Breaking NewsUttarakhand

सिलक्यारा सुरंग निर्माण को लेकर टनल विशेषज्ञों ने दी ये सलाह

हिमालयन सोसाइटी ऑफ जियो साइंटिस्ट की कॉन्फ्रेंस में पहुंचे टनल विशेषज्ञ ने कहा कि सिलक्यारा की सुरंग में निर्माण संबंधी चूक नहीं होती तो हादसा न होता।

देहरादून। सुरंग निर्माण से जुड़े विशेषज्ञों का कहना है कि वैज्ञानिक तरीके से निर्माण किया जाए तो सुरंग को हादसे से बचाया जा सकता है। सिलक्यारा सुरंग में भी निर्माण संबंधी चूक की वजह से ही हादसा हुआ था। हिमालयन सोसाइटी ऑफ जियो साइंटिस्ट की कॉन्फ्रेंस में विशेषज्ञों ने सुरंग व स्लोप निर्माण के विभिन्न पहलुओं पर अपनी बात रखी।

ईसी रोड स्थित ऑडिटोरियम में कॉन्फ्रेंस का उद्घाटन मुख्य अतिथि सचिव आपदा प्रबंधन डॉ. रंजीत सिन्हा ने किया। उन्होंने कहा, पहाड़ में कोई भी प्रोजेक्ट शुरू करने से पहले उसकी अच्छी तरह से पड़ताल की जानी चाहिए। पारसन ओवरसीज के एमडी संजय राणा ने स्लोप स्थायित्व को लेकर अहम जानकारी साझा की।

दक्ष कामगारों की कमी

इसके बाद सुरंग निर्माण विशेषज्ञ केडी शाह ने अनुभव साझा करते हुए बताया, किस तरह पहाड़ के भीतर सुरंग बनाते समय सावधानियां बरतने की जरूरत है। अनुशासन भी जरूरी है। कहा, आज हमारे देश में इस निर्माण से जुड़े दक्ष कामगारों की कमी है। सोसाइटी के उपाध्यक्ष बीडी पटनी ने बताया, आज जल्दबाजी में सुरंगों की डीपीआर ऐसी बनाई जा रही हैं, जो भविष्य में हादसे के रूप में सामने आ रही हैं।

उन्होंने कहा, अगर वैज्ञानिक तरीके से सुरंग निर्माण किया जाए तो निश्चित तौर कोई हादसा नहीं होगा। उन्होंने पहाड़ों में सुरंगों को ही सबसे सुरक्षित सड़कों का विकल्प बताया। कहा, हिमालय की चट्टानों के बीच काम करने के लिए आपको फील करना जरूरी है। हर कदम पर चट्टानों का मिजाज बदल जाता है। कहीं कठोर हैं तो कहीं भुरभुरी। इसी हिसाब से निर्माण होने चाहिएं। सिलक्यारा सुरंग में भी इसी प्रकार निर्माण संबंधी चूक हुई थी, जिस कारण हादसा हुआ।

हिमाचल की ढली टनल को बेस्ट टनल अवार्ड

कार्यक्रम में हिमाचल के शिमला में बनी 147 मीटर लंबी ढली टनल को बेस्ट टनल का अवार्ड दिया गया। यह देश की पहली ऐसी सुरंग है, जिसके निर्माण में कोई विस्फोट नहीं किया गया है। इसके लिए साईं इटरनल फाउंडेशन को सम्मानित किया गया। इसके अलावा स्पार जियो इंफ्रा को बेस्ट स्लोप स्टैबलाइजेशन अवार्ड से नवाजा गया।

सैटेलाइट इमेज देखकर प्रोजेक्ट की लाइन खींचना घातक

कॉन्फ्रेंस में विशेषज्ञों का ये भी कहना था कि कई कंपनियां व अधिकारी सीधे सेटेलाइज इमेज देखकर उसमें एक लाइन खींचकर अपनी भावी योजना बना रहे हैं। धरातल की भूगर्भीय परिस्थितियों से अनजान होते हैं। रेलवे और सड़क के कई ऐसे प्रोजेक्ट बाद में मुश्किलों में पड़े हैं। उनका कहना है कि यह घातक काम है।

वाइब्रेशन मॉनिटर करेंगे तो नहीं होगा गांवों को नुकसान

उत्तराखंड में कई इलाकों में चल रहे सुरंग के प्रोजेक्ट में गांवों में दरारें आने की शिकायतें आम हैं। विशेषज्ञ बीडी पटनी का कहना है कि जहां भी सुरंग निर्माण हो रहा हो, उसके ऊपर गांव में वाइब्रेशन मॉनिटर लगा होना चाहिए। इस मॉनिटर में अगर वाइब्रेशन पांच से ज्यादा हैं, तो तत्काल बारूद की मात्रा कम करनी पड़ती है। अगर इसे नजरअंदाज किया तो नुकसान होना तय है।

डीपीआर से पहले करें पूरी कसरत

विशेषज्ञों का कहना है कि आजकल बनने वाले प्रोजेक्ट की डीपीआर बेहद सतही होती है। इस वजह से निर्माण के दौरान हादसे हो रहे हैं। सस्ते व नौसिखिए इंजीनियर, जियोलॉजिस्ट से आननफानन में मिले डाटा के आधार पर बनी डीपीआर दुखदायी होती है। ऐसे तमाम प्रोजेक्ट हैं, जिनकी खामियां सामने आ रही हैं।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button