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प्रदेश की बदहाल शिक्षा व्यवस्था पर उत्तराखंड की बेटी भावना पांडे ने खड़े किये सवाल

देहरादून। वरिष्ठ राज्य आंदोलनकारी, प्रसिद्ध जनसेवी एवं जनता कैबिनेट पार्टी (जेसीपी) की केंद्रीय अध्यक्ष भावना पांडे ने उत्तराखंड के सरकारी स्कूलों की दुर्दशा एवं प्रदेश की बदहाल शिक्षा व्यवस्था पर अफ़सोस जताया और मौजूदा हालातों पर चिंता व्यक्त की है।

उत्तराखंड की बेटी भावना पांडे ने कहा कि प्रदेश में शिक्षा व्यवस्था के हालात बेहद चिंताजनक हैं। उन्होंने कहा कि राज्य की बदहाल शिक्षा व्यवस्था के चलते पिछले 15 वर्षों में पांच लाख से अधिक छात्रों ने सरकारी स्कूल छोड़ दिया है। सरकारी विद्यालयों में निरंतर गिरती छात्रसंख्या ने शिक्षा विभाग की व्यवस्थाओं की पोल खोल दी है। वहीं निजी विद्यालयों में इसी अवधि में लगभग दो लाख विद्यार्थी बढ़े हैं।

वरिष्ठ राज्य आंदोलनकारी भावना पांडे ने सरकारी व्यवस्थाओं पर निशाना साधते हुए कहा कि उत्तराखंड में अब तक सरकारों ने सिर्फ विद्यालयों की संख्या बढ़ाने पर ही ध्यान दिया है, वहीं शिक्षा की गुणवत्ता को लेकर रवैया उतना ही ढुलमुल रहा है। प्रतिस्पर्धी वातावरण में गुणवत्ता को प्राथमिकता दे रहे अभिभावकों और विद्यार्थियों में सरकारी विद्यालयों के प्रति रुचि घट रही है। उन्होंने कहा कि प्रदेश की सरकारों ने संसाधनों की कमी और शिक्षा के स्तर को सुधारने पर ध्यान दिया होता तो सरकारी विद्यालय इस तरह बदहाल नहीं होते।

जनसेवी भावना पांडे ने कहा कि प्रदेश में जिस सरकारी शिक्षा पर बच्चों का भविष्य संवारने का जिम्मा है, उसे अपने पांव पर टिके रहने के लिए खाद-पानी की आवश्यकता है। हालत ये है कि सरकारी विद्यालयों में छात्रसंख्या तेजी से घट रही है। दूरदराज और ग्रामीण इलाकों के बच्चे भी नजदीकी निजी और अंग्रेजी माध्यम के विद्यालयों का रुख कर रहे हैं। सरकारी विद्यालय व शिक्षा विभाग इस समस्या से निपटने में पूरी तरह नाकाम रहे हैं।

जेसीपी अध्यक्ष भावना पांडे ने कहा कि उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में कईं स्कूल जर्जर हालत में हैं, जहां अक्सर हादसे घटित होते रहते हैं। पहाड़ के दुर्गम क्षेत्रों में सरकारी स्कूलों में शिक्षकों का अभाव है, कईं कक्षाओं को मात्र एक टीचर के भरोसे ही छोड़ दिया गया है। वहीं कईं स्कूलों में अधिकांश शिक्षक अवकाश पर ही रहते हैं। प्रदेश में शिक्षा के ऐसे दयनीय हालातों के बीच विद्यार्थियों का भविष्य भी संकट में है। वहीं विश्वास के संकट से जूझ रही सरकारी शिक्षा में बुनियादी कमियों को दूर करने के लिए आवश्यक कदम समय रहते नहीं उठाए गये, यदि ऐसा होता तो यह नौबत ही नहीं आती। दरअसल राज्य बनने के आठ वर्षों के बाद छात्रसंख्या में तेजी से गिरावट दर्ज होने का सिलसिला चला जो आजतक थम नहीं सका। सरकारी शिक्षा की इस बदहाली के लिए प्रदेश की अबतक की सरकारें व शिक्षा विभाग ही पूरी तरह जिम्मेदार है।

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