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उत्तराखंड की बेटी भावना पांडे समस्त प्रदेशवासियों को दी लोकपर्व “घी-त्यार” की शुभकामनाएं
देहरादून। वरिष्ठ राज्य आंदोलनकारी, प्रसिद्ध जनसेवी, उत्तराखंड की बेटी एवं जनता कैबिनेट पार्टी (जेसीपी) की केंद्रीय अध्यक्ष भावना पांडे ने उत्तराखंड के प्रसिद्ध लोकपर्व “घी-त्यार” घी संक्रांति/घृत-संक्रांति/ओलगिया की समस्त प्रदेशवासियों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं दी हैं।
उत्तराखंड की बेटी भावना पांडे ने मीडिया को जारी अपने शुभकामना संदेश में कहा- “घी-त्यार” घी संक्रांति/घृत-संक्रांति/ओलगिया की समस्त प्रदेशवासियों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं। भगवान सूर्य देव से सभी के सुख-समृद्धि और स्वस्थ-सुखद जीवन की प्रार्थना करती हूँ।
वरिष्ठ राज्य आंदोलनकारी भावना पांडे ने कहा कि घी संक्रांति अन्न और प्रकृति के प्रति हमारे समर्पण भाव तथा स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता का भी त्यौहार है। आइये, पर्यावरण और प्रकृति के प्रति प्रेम, सम्मान एवं सजगता का भाव प्रकट करते हुए पर्यावरण संरक्षण व संवर्द्धन की दिशा में किये जा रहे सतत कार्यों में योगदान दें। उन्होंने आग्रह करते हुए कहा कि हरेला पर्व या अन्य अवसर पर रोपित पौधे तथा अन्य वृक्षों के संरक्षण कार्य को प्राथमिकता के साथ आगे बढ़ाएं। अपनी संस्कृति व संस्कारों के अनुरूप अपने पारम्परिक त्योहारों को आत्मीयता और हर्षोउल्लास के साथ मनाएं।
प्रसिद्ध जनसेवी भावना पांडे ने कहा कि हिंदू धर्म में सूर्य को सबसे महत्वपूर्ण ग्रह माना गया है। सभी नौ ग्रहों के राजा सूर्य हैं और जब भी सूर्य एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करते हैं, संक्रांति मनाई जाती है। बताया जा रहा है कि इस बार पंचांग के मुताबिक, 17 अगस्त 2022 को सूर्य का गोचर सिंह राशि में हो गया है, इसलिए आज सिंह संक्रांति यानी घी संक्रांति मनाई जा रही है। यह पर्व खासकर उत्तराखंड में मनाया जाता है। इसे घ्यू संक्रांत और ओलगिया भी कहा जाता है। मान्यता है कि आज के दिन अगर आप घी नहीं खाएंगे, तो अगले जन्म में घोंघे की योनी प्राप्त होती है।
जेसीपी अध्यक्ष भावना पांडे ने कहा कि हमारे पारंपरिक लोकपर्व सांस्कृतिक विरासत के मजबूत आधार होते हैं। घी संक्रांति देवभूमि उत्तराखंड का प्रमुख लोकपर्व होने के साथ ही अच्छी फसलों तथा अच्छे स्वास्थ की कामना से जुड़ा पर्व भी है। उन्होंने कहा कि हमारे त्योहार हमें अपनी संस्कृति एवं प्रकृति से जुड़ने की प्रेरणा देते हैं। अपने इन पर्वों की परंपरा से भावी पीढ़ी को जागरूक करना भी हम सबकी जिम्मेदारी है।
उन्होंने कहा कि मान्यता है कि घी संक्रांति के दिन चंद्र शासनकाल में स्थानीय लोग राजा को उपहार दिया करते थे। इस पर्व को स्थानीय बोली में घी-त्यार कहते हैं और ओलगिया नाम से भी इसे जाना जाता है। पूरे उत्तराखंड में यह पर्व हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। लोग दूब घास की पत्तियां घी में डुबोकर सर, कोहनी और ठुड्डी पर घी लगाते हैं। उड़द को पीसकर गुंथे आटे में भरकर रोटियां बनाई जाती हैं। रोटियों को घी में भिगोकर खाया जाता है और प्रत्येक पकवान में घी का प्रयोग शुभ माना जाता है।
घी त्यराक, चुपाड़ा हाथ।
बेड़ूवा रवाट, तिमलाक पात।।