Breaking NewsUttarakhand

उत्तराखंड में 2022 के विधानसभा चुनाव में महत्वपूर्ण हो सकती है कुमाऊं की भूमिका

देहरादून। इन दिनों मुख्यमंत्री परिवर्तन होते ही कोश्यारी ग्रुप एकाएक प्रदेश की राजनीति में हावी हो गया है। प्रदेश भर में चर्चा है कि कि अब प्रदेश की बागडोर महाराष्ट्र राजभवन से संचालित होगी। यह तो समय ही बताएगा कि 2022 में उत्तराखंड की राजनीति कहां से और किस प्रकार संचालित होगी किंतु इतना निश्चित हो चुका है कि 2022 की चुनावी बयार में कुमाऊं की भूमिका महत्वपूर्ण हो चुकी है।

अगर एक सरसरी नजर डालें तो महाराष्ट्र के राज्यपाल उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी हैं जोकि कुमाऊं के खाटी नेता है। केंद्रीय राज्य मंत्री अजय भट्ट और वर्तमान मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी भी कुमाऊ से ही ताल्लुक रखते हैं और कोश्यारी सेना के सच्चे सैनिक रहे हैं।

यह भी अतिशयोक्ति नहीं होगी कि पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत भी एक जमाने में कोश्यारी सैनिकों में ही शुमार किए जाते रहे हैं किंतु मुख्यमंत्री बनने के बाद त्रिवेंद्र सिंह रावत और कोश्यारी के बीच की दूरियां बढ़ती चली गई। हालत यहां तक पहुंच गई कि कोश्यारी ग्रुप ने उन्हें नकारा मुख्यमंत्री साबित करने की कोई भी कोशिश नहीं छोड़ी। भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने भले ही कोश्यारी के कद और अनुभव को देखते हुए उन्हें महाराष्ट्र जैसे बड़े प्रदेश का राज्यपाल बनाकर भेजा हो किंतु कोश्यारी के मन में हमेशा प्रदेश की सत्ता की बागडोर अपने हाथ में लेने की कसक बनी रही।

भले ही आज पुष्कर सिंह धामी और अजय भट्ट के रूप में सत्ता की कमान भगत सिंह कोश्यारी के हाथों में आ गई हो परंतु सत्ता की इस जोड़-तोड़ ने 2022 की भाजपा की राजनीति को एक विचित्र मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया है जिसका आकलन भारतीय जनता पार्टी के केंद्र में बैठे दिग्गज नेता अभी तक नहीं कर पा रहे हैं।

पूर्व मुख्यमंत्री और शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक को पद से हटाकर उनके स्थान पर उनकी प्रतिपूर्ति में अजय भट्ट को स्थापित करना केंद्रीय नेतृत्व की एक बड़ी भूल है जिसका खामियाजा 2022 के चुनावों में मिलना तय है। भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने ब्राह्मण के स्थान पर ब्राह्मण को बैठा तो दिया किंतु केंद्रीय नेतृत्व से एक बहुत बड़ी भूल हो गई कि वह समझ नहीं पाए कि उत्तराखंड में 41 सीटों वाले गढ़वाल की उपेक्षा को गढ़वाली जनसमुदाय कभी भी सहन नहीं कर पाएगा।

इससे तो अच्छा होता कि होता कि पौड़ी जिले के रहने वाले अनिल बलूनी को ही मुख्यमंत्री या केंद्रीय मंत्री बना कर गढ़वाल की नाराजगी को दूर किया जा सकता था। एक कहावत है अब ढोल वजाबत होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत। इसी कहावत को आधार माने तो यह निश्चित ही है कि गढ़वाल के राजनेता अपने आप को ठगा सा महसूस कर रहे हैं।

यदि हम बात करें तो केंद्रीय नेतृत्व के पास कहने को है कि मदन कौशिक गढ़वाल क्षेत्र के ब्राह्मण नेता है किंतु गढ़वाल की भौगोलिक और सांस्कृतिक संरचना में हरिद्वार जिले के नेता को गढ़वाली नेता के रूप में स्थापित नहीं किया जा सकता। गढ़वाल और कुमाऊं की बढ़ती हुई खाई को पाटने में प्रदेश नेतृत्व और केंद्रीय नेतृत्व की भूमिका क्या होगी यह तो वक्त ही बताएगा किंतु इतना तो तय है की वर्तमान में प्रदेश की राजनीति पर कोश्यारी ग्रुप पूर्णता हावी हो चुका है। और यह भी तय है कि कोशरी ग्रुप जो कि लंबे समय से अपने आप को उपेक्षित महसूस कर रहा था वह अपनी अपेक्षा करने वालों को आसानी से चैन की सांस नहीं लेने देगा।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button