकान नं0 351, मौहल्ला सराय पीर, जदगन, तहसील देवबंद, जिला सहारनपुर के विरूद्ध चैक बाउंसिंग का आरोप लगाते हुए शिकायत दर्ज करवाई।

परिवादी कमील अहमद के अनुसार परिवादी की भारत इलैक्ट्रीकल के नाम से थोक की दुकान है। अभियुक्त परिवादी की दुकान से समय-समय पर बिजली का सामान कभी नकद, कभी उधार ले जाता था। परिवादी एवं अभियुक्त एक-दूसरे से भलीभांति परिचित थे। दिनांक 17.02.2015 को अभियुक्त ने परिवादी की दुकान से थोक मेंं बिजली के सामान की आपूर्ति करने की बात कहीं, तो परिवादी ने अभियुक्त के कहे अनुसार ढाई लाख रूपये बिजली का सामान अभियुक्त को उधार दे दिया, जिसकी देनदारी की एवज मेंं परिवादी को अभियुक्त ने एक चैक संख्या 004578 मु0 ढाई लाख रूपये दिनांकित 18.02.2015 का यह कहते हुये दिया कि शाम हो गयी है, इतनी बडी रकम का इंतजाम नहीं हो सकता, इसलिए आप मेरे द्वारा दिये गये चैक को बैंक में प्रस्तुत करेंगें तो भुगतान हो जायेगा। परिवादी द्वारा भुगतान हेतु चैक बैंक में प्रस्तुत किया गया, तो चैक बिना भुगतान किये निधि कम की टिप्पणी के साथ वापस लौटा दिया गया। परिवादी द्वारा अभियुक्त से सम्पर्क किया गया, जिस पर अभियुक्त ने परिवादी को उक्त चैक दुबारा बैंक में प्रस्तुत करने हेतु कहा। पुनः चैक प्रस्तुत करने पर चैक अपर्याप्त निधि की टिप्पणी के साथ परिवादी को बिना भुगतान किये लौटा दिया गया। चैक के भुगतान हेतु अभियुक्त को परिवादी ने अपने अधिवक्ता के माध्यम से सूचना पत्र दिनांकित 13.05. 2015 को प्रेषित किया, जो कि तामील होने के बावजूद अभियुक्त द्वारा कोई उत्तर नहीं दिया गया, जिस कारण परिवादी द्वारा यह वाद प्रस्तुत किया गया है।

परिवादी के विद्वान अधिवक्ता को तलबी बहस पर सुनने के उपरान्त पत्रावली पर उपलब्ध पर्याप्त साक्ष्य के आधार पर अभियुक्त अमजद को अधिनियम की धारा 138 के अंतर्गत न्यायालय द्वारा अपने आदेश दिनांकित 07.12.2015 से विचारण हेतु तलब किया गया। वहीं अभियुक्त न्यायालय में प्रत्येक उपस्थिति पर आया। अभियुक्त के बयान अंतर्गत धारा 251 द0प्र0सं0, 1973 अंकित किये गये, जिसमेंं अभियुक्त द्वारा परिवाद पत्र के कथनों को गलत बताते हुए विचारण की मांग की गयी तथा कथन किया गया है कि ‘‘मैंने परिवादी से इलैक्ट्रॉनिक का सामान मु0 78,000/-रूपये का लिया था किन्तु मैं पैसा नहीं चुका पाया तो मैंने सामान वापस ले जाने के लिये कहा तो परिवादी ने मेरी दुकान मय सामान मु0 58,000/-रूपये हजार में खरीद ली जो परिवादी ने नब्बे हजार में शोएब नाम के व्यक्ति को बेच दी। चैक मैंने परिवादी को नहीं दिया चैक पर मैंने कोई इबारत नहीं भरी तथा ना ही हस्ताक्षर किये। मैं परिवादी के मकान में किराये पर रहता था। मेरा चैक परिवादी के पास कैसे गया, नहीं बता सकता। मेरे चैक का दुरूपयोग किया गया तथा विचारण की मांग की गयी।’’

केस की सुनवाई न्यायालय अष्टम् अपर सीनियर सिविल जज/अपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, जिला देहरादून, उपस्थित- सुमन, उत्तराखण्ड न्यायिक सेवा की कोर्ट में फौजदारी परिवाद संख्या-2054/2015 के तहत की गई। इस मामले को लेकर परिवादी के विद्वान अधिवक्ता विभूति भूषण नय्यर एवं अभियुक्त के विद्वान अधिवक्ता अमित त्यागी के बीच कईं बार की तीखी बहस हुई। जिरह के दौरान दोनो पक्षों के अधिवक्ताओं ने अपने मुवक्कीलों के पक्ष में साक्ष्य प्रस्तुत किये। किन्तु परिवादी के विद्वान अधिवक्ता विभूति भूषण नय्यर परिवादी की ओर से कोई ठोस साक्ष्य पेश नहीं कर पाये। वहीं अभियुक्त के विद्वान अधिवक्ता अमित त्यागी ने न्यायालय के समक्ष अभियुक्त को निर्दोष साबित करने हेतु पर्याप्त सबूत पेश किये। न्यायालय द्वारा उभय पक्षों की बहस सुनी गयी। अभियुक्त के विद्वान अधिवक्ता द्वारा तर्क दिया गया है कि अभियुक्त निर्दोष है क्योंकि परिवादी द्वारा दाखिल तथाकथित सबूतों का कोई आधार नहीं है एवं सारे आरोप झूठे व बेबुनियाद हैं। अभियुक्त ने परिवादी को कोई चैक नहीं दिया बल्कि परिवादी ने अवैध रूप से उक्त चैक का प्रयोग किया है। इसलिए अभियुक्त दोषमुक्त किये जाने योग्य है।

दोनों पक्षों के विद्वान अधिवक्ताओं की दलीलों व कईं बार की बहस को सुनने के पश्चात कोर्ट ने परिवादी द्वारा प्रस्तुत सबूतों को अपर्याप्त व निराधार माना। जिसके बाद कोर्ट ने निर्णय सुनाया कि इस प्रकार मामले के तथ्यों एवं परिस्थितियों को दृष्टिगत रखते हुए न्यायालय का मत है कि परिवादी अभियुक्त के विरूद्ध अधिनियम की धारा 138 मेंं वर्णित समस्त घटकों को युक्ति-युक्त सन्देह से परे साबित करने में असफल रहा है। अतः अभियुक्त अमजद अधिनियम की धारा 138 के अधीन दण्डनीय अपराध से दोषमुक्त किये जाने योग्य है।

वहीं कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि अभियुक्त अमजद को फौ0वा0सं0 2054/2015 अन्तर्गत धारा 138 परक्राम्य लिखत अधिनियम, 1881 के अन्तर्गत दण्डनीय अपराध के आरोप से दोषमुक्त किया जाता है। अभियुक्त जमानत पर है, अभियुक्त द्वारा धारा-437(क) दण्ड प्रक्रिया संहिता,1973 के अनुपालन मेंं प्रस्तुत व्यक्तिगत बन्धपत्र एवं जमानतनामें प्रस्तुत किए जाने की तिथि से अग्रेतर 06 (छः) माह तक प्रवृत रहेगें तथा इस दौरान उच्चतर न्यायालय मेंं अपील न होने की स्थिति मेंं स्वतः निरस्त हो जायेगें।

 

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