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यहां गाँधीजी की कसम खाकर किया जाता है सभी विवादों का निपटारा

रायपुर। देश की आज़ादी के महानायक महात्मा गाँधी को हम भारतवासी राष्ट्रपिता कहते हैं। मगर गांधी जी से जुड़ी एक बात जो बहुत कम लोग जानते हैं। ये हम आपको बताने जा रहे हैं। दरअसल ओडिशा के संबलपुर के नजदीक भत्रा गांव है। यहां राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का मंदिर है और सुबह-शाम पूजा और रामधुन गूंजती है। 46 साल से लोग गांधीजी को भगवान के रूप में पूज रहे हैं। गांधी मंदिर इस गांव का ऐसा मंच है, जहां घरेलू विवाद से लेकर पड़ोसियों तक के झगड़े निपट रहे हैं। यहां से युवाओं को अपराध और नशा नहीं करने की सीख दी जा रही है। महात्मा गांधी की पुण्यतिथि पर इस गांव की ग्राउंड रिपोर्ट।

इस गांव में नई-नवेली बहू ससुराल में कदम रखने से पहले आशीर्वाद लेने के लिए गांधी मंदिर जाती हैं। गांधीजी के विचारों का असर इतना है कि आपसी सौहार्द ने छुआछूत जैसी समस्याओं को जड़ से खत्म कर दिया है। मंदिर के प्रवेश द्वार पर हाथ में तिरंगा लिए भारत माता की प्रतिमा है। भीतर हाथ पर गीता लिए गांधीजी की बैठी हुई प्रतिमा है।

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यहीं ओडिशा के आराध्य देव श्रीजगन्नाथ की प्रतिमा भी है

गांव के 83 साल के कालिया बाघ रोज पूजा करते हैं। वे बताते हैं कि मंदिर की नींव रखने वाले 93 साल के पूर्व विधायक अभिमन्यु कुमार रोज यहां आते हैं। रोज एक घंटे रामधुन होती है, जिसमें पूरा गांव शामिल होता है। गांव के बुजुर्ग टिकेश्वर छुरिया व बनमाली कुम्हार को गांधीजी इंसान के रूप में भगवान लगते हैं। उनका कहना है कि भत्रा के लगभग सभी घरों के गांधीजी की तस्वीर लगी है। वे हर सुख-दुख में हमारे साथ होते हैं। युवाओं ने उनके विचारों को आत्मसात कर लिया है। हम 15-16 साल के थे, तब सबने मिलकर इस मंदिर को बनाया था।

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गांव के ओमिया छुरिया के मुताबिक सबसे बड़ी उपलब्धि ये है कि गांव में कोई भी नशा नहीं करता है। विवाद भी कम होता है, अगर हो भी गया तो गांधीजी की कसम के साथ दोनों पक्ष निपटारा कर लेते हैं। पुलिस तक मामले जाते ही नहीं। गंभीर अपराध के बारे में हमने बरसों से सुना नहीं। इस गांव ने गांधीजी से आपस में मिलकर रहना और हर दुख-सुख में एक-दूसरे का साथ देना सीखा है। हम इसका पालन भी कर रहे हैं।

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छुआछूत खत्म करने के लिए 1928 में गांधीजी इस गांव में आए थे

भत्रा के पहले विधायक अभिमन्यु कुमार ने मंदिर की नींव रखी और लोगों काे साथ लेकर 11 अप्रैल 1974 में इसे बनवाया। उनके बेटे प्रमोद कुमार ने बताया कि आजादी के बाद यहां छुआछूत बहुत थी। गांधीजी 1928 में इसे खत्म करने के अभियान को लेकर यहां भी आए थे। यहां लोगों को मंदिरों में प्रवेश व पूजा की अनुमति नहीं थी। तब मेरे पिता ने गांधीजी का मंदिर बनाने का निर्णय लिया।

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